बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

Khurshid vs Aaj Tak , the clash of arrogance


                           
By Rajen Todariya
It was the press conference called by the Union Minister for Law Salman Khursid but it was turned took a ugly turn due to the arrogance of Khursid and news channel Aaj Tak. The sad incidence took place when Salmam khursid was putting his version before the media persons. The correspondents of TV Today group started to force Salman for answer of their questions. This incident had ended into a big controversy. This incident had shown that it had become difficult to hold a press conference for a common man. It was first time when media persons interrupted the press conference for their pity gains. TV Today group  had broken the laksman rekha and traditions  of professional journalism . It is quite evident that press conference is a media for the person, who want to put his version before the country or the media. If anybody interrupts his press conference or disturbs him to do so, it is an attempt to encroach the law of natural justice. Everyone has exclusive right to defend him and nobody may be allowed to deprive him from this. But it was sad to see that a reputed news group had done this. Surely it would hamper the credibility of Journalism. Although the anger expressed by the Union Law Minister, was uncalled for. A person sitting on the chair of Union cabinet Minister should not be allowed to behave like a ordinary person standing in the Fish market.

Salman Khurshid broke his cool at the press conference held in Delhi


         सलमान का राजहठ बनाम ‘‘आज तक’’ का बालहठ
राजेन टोडरिया
केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का पत्रकार सम्मेलन आजकल विवादों का विषय बना हुआ है। अचरज की बात यह है कि कई वरिष्ठ पत्रकार भी निष्पक्ष नजरिया रखने के बजाय एक पक्षीय बात या तर्क रख रहे हैं। इससे मीडिया की साख में तो कोई लाभ नहीं हो रहा है उल्टे ऐसा माहौल बन गया है जिासमें राजनेता एक ओर और मीडिया उसका प्रतिपक्ष बन गया है। सवाल यह है कि क्या मीडिया को राजनेताओं का प्रतिपक्ष बनना चाहिए? क्या मीडिया को यह जनादेश प्राप्त है कि वह राजनेताओं का प्रतिपक्ष बने? सवाल यह भी है कि यदि मीडिया किसी व्यक्ति के पत्रकार सम्मेलन को अपने पक्ष को मजबूत करने के अवसर के रुप में ठसतेमाल करने लगेगा तो पत्रकार सम्मेलन बुलाए ही क्यों जायेंगे। कोई भी व्यक्ति अपने खिलाफ छापी गई या प्रसारित की गई खबर को मंच देने के लिए पत्रकार सम्मेलन क्यों करेगा। यह पत्रकार सम्मेलन की मर्यादाओं का भी सवाल है तो यह भी सवाल है कि पत्रकार सम्मेलन सफाई देने वाले व्यक्ति का मंच है या फिर आरोप लगाने वाले न्यूज चैनल या अखबार का मंच है?पेशेवर पत्रकारिता के हिसाब से यह क्लासिकल सवाल है कि आखिर पत्रकार सम्मेलन किसका माध्यम है? पत्रकार का या पत्रकार सम्मेलन बुलाने वाले का?
देश की पत्रकारिता पिछले दो-तीन सालों से साख के संकट से दो-चार है। अखबार और न्यूज चैनलों को लेकर इतने सवाल कभी नहीं उठे थे जितने आज उठ रहे हैं। बोफोर्स से लेकर हवाला कांड और तहलका के कई स्टिंग आपरेशनों तक कभी पत्रकारिता को इतने यक्ष प्रश्नों का सामना नहीं करना पड़ा जितना कि आज करना पड़ रहा है। इसका एक रटा-रटाया जवाब हो सकता है कि चूंकि मीडिया सत्ताधारियों के भ्रष्टाचार को उजागर कर रहा है इसलिए उसे कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। तो क्या मीडिया पर सवाल मात्र इसीलिए उठाए जा रहे हैं कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ है। यदि ऐसा है तो मीडिया और उसके पत्रकारों को जननायक बन जाना चाहिए था। उनके पक्ष में जनता सड़कों पर उमड़ जानी चाहिए थी। इसके ठीक उलट आज प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्केंडेय काटजू की इसलिए तारीफ होती है कि वह मीडिया की निरकुंशता पर पाबंदी लगाने की बात करते हैं। पत्रकारिता की साख में आ रही कमी के कारण ही देश में एक बड़ा वर्ग है जो मीडिया की मनमानी पर रोक लगाने के पक्ष में तैयार हो गया हैं। मीडिया अपनी शोर मचाने की ताकत के बल पर भले ही मीडिया को रेगुलेट करने की कोशिशों को अंजाम तक न पहुंचने देने में कामयाब रहा हो पर जनमत तेजी से उसके खिलाफ जा रहा है और एक न दिन मीडिया को रेगुलेट करने के लिए देश में कानून आ जाएगा। यह नहीं भूला जाना चाहिए कि यह वही देश है जिसमें कभी प्रेस स्वतंत्रता को सीमित करने या पत्रकारों के साथ ज्यादती होने पर आंदोलन हो जाया करते थे।
अब जरा सलमान खुर्शीद के पत्रकार सम्मेलन की बात कर ली जाय। केंद्रीय कानून मंत्री ने अपने ट्रस्ट पर न्यूज चैनल आज तक द्वारा लगाए गए आरोपों पर सफाई देने के लिए पत्रकार सम्मेलन बुलाया था। यह सलमान खुर्शीद का अधिकार है कि वह झूठ या सच के आधार पर अपने पक्ष को सही साबित करें। यह चैनल या अखबार का अधिकार है कि वह अपनी खबर पर कायम रहे और अपनी खबर में वर्णित तथ्यों का बचाव करे। इन दोनों बातों में मत विभिन्नता है पर लोकतंत्र की यही एक खूबसूरती है जिसमें परस्पर विरोधी पक्ष अपनी-अपनी बात अपने-अपने तर्कों के साथ कह सकते हैं। सलमान खुर्शीद के पत्रकार सम्मेलन में जो अशोभनीय दृश्य पैदा हुआ उसके लिए सलमान खुर्शीद से ज्यादा न्यूज चैनल आज तक का हठवादी रवैया जिम्मेदार है। इस स्टोरी को कवर करने वाले रिपोर्टर ही नहीं बल्कि इंडिया टुडे ग्रुप के सभी न्यूज चैनल,अखबार और पत्रिकाओं के रिपोर्टर सलमान खुर्शीद पर पत्रकार सम्मेलन में पिल पड़े। संवाददाताओं का यह अति उत्साह हो सकता है कि ग्रुप के मालिक अरुण पुरी के बचाव में आगे दिखने के लिए नजर आया हो । लेकिन इससे पत्रकार सम्मेलन की मर्यादायें टूटी हैं। कोई भी व्यक्ति यदि पत्रकार सम्मेलन करता है तो अपनी बात कहना उसका विशेषाधिकार है। क्योंकि वह पत्रकार सम्मेलन का आयोजक है। हर आयोजक को इस बात का अधिकार है कि वह अपने आयोजन को अपनी शर्तों पर चलाए। जिस तरह से इंडिया टुडे ग्रुप के कानक्लेवों के आयोजन पर उन्ही के मंच से सवाल नहीं दागे जा सकते उसी तरह से सलमान खुर्शीद के पत्रकार सम्मेलन को इंडिया टुडे ग्रुप के चैनल,अखबार और पत्रिकायें अपनी खबर के प्रचार के लिए हाईजैक नहीं कर सकते। पत्रकार सम्मेंलन में पत्रकार खबर  के लिए जाते हैं,यह सर्वमान्य तथ्य है। लेकिन यदि वे किसी के पत्रकार सम्मेलन में जबरन खबर पैदा करने की गतिविधि में लिप्त होते हैं तो यह माना जाएगा कि वे पेशेवर पत्रकारिता के मान्य सिद्धांतों और लक्ष्मण रेखाओं का उल्लंघन कर रहे हैं। सलमान खुर्शीद के पत्रकार सम्मेलन में उन्होने आयोजक होने के नाते पत्रकार सम्मेलन के पहले ही पत्रकार सम्मेलन का विषय या यूं कहें कि उसकी सीमा रेखायें तय कर दी थी। हर पत्रकार को आयोजक द्वारा तय की गई सीमारेखा का सम्मान करना चाहिए। यदि किसी पत्रकार को लगता है कि तय सीमारेखा की वजह से उसकी खबर नहीं बन सकती तो उसे या तो पत्रकार सम्मेलन छोड़ देना चाहिए या फिर पत्रकार सम्मेलन के बाद आयोजक से खास मुलाकात कर अपने लिए खबर निकालनी चाहिए।
आज तक और उसके सहयोगी चैनलों तथा पत्र-पत्रिकाओं के पत्रकार लगातार यह प्रयास करते ररहे कि सलमान खुर्शीद उनके द्वारा तय किए गए एजेंडे पर बोलें। इस कोशिश में उनकी बेचैनी और बौखलाहट भी साफ दिखी। यह सीधे पेशेवर पत्रकारिता के मानदंडों का उल्लंघन है कि पत्रकार सम्मेलन को कोई पत्रकार या पत्रकारों का समूह अपने हित के हिसाब से हाईजैक करने की कोशिश करे। यह अनएथिकल व्यवहार है। यह भी साफ दिखा कि आज तक और उसके सहयोगी समाचार संस्थानों के पत्रकार सलमान खुर्शीद को उत्तेजित करने के लिए उकसा रहे हैं। यह पत्रकारिता नहीं है बल्कि यह शुद्ध राजनीति है। ऐसा नहीं है कि आज तक के पत्रकारों को सवाल पूछने का अधिकार नहीं था। पत्रकार सम्मेलन में सवाल पूछना हर पत्रकार का अधिकार है पर जवाब देना या न देना आयोजक का अधिकार है। उसके इस अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए और उसके इस अधिकार को पत्रकारों द्वारा किए जाने वाले अतिक्रमण से बचाया भी जाना चाहिए। हर व्यक्ति चाहे वह दोषी ही क्यों हो, को खुद का बचाव करने का प्राकृतिक अधिकार है। प्रेस या मीडिया उसे इस अधिकार से न वंचित कर सकता है और न उसे अपने हिसाब से जवाब देने को बाध्य कर सकता है। पत्रकार सम्मेलन बुलाकर अपना पक्ष लोगों के सामने रखना हर आदमी का अधिकार है और मीडिया का दायित्व है कि वह पत्रकार सम्मेलन के आयोजक के पक्ष के भावार्थ या शब्दार्थ को जनता के सामने रखे। गलत और सही का निर्णय करना मीडिया का काम नहीं है बल्कि इसे देश की जनता और न्यायालयों या जांच एजेंसियों के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। पूरे पत्रकार सम्मेलन में आज तक के संवाददाता अपनी खबर को जजमेंट माने जाने का बालहठ करते रहे। एक पत्रकार के जीवन में बहुत बार ऐसा समय आता है जब उसे लगता है कि उसकी खबर इतिहास रचने वाली है। लेकिन इतिहास की रचना करना मीडिया का काम नहीं है उसका काम है रिपोर्ट करना। इतिहास बनाना लोकतंत्र में जनता का काम है। लेकिन इस प्रेस कांफ्रेस में आज तक के पत्रकार एक ही समय जज भी बनना चाह रहे थे, जांच एजेंसी का काम भी करना चाहते थे और इतिहास बनाने की जल्दी में सलमान खुर्शीद का सिर भी चाहते थे। यह खबरों के प्रति मुग्धभाव तो हो सकता है पर अपनी खबर के प्रति पेशेवर रुख नहीं है। हर पत्रकार खबर लिखता है और यह सोचकर संतुष्ट हो जाता है कि उसने अपने दर्शकों या पाठकों के सामने सच पेश कर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है। पत्रकार का कर्तव्य जहां पर खत्म होता है वहीं से एक सामाजिक या राजनीतिक कार्यकर्ता का काम शुरु होता है। एक पत्रकार यदि सामाजिक या राजनीतिक कार्यकर्ता बनना चाहेगा तो उसकी निष्पक्षता भंग हो जाएगी और एक हथियार के रुप में मीडिया का असर खत्म हो जाएगा।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि पत्रकार सम्मेलन आयोजक का माध्यम है न कि पत्रकार का। पत्रकार का काम है कि वह गैर पत्रकारों के हाथ में उनका यह माध्यम रहने दे। आखिर एक आदमी के पास अपने खिलाफ लग रहे आरोपों का जवाब देने का यही तो एक उपाय है। यदि पत्रकार इस औजार को भी गैर पत्रकारों के पास नहीं रहने देंगे तो मीडिया से बाहर के लोग क्या मीडिया के प्रचारतंत्र के आगे असहाय नहीं हो जायेंगे? क्या यह अलोकतांत्रिक नहीं है कि मीडिया अपनी स्टोरी के खिलाफ प्रभावित आदमी को अपना पक्ष ही नहीं रखने दे। आज तक के पत्रकार ने अपना सवाल रखा। यदि खुर्शीद उसका जवाब नहीं देना चाहते थे यह उनका अधिकार था। यदि वह आजतक के मालिक पर आरोप लगा रहे थे तो यह उनका अधिकार था। आजतक और उसके सहयोगी समाचार संस्थानों के पत्रकारों के पास यह रास्ता था   कि वे अपने सवाल का जवाब न दिए जाने के विरोध में वाकआउट कर जाते और अपने चैनल और अखबारों में जनता को बताते कि सलमान खुर्शीद ने उनके इन-इन सवालों का जवाब नहीं दिया। यदि यह भी काफी नहीं होता तो आजतक ग्रुप के मालिक या प्रबंधन पत्रकार सम्मेलन बुलाकर मीडिया के सामने अपनी बात रख सकते थे। यह ज्यादा शोभनीय होता। यही जायज हथियार हैं जिनके माध्यम से वह अपनी बात कहते। यदि पत्रकार सम्मेलनों में पत्रकार आयोजकों से ऐसी ही बालहठ करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब या तो लोग पत्रकार सम्मेलन बुलाना बंद कर देंगे या फिर अपने जान पहचान के पत्रकारों को बुलाकर अपना पक्ष रखने लगेंगे। इस तरह की अप्रिय वारदातों को रोकने के लिए वरिष्ठ पत्रकारों को पहल करनी चाहिए। पर दुख की बात है कि अभय दुबे और ओम थानवी जैसे वरिष्ठ पत्रकार भी आजतक के पत्रकारों के व्यवहार को सही ठहरा रहे हैं। ऐसी स्थिति में यह अत्यंत दुखद होगा कि भारतीय पत्रकार परिषद या किसी और संस्था को पत्रकार सम्मेलनों में पत्रकारों के आचरण को भी मर्यादित करने के लिए आचार संहिता बनानी पड़े।यदि पत्रकार सम्मेलन ऐसे ही विवादों और हंगामों की भेंट चढ़ते रहे तो कोई अचरज नहीं होगा कि पत्रकार सम्मेलनों के लिए भी आचार संहिता तय करनी पड़े। भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष ने सलमान खुर्शीद के पत्रकार सम्मेलन में हुए हंगामे पर जस्टिस वर्मा से जांच करने के लिए आग्रह कर अचछा किया है। इससे आजतक और सलमान खुर्शीद दोनों के व्यवहार की जांच हो सकेगी। बेहतर हो कि जस्टिस वर्मा पत्रकार सम्मेलन आयोजित करने वाले लोगों को अपना पक्ष रखने की आजादी की रक्षा के लिए भी दिशा-निर्देश सुझायें। एक बिरादरी के रुप में पत्रकारों के लिए यह शर्मनाक होगा परंतु एक संस्था के रुप में खबरपालिका की मर्यादा बनाए रखने के लिए यह जरुरी भी है।
अंत में जरा सलमान खुर्शीद के राजहठ का जिक्र भी जरुरी है। वह कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री हैं और कानूनविद भी। माना जाना चाहिए कि उनके बाल धूप में नहीं बल्कि राजनीति के जटिल सवाल हल करते हुए ही सफेद हुए होंगे। इतने साल बाल सफेद कराने के बावजूद सलमान खुर्शीद वही कर बैठे जो आजतक के पत्रकार चाहते थे। इसे उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही नतीजा क्यों न माना जाना जाय। यह सही है कि उस दिन सलमान तय कर आए थे कि वह पत्रकार सम्मेलन में अपने हिसाब से बैटिंग करेंगे। लेकिन बेहतर होता कि वह उस पिच को भांप लेते जिन पर उनको बैटिंग करनी थी। बाउंसरों को कब हुक करना है कब डक करना है, क्रिकेट का यह बुनियादी ज्ञान उनके बेहद काम आ सकता था। लेकिन राजहठ का स्वभाव ही ऐसा होता है कि जब तक आप सत्ता में होते हैं तब तक आपको लगता है कि आप हर बाल पर छक्का मार सकते हैं। 
    


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