सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

Ganga Samgra : Is R.S.S. fabricating a conspiracy against Uttrakhand?



Uma Bharti is on her Ganga Samagra Yatra from Ganga sagar to Gangotri. R.S.S.took over all arrangements of this yatra but B.J.P. is also helping to make this yatra a great successa Although the Uma Bharti unable to get sufficient response for his yatra despite the full support from R.S.S. and its sister organizations. The Ganga Samagra Yatra has causing a series of controvercies. The confrontation between Mamta Banerji and Uma Bharti already made this yatra a controvercial issue now a regional outfit Uttrakhand Janmanch has declared to oppose this yatra in Uttrakhand. Janmanch has termed this yatra anti hill people. The regional outfit said that Uma Bharti is opposing the hydro projects of Uttrakhand. Janmanch claimed that R.S.S. and B.J.P.has declared a water war against the people of hills in Uttrakhand .


                  आरएसएस के गंगा समग्र के पीछे का सच

यदि आप गौर से देखें तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और आरएएसएस के तौर तरीकों में काफी समानता है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने देश में हान श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए चीन के विभिन्न इलाकों में उईगर और तिब्बती समेत अन्य धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों की आबादी को संतुलित करने के लिए वहां हान जाति के शुद्ध चीनियों को बड़ी तादाद में बसाया। चीन में यह प्रयोग कुछ कामयाब भी रहा। इसके कारण चीन में आतंकवाद भी पैदा हुआ। मुस्लिम चरमपंथियों और तिब्बतियों के विद्रोह लगातार हो रहे हैं।यह स्वाभाविक भी है क्योंकि कोई भी समाज अपनी धरती पर यदि जबरन अल्पसंख्यक बनाया जाएगा तो वह हिंसा के जरिये अपने गुस्से को अभिव्यक्त करेगा ही। आरएसएस भी यही प्रयोग उत्तराखंड में कर रहा है। इससे पहले वह इस प्रयोग को सफलतापूर्वक छत्तीसगढ़ में लागू कर चुका है। छत्तीसगढ़ में बाहरी आाबादी का वर्चस्व स्थापित हो जाने से वहां भाजपा का एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो चुका था। वहां आरएसएस-भाजपा के खिलाफ जो आदिवासी विद्रोह था उसे सलवाजुड़म प्रयोग के जरिये दो हिस्सों में बांट दिया गया। अब वहां आदिवासी ही आदिवासी से लड़ रहा है दोनों ही ओर से आदिवासी मारा जा रहा है। जाहिर है कि इस अंतहीन लड़ाई से आदिवासियों की आबादी ही कम हो रही है लेकिन जो बाहर का व्यक्ति है वह इस आदिवासी क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर ऐश कर रहा है। अब यही प्रयोग उत्तराखंड में किया जा रहा है। उत्तराखंड झारखंड और छत्तीसगढ़ की तुलना में ज्यादा आसान राज्य है। क्योंकि यहां सामाजिक विभाजन की लकीरें पहले ही खिंची हुई हैं। गढ़वाली और कुमाऊंनी के अलावा ब्राह्मण और राजपूत के नाम पर समाज एक हिस्सा पहले से ही विभाजित हैं इन लकीरों को गहरा कर पहाड़ियों को तीन हिस्सों में तोड़ना आसान हैं जबकि आदिवासियों में इस तरह का विभाजन नहीं था। गौर से देखें तो आप देख सकेंगे कि जाति और क्षेत्र के नाम पर सबसे ज्यादा गोलबंदी भाजपा के नेता कराते रहे हैं। वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि यह आरएएसएस के एजेंडे को लागू करने के लिए जरुरी हैं। आखिर आरएसएस जिन गैर पहाड़ियों का वर्चस्व उत्तराखंड में चाहता है वह तभी मुमकिन है जब पहाड़ी समाज गढ़वाली-कुमाऊंनी और ब्राह्मण-ठाकुर में पूरी तरह से बंट जाएगा। तब यह बाहरी वर्ग पहाड़ के प्राकृतिक संसाधनों पर काबिज होकर उसी तरह से ऐश करेगा जिस तरह से छत्तीसगढ़ मे आए बाहरी लोग कर रहे हैं। इससे पहाड़ी समाज का एक हिस्सा अपने गुजर बसर के लिए बाहरी कारोबारी की सेवा में जुट जाएगा और दूसरा हिस्सा बागी होकर हिंसक रास्ते पर चल पड़ेगा। आरएसएस को इस हिंसा से कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वह जानता है कि भारत के पास इतना बड़ा सैन्य तंत्र है कि उसे पराजित कर पाना लगभग नामुमकिन है। तब केंद्र और राज्य सरकार उसी तरह पहाड़ी को पहाड़ी के हाथों से मरवाएगी जिस तरह से छत्तीसगढ़ से आदिवासी मरवाए जा रहे हैं।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और आरएसएस में एक और समानता है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का मानना है कि चीन तभी एक रह सकता है जब चीन के हर राज्य में हान नस्ल के चीनियों का वर्चस्व रहेगा। आरएसएस भी मानता है कि भारत एक संघीय समाज नहीं है बल्कि एकात्मक राष्ट्र है। इसीलिए वह उत्तराखंड में बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर पाबंदी लगाए जाने का विरोधी है। इसीलिए वह उत्तराखंड की  पहाड़ी पहचान के खिलाफ है। इसलिए जब हम हरिद्वार को मिलाए जाने या स्थायी निवास के शासनादेश के सवाल या समग्र गंगा के सवाल को देखें तो उसे कैजुअल तरीके से तात्कालिकता की कसौटी पर न देखें बल्कि उसके पीछे छुपी पूरी राजनीति और उसके जरिये भविष्य की जटिलताओं को समझें। आरएसएस का गंगा समग्र आज ही क्यों आया? यह टिहरी बांध के समय क्यों नहीं आया जब वास्तविक रुप से बांध बन रहा था। जब लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो रहे थे। तब क्यों विश्व हिंदू परिषद और अशोक सिंघल पीछे हट गए? तब क्यों नाममात्र का विरोध किया गया और आज जब कहीं कोई बांध ही नहीं बन रहा तब क्यों आरएसएस गंगा समग्र के नाम से देश भर में बड़ा आंदोलन क्यों खड़ा कर रहा है? दरअसल टिहरी बांध आरएसएस के स्थायी स्वार्थों को कमजोर नहीं करता बल्कि उन्हे मजबूत कर रहा था। एक तो पहाड़ की एक लाख की आबादी को मैदान में  बसाकर तितर-बितर हो जाने वाली थी। इससे उनकी वोट बैंक की ताकत कम होने वाली थी।  दूसरा यह कि टिहरी बांध पहाड़ का सर्वाधिक सर्वनाश करने के बावजूद पहाड़ की अथव्यवस्था को मजबूत नहीं कर रहा था। वह यूपी और केंद्र की अर्थव्यवस्था को ही मजबूत कर रहा था। इसीलिए आरएसएस के कट्टर स्वयंसेवक भगत सिंह कोश्यारी ने आनन फानन में टिहरी बांध के गेट डलवा कर आरएसएस के उस एजेंडे को पूरा कर दिया। लेकिन अब आरएसएस को अविरल गंगा की चिंता सताने लगी है। आरएसएस ने गंगा समग्र के नाम से उमा भारती की गंगा समग्र यात्रा पर जो पुस्तिका निकाली है उसमें साफ लिखा है कि गंगा अपने आप में गंगा नहीं है और न भगीरथी और अलकनंदा के मिलने से गंगा बनती है। आरएसएस का कहना है कि इन गाड-गधेरों,नदियों के मिलने से ही गंगा समग्र बनती है। गंगा समग्र की आरएसएस की यही अवधारणा है। किताब कहती है कि गंगा में वे सारे गाड-गधेरे और सहायक नदियां शामिल हैं जो गंगा में मिलते हैं। इन्ही गाड-गधेरों और सारी सहायक नदियों से आने वाले पानी में वे औषधि गुण होते हैं जो गंगाजल में पाए जाते हैं। किताब कहती है कि गंगा ,उसकी सहायक नदियां और पहाड़ के गाड-गधेरे हर साल 36 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी पहाड़ से लाती है और मैदानों के खेतों को उर्वर बनाती है। इसमें दस प्रकार की ऐसी उपजाऊ मिट्टी है मैदान के लिए वरदान है। यह मिट्टी मैदान के आठ करोड़ हेक्टेयर खेतों को सरसब्ज बनाती है। यह किताब कहती है कि गंगा समग्र यानी सहायक नदियां और गाड गधेरे गंगा का हिस्सा हैं। इसलिए यदि गंगा राष्ट्रीय नदी है तो इसमें पहाड़ के सारे गाड-गधेरे और यमुना समेत सारी नदियां शामिल हैं।
यह किताब आरएसएस की धार्मिकता की भी पोल खोलती है। किताब में आरएसएस की मुख्य चिंता गंगा को लेकर नहीं है बल्कि उस मिट्टी को लेकर है जो मैदान के खेतों को सरसब्ज करती है। यानी आरएसएस के आंदोलन का लक्ष्य धार्मिक नहीं है बल्कि मैदानी आर्थिकी है। यानी कि उमाभारती की गंगासागर से गंगोत्री यात्रा और आरएसएस का गंगा समग्र पहाड़ के विरुद्ध मैदान की चिंता और चिंतन का विचार है। किताब में साफ कहा गया है कि यदि गंगा,उसकी सहायक नदियों और गाड-गधेरों का प्राकृतिक प्रवाह कहीं भी रोका जाता है तो उससे मैदान में पहंुचने वाली करोड़ों टन उपजाऊ मिट्टी पहाड़ में ही रुक जाएगी। आरएसएस का कहना है कि बरसात में जो उपजाऊ मिट्टी पहाड़ से बहकर मैदान में जाती है उसे पहाड़ में न रोका जाय। यानी पहाड़ के लोग मैदान के हितों की खातिर अपनी उपजाऊ मिट्टी को बेरोक टोक मैदान में जाने दें। आरएसएस का यह चिंतन पहाड़ के खिलाफ मैदान के साथ है। इसीलिए उत्तराखंड जनमंच कहता है कि आरएसएस एक मैदानी क्षेत्रवादी संगठन है जो अपने मूल विचार में पहाड़ विरोधी है। सवाल उठता है कि आरएसएस गंगा समग्र के जरिये क्या चाहता है? मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार जल संसाधन समवर्ती सूची का विषय है। यानी इनके लिए राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही कानून बना सकते हैं। अंतरराज्यीय नदियों के लिए केंद्र सरकार कानून बना सकती है लेकिन राज्य की आंतरिक नदियों के प्रबंधन और नियोजन में केंद्र कोई दखल नहीं दे सकता। यह पूरी तरह से राज्य के अधिकार क्षेत्र का मामला है। उत्तराखंड में भगीरथी,अलकनंदा समेत गंगा और यमुना की सभी सहायक नदियां और सारे गाड-गधेरे राज्य की आंतरिक नदियां हैं जिनके बारे में केवल राज्य ही कानून बना सकता है। देवप्रयाग के बाद गंगा भी अंतरराज्यीय नदी हो जाती है इसलिए इसके बारे में केंद्र को कानून बनाने का हक हासिल है। आरएसएस को आंतरिक नदियों को लेकर उत्तराखंड के अधिकारों से ही सर्वाधिक समस्या है। इसीलिए वह मांग कर रहा है कि गंगा को सिफ्र देवप्रयाग से अंतरराज्यीय नदी न माना जाय बल्कि गंगा में मिलने वाले सभी सहायक नदियों और गाड गधेरों को भी अंतरराज्यीय नदियां माना जाय। वह चाहता है कि केंद्र सरकार गंगा समग्र को एक ही नदी माने जाने को लेकर एक केंद्रीय कानून पारित करे। आरएसएस भले ही गंगा समग्र आंदोलन में लगा हो पर उत्तराखंड के लोगों के लिए यह जानना जरुरी है कि यदि आरएसएस के हिसाब से गंगा समग्र नदी यदि राष्ट्रीय नदी घोषित की गई और गंगा समग्र के लिए एक केंद्रीय कानून बना दिया गया तो उसका दुष्प्रभाव उ त्तराखंड पर क्या पड़ने वाला है? गंगा,उसकी सहायक नदियां, गाड-गधेरे यदि एक केंद्रीय कानून के तहत लाए जाते हैं तो नयार, जलकूर, जाड़ गंगा, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिंडर, भिलंगना समेत हर गाड गधेरा और नदी केंद्र सरकार के मातहत आ जायेंगे। इन गाड गधेरों, नदियों पर सिंचाई योजनायें,पनबिजली परियोजनायें, पंपिंग पेयजल योजनायें समेत उन सारी गतिविधियों, जिनसे इन गाड-गधेरों के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा आती हो, के लिए राज्य सरकार को केंद्र की अनुमति लेनी होगी। ये अनुमतियां दो तरह की होंगी। एक पर्यावरण स्वीकृति और दूसरी जल संसाधन मंत्रालय की मंजूरी। यानी यदि पहाड़ के किसी ग्रामीण को अपने खेत की सिंचाई के लिए गाड-गधेरे से एक गूल भी निकालनी हो तो उसके लिए भी केंद्र सरकार की अनुमति लेनी होगी। अंतर राज्यीय नदी होने के कारण उत्तरप्रदेश,बिहार, हरियाणा समेत गंगा के प्रवाह वाले हर राज्य को पहाड़ के गाड-गधेरों, सहायक नदियों पर बनने वाली हर प्रकार की परियोजना में दखल देने का अधिकार मिल जाएगा। ऐसे में पहाड़ के हर इलाके में किसी भी प्रकार का विकास कार्य करना असंभव हो जाएगा। क्योंकि हर मैदानी राज्य,संगठन को अंतरराज्यीय नदी होने के कारण गंगा के पर्यावरण पर प्रतिकूल असर के नाम पर सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार मिल जाएगा। इस प्रकार हर गाड-गधेरा और सहायक नदी केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के दायरे में आ जायेंगे।  रिवर राफ्टिंग, बोटिंग, मछली मारना और नदी या गाड-गधेरों के निकट होटल और सड़क बनाने समेत सभी व्यावसायिक और विकास योजनायें केंद्र की अनुमति के बिना नहीं कराए जा सकेंगे। यानी उत्तराखंड पूरी तरह से केंद्र सरकार का गुलाम हो जाएगा। केवल वही लोग नदी किनारे व्यावसायिक करा सकेगे जिनकी पहंुच केंद्र सरकार तक होगी। यानी पहाड़ के लोग होटल,बोटिंग,मछली मारने और रिवर राफ्टिंग व्यवसाय से बाहर हो जायेंगे और ये व्यवसाय बाहर के लोगों के हाथों में चलें जायेंगे। स्थानीय लोगों को कंपटीशन से बाहर कर बाहरी व्यापारियों को पहाड़ के संसाधनों पर काबिज कराना भी आरएसएस के इस आंदोलन का ही हिस्सा है। पनबिजली न बनने से उत्तराखंड का औद्योगिक विकास रुकेगा,कारोबार घटेगा और पहाड़ों से पलायन बढ़ेगा जिससे आबादी और राजनीति में पहाड़ अल्पमत आ जाएगा। आरएसएस यही तो चाहता है।पनबिजली परियोजनाये का पूरा नियंत्रण केंद्र के हाथ चले जाने से यह क्षेत्र पूरी तरह से बाहर की कंपनियों के हाथ चला जाएगा और राज्य सरकार उन पर नियंत्रण रचाने के लिए कोई कानून नहीं बना सकेगी। हिमाचल की तरह उत्तराखंड छोटी पनबिजली परियोजनायें बनाने का काम स्थानीय व्यवसायियो और संस्थाओं को सौंपने का कानून नहीं बना सकेगा। यानी कि उत्तराखंड एक झटके में गढ़वाल क्षेत्र में बहने वाली सारी नदियों से हाथ धो बैठेगा। इससे रोजगार और विकास के मोर्चे पर समूचा गढ़वाल नष्ट हो जाएगा।
इस किताब में आरएसएस ने पहाड़ के लोगों को भरमाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गंगा को अविरल बहने देने के लिए मदद दिए जाने की वकालत की है। लेकिन मदद कैसी हो,कितनी हो और इसका मानक क्या हो, इस पर आरएसएस के कर्णधार चुप हैं।पनबिजली से मात्र बिजली नहीं बनती और केवल पैसा नहीं मिलता। उससे पनबिजली परियोजनाओं के क्षेत्रों में पैसा आता है,व्यापार बढ़ता है और रोजगार सृजित होता है।मात्र18,000 मेगावाट बिजली बनने से उत्तराखंड को 180 अरब रुपये की सालाना आमदनी होगी। यदि इसका आधा भी राज्य सरकार ने नए सरकारी कर्मचारियों को संविदा पर नियुक्त करने में लगाया तो पांच लाख लोगों को 15000 रु0 महीने की नौकरी मिल सकती हैं। यदि 90 अरब रुपये पहाड़ के सात लाख ग्रामीण परिवारों को 10,000 रु0 महीने का जीवन निर्वाह भत्ता दिया जा सकता है। जाहिर है कि केंद्र सरकार न तो इतना पैसा उत्तराखंड को गंगा पर पनबिजली न बनाने देने के लिए तैयार होगा और न उसके पास इतने संसाधन हें कि वह हर साल 18000 करोड़ रुपये उत्तराखंड को दे सके।  इसलिए आरएसएस जलविद्युत बनाने के बदले उ त्तराखंड को जो मदद देने की बात कर रहा है वह झूठ है और इस राज्य के सीधे-सादे लोगों को बहकाने के लिए की जा रही है। दरअसल आरएसएस भारत चीन सीमा पर आर्थिक रुप से एक सशक्त राज्य नहीं चाहता। क्योंकि उसे डर है कि चीन सीमा पर एक आत्मनिर्भर और समृद्ध राज्य केंद्र पर निर्भर नहीं होगा इसलिए वह केंद्र के दबाव में नहीं आएगा। दूसरा ज्यादा विद्युत उत्पादन करने के कारण केंद्र और बाकी मैदानी राज्य उत्तराखंड के दबाव में होंगे। यह आरएसएस के नजरिये से ठीक नहीं है। क्योंकि ऐसे राज्य के पास अपनी आर्थिक शक्ति के कारण भारतीय राष्ट्र के साथ सकरने की ताकत होगी। एक मजबूत केंद्र की धारणा में यकीन रखने वाले आरएसएस को सीमा पर आर्थिक शक्ति से संपन्न पहाड़ी राज्य स्वीकार्य नहीं है। वह भारत-चीन सीमा पर एक कमजोर और पूरी तरह से केंद्र पर आश्रित राज्य चाहता है ताकि इस राज्य पर केंद्र और बाकी मैदानी राज्य अपनी शर्तें थोप सकें। आरएसएस का गंगा समग्र आंदोलन उत्तराखंड को कमजोर,पराश्रित,कंगाल और केंद्र के समक्ष भिखमंगा राज्य बनाने की अघोषित मुहिम भी है। आरएसएस ने उत्तराखंड के लोगों के सामने एक ऐसा संकट खड़ा कर दिया है कि यदि गंगा समग्र एक विचार के रुप में भी मान्यता पाता है तो यह एक राज्य के रुप में  उत्तराखंड के अस्तित्व और एक नस्ल के रुप में पहाड़ के लोगों के लिए सबसे खतरनाक विचार है। इस विचार के पीछे मैदानी विस्तारवाद ही नहीं है बल्कि पहाड़ी लोगों को गंगा और यमुना के मैदान के लोगों के बीच एक शत्रु के रुप में प्रदर्शित करने की कुटिल चाल भी छुपी हुई है। आरएसएस गंगा और यमुना के मैदान में मुस्लिम आबादी ज्यादा होने के कारण आरएसएस यहां राममंदिर आंदोलन के जरिये भी भाजपा को मजबूत नहीं बना पाया। अब आरएसएस के रणनीतिकार पहाड़ियों को उपजाऊ मिट्टी रोकने का दोषी ठहराकर उन्हे गंगा और यमुना के मैदानों में खलनायक बना देना चाहते हैं ताकि पहाड़ी लोगों के खिलाफ नफरत का अभियान चलाकर वहां किसानों के बीच भाजपा को मजबूत बनाया जा सके। आरएसएस और भाजपा यह मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि पहाड़ों से बहकर जाने वाली मिट्टी का संरक्षण करना और उसे सिंचाई परियोजनाओं के जरिये पहाड़ के लोगों के खेतों में पहुचाया जाना चाहिए। क्योंकि उस मिट्टी पर पहला अधिकार पहाड़ के किसानों का ही है। यह मिट्टी उन्ही के खेतों और जंगलों से बहकर जा रही है। आरएसएस एक बार भी यह नहीं कहता कि पहाड़ में भूस्खलन और जमीन की गुणवत्ता में आ रही गिरावट रोकने के लिए पहाड़ में बरसाती नदी-नालों से हो रहे भूक्षरण को पूरी तरह से रोका जाना चाहिए। उल्टे वह उस मिट्टी को मुद्दा बनाकर मैदानी किसानों को पहाड़ के लोगों के खिलाफ भड़का रहा है। इन तमाम तथ्यों की रोशनी में उत्तराखंड निवासी आरएसएस कार्यकर्ताओं,पदाधिकारियों,भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को आरएसएस के मैदानी नेतृत्व से बगावत कर उ त्तराखंड की जनता के साथ खड़ा होना होगा या फिर उसी तरह जनता के गुस्से का शिकार होना होगा जिस तरह से 1994 में कांग्रेस के नेता हुए थे। पहाड़ के तमाम लोगों को अपने गाड-गधेरे,नदी-नाले और गंगा-यमुना क ेजल पर अपने पहले अधिकार की रक्षा के लिए आरएसएस के गंगा समग्र के खिलाफ बहुत बड़ा आंदोलन छेड़ना होगा। सबसे पहले उत्तराखंड सरकार को आगे आनकर कहना होगा कि गंगा समग्र पूरी तरह से उ त्तराखंड विरोधी विचार है। सभी राजनीतिक दलों को आरएसएस के गंगा समग्र आंदोलन की निंदा करनी होगी और पहाड़ के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे इस षडयंत्र की खुली मुखालफत करनी होगी।


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