मंगलवार, 25 दिसंबर 2012



          सरकार की शह पर बिछ गई हैं दो करोड़ रु0 के लिए गोटियां
              ओपन विवि पर अब छपाई घोटाले की छाया
राजेन टोडरिया
ऐसा लगता है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय और भ्रष्टाचार का साथ चोली दामन जैसा हो गया है। विश्वविद्यालय अभी पूर्व कुलपति डा0 पाठक के कार्यकाल के दौरान लगे घपलों और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप से अभी उबर भी नहीं पाया था कि अब विवि के कार्यवाहक कुलपति ने दो करोड़ रुपये के प्रकाशन का टेंडर मंगाकर सनसनी फैला दी है। तमाम कायदे -कानूनों को धता बताकर मंगाए इस टेडर में देहरादून से लेकर हल्द्वानी तक कई बड़े लोग शामिल बताए जा रहे हैं। यह पहली बार है जब कार्यवाहक कुलपति ने स्थायी कुलपति की नियुक्ति का इंतजार किए बगैर ही यह टेंडर निकाल दिया है। उधर उ त्तराखंड जनमंच ने ऐलान किया है कि यदि टेंडर में किसी बाहरी राज्य के निवासी की फर्म या कंपनी को विवि द्वारा इमपैनलमेंट किया गया तो कार्यवाहक कुलपति को उत्तराखंड में नहीं रहने दिया जाएगा। जनमंच के कार्यकारी अध्यक्ष शशिभूषण भट्ट ने चेतावनी दी है कि पहाड़ के लोगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले प्रो0 शुक्ला पहले ही संगठन की काली सूची में दर्ज है। यदि विवि में बाहरी फर्मों और कंपनियों को किस्ी भी प्रकार का बिजनेस दिया गया तो विवि प्रशासन को सीधा विरोध झेलना होगा।
डा0 विनय पाठक के कुलपति काल में ओपन विवि पहाड़ विरोधी क्षेत्रवाद का हेडक्वार्टर बना दिया गया था। पहाड़ के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार देने के बजाय यह विवि उन्हे लूटने के केंद्र में बदल गया था। यही नहीं इस विवि में उस समय करोड़ों रुपये के घपले और घोटाले हुए। इन घपलों और घोटालों की फाइलें आज भी राजभवन में जांच की इंतजार में पड़ी हुई हैं। बताया जाता है कि राजभवन में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी इन फाइलों को अपनी आलमारी में बंद किए बैठा है। यह भी आरोप लगाया जाता रहा है कि इसी अफसर ने ओपन विवि के पूर्व कुलपति को बर्खास्त होने से बचाने में बड़ी भूमिका निभाई। राजभवन के गलियारों में यह भी चर्चा है कि पूर्व कुलपति को राज्यपाल के कोप से बचाने के लिए बड़ी डील हुई हैं जिसमें राजभवन से लेकर सचिवालय तक कुछ ताकतवर अफसर शामिल हैं। बताया जाता है कि ओपन विवि का कुल घपला करोड़ों में है। इसमें राज्य सरकार के बड़े अफसर और कुछ नेता भी शामिल हैं। करोड़ों के इस घोटाले की आंच एक पूर्व सरकार के एक मंत्री के साथ-साथ वर्तमान सरकार के एक मंत्री की भी मिलीभगत रही है। दिलचस्प बात यह है कि कुलपति की विदाई के बावजूद विवि में व्याप्त भ्रष्टाचार पर जांच शुरु नहीं हो पाई है। राजभवन और सरकार दोनों ही इस जांच पर चुप हैं। 
लेकिन भ्रष्टाचार का यह सिलसिला रोके नहीं रुक रहा।अब इस मैदान में उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी के कार्यवाहक कुलपति प्रो. शुक्ला भी कूद गए हैं। इन सज्जन ने कार्यभार संभालते ही अनेक विवादों को जन्म दे दिया है। पहले इनके क्षेत्रवादी टिप्पणी से पूरे राज्य में हंगामा मचा रहा पर सरकार की शह प्राप्त होने के कारण इनके खिलाफ अभी तक पहाड़ी कौम को अपमानित करने वाली टिप्पणी वाले मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। जबकि इस अिप्पणी से जुड़े सबूत मुख्यमंत्री,प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा को भेज दिए गए थे।  लेकिन अब यह सज्जन पैसे के खेल में भी लिप्त होते नजर आ रहे हैं। अब 21 दिसंबर को वरिष्ठ प्राध्यापकों को उनके इशारे पर कार्य न कर पाने पर बोरिया बिस्तर बांध कर जाने को कह दिया है। वि0वि0 के गिरते शिक्षा स्तर से दुखी होकर कृषि विद्या शाखा के प्रो0 वी0के0कौल ने इस बात को स्पष्ट करते हुए अपना इस्तीफा 22 दिसंबर को ही दे दिया है। वहीं दूसरी तरफ प्रो0 शुक्ला ने दो करोड़ के पुस्तकों की छपाई के लिए निविदाऐं मांगी है जो 27 दिसंबर को कुलसचिव की गैर हाजिरी में खोली जानी है जबकि प्रो0 शुक्ला के पास वि0वि0 के कुलपति का अस्थाई कार्यभार है तथा वित्तीय एवं नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। पुस्तकों की छपाई में अनियमितता की जाँच शासन द्वारा पहले से ही की जा रही है जिसमें प्रो0 विनय कुमार पाठक, पूर्व कुलपति तथा श्री डी0के0सिंह, उपकुलसचिव अनियमितता के लिए आरोपित है। गत वर्ष भी छपाई का लगभग 70 प्रतिशत कार्य कोटा के प्रकाशक से ही कराया गया था। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को की गई शिकायतों में उक्त अधिकारियों के ऊपर कमीशनखोरी का आरोप लगाया गया है। इस साल भी छपाई का ठेका कोटा के ही प्रेस को दिए जाने के लिए ही टेंडर का खेल कराया गया है। इस ठेके को अंजाम तक पहुचाने और सरकार से हरी झंडी दिखाने के लिए पूर्व कुलपति ने राज्य की एक कैबिनेट मंत्री का संरक्षण हासिल कर लिया है। हाल ही में वह एक सप्ताह तक जिस होटल में डेरा डाले हुए रहे वह इसी काबीना मंत्री का बताया जाता है। इस खेल में मीडिया के कुछ लोग भी शामिल हैं । मीडिया से जुड़े लोगों के इसमें शामिल होने से दो करोड़ रुपये के छपाई टेंडर के बारे में एक भी खबर किसी अखबार में नहीं छपी जबकि कार्यवाहक कुलपति को नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार ही नहीं है। यदि सरकार ने या राजभवन से उन्हे यह अधिकार दिया गया तब तो मामला और भी गंभीर हो जाता है। संदेह तब हुआ जब हरिद्वार से आये एक ठेकेदार को उपकुलसचिव ने निविदा में हिस्सा लेने से ही मना कर दिया। बताते चले की टेण्डर के लिए दिये गये विवरण/अर्हताऐं तथा नियम व शर्तें जानबूझकर ऐसी बनाई गई हैं कि उत्तराखंड में छपाई का काम करने वाली फर्में और कंपनियां इसमें हिस्सा नहीं ले सके। उ त्तराखंड विरोध्ी मानसिकता के कारण ही मुक्त विवि का लगभग सभी कार्य राज्य से बाहर कराए जाते रहे हैं। कार्यवाहक कुलपति भी उ त्तराखंड विरोध के उसी रास्ते पर चल पड़े है। सूत्रों का कहना है कि बाहरी कंपनियों व फर्मों से भारी कमीशनखोरी करने के लिए ही ओपन विवि के कार्य बाहरी राज्यों के निवासियों से कराए जाते है।। हालांकि इस टेण्डर को इंपैनलमेंट का नाम दिया गया है किंतु इस टेंडर में कमीशनखोरी करने के दावेदार चाहते हैं कि टेण्डर में कम से कम लोग हिस्सा लें।यहीं नहीं अपनी गोटियां बिछाने के लिए आनन-फानन में सहायक कुलसचिव (क्रय) को दिनांक 24 दिसंबर को अन्य विभाग में स्थानांतरित कर क्रय का कार्य-भार छीन लिया गया क्योंकि क्रय विभाग ने आपत्ति लगाते हुए कहा था कि  प्रो0 शुक्ला के कार्यकारी कुलपति होने के कारण वित्तीय एवं नीतिगत निर्णय लेने के लिए सक्षम नहीं हैं।क्रय विभाग ने यह भी आपत्ति लगाई थी कि दो करोड़ की निविदा के लिए अपनायी जाने वाली प्रक्रिया भी शासनादेश के अनुरूप नहीं है व दोषपूर्ण है। यहीं नहीं प्रो0 शुक्ला ने निविदा खोलने के लिए जिस समिति का गठन किया उसमें जिन डा0 सूर्यभान सिंह को क्रय अधिकारी बनाते हुए सम्मिलित किया गया है उन्हें क्रय नियमों का ज्ञान ही नहीं है। डा0 सूर्यभान सिंह की नियुक्ति प्रो0 पाठक की अनुकम्पा से ही हुई है और उन्हें निविदा खुलने के तीन दिन पूर्व ही क्रय अधिकारी का कार्यभार दिया गया। विवि पर हावी उत्तराखंड  विरोधी लाबी का आलम यह है कि क्रय करने के लिए कार्यवाहक कुलपति को एक भी उत्तराखंड मूल का अधिकारी नहीं मिला। सारे अफसर उत्तराखंड से बाहरी राज्य के एक क्षेत्र विशेष कें मूल निवासी और विचारधारा विशेष से जुड़े हैं। प्रश्न उठता है कि कार्यकारी कुलपति को ऐसे विषय पर बिना शासन की अनुमति के निर्णय लेने का अधिकार कैसे प्राप्त हो गया जो नीतिगत तो है ही और जो वि0वि0 के विद्यार्थियों के भविष्य पर भी लंबंे समय तक प्रभावी रहेगा।

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