रविवार, 23 सितंबर 2012

India Today published Rajen Todariya's article on Uttakashi Flood and Ukhimath cloud Burst

                 India Today Published an article of
                 Rajen Todariya in its Guest Cloumn

The premier Hindi weekly India Today had published the article of noted journalist and former Resident Editor of Dainik Bhaskar S.Rajen Todariya's article on natural calamities and poor disaster management in the guest column of its latest issue. Rajen Todariya described that the incidents of cloud bursts in the different part of Uttrakhand took 113 lives with in one and half months.He told in his article that the furious Bhagirathi killed 29 people but these live could be saved if Government would have taken average precautionary steps. He further exposed the carelessness in the government system and said that there were no vigil on the flow of Bhagirathi and its tributaries. 
Rajen Todariya elaborated in his article the complete failure of Government machinery  in Ukhimath,where 70 people were killed in a single night. He said that 23 years back  similar incident had killed more than hundred people in the same area but government is unwilling to learn from the experiences of past. He said in his article these killings are man made not due to the natural disaster. He tells us that it should be heard loud and clear by all people of hills of Uttrakhand that Government machinery and political leadership has become a disaster for the people. He said that the disaster management department has been turned into a dead bodies management department.




                                                        बादल नही सरकार ने मारा 
एस0राजेन टोडरिया

21 वीं सदी के भारत का मुख्य गोलार्द्ध चांद पर जाने की तैयारी मे है, देश वालमार्ट के स्वागत में लाल कालीनें बिछा रहा है, अग्नि मिसाइलें उपमहाद्वीप की सीमाओं को चीरकर 7000 किमी दूर बैठे दुश्मन को नष्ट करने की तैयारी में जुटी हैं, भारतीय उद्योग विश्वविजय का सपना देख रहे हैं ठीक इसी वक्त में भारत के दूसरे गोलार्द्ध में स्थित उत्तरकाशी में गंगा की सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में बादल फटता है पर चांद पर जाने वाले देश को खबर तक नहीं होती और 29 लोग बाढ़ से उफनती भगीरथी के जबड़े में समा जाते हैं। इस घटना के लगभग चालीस दिन बाद बादलों में छिपी मौत फिर झपट्टा मारती है और ऊखीमठ से लेकर बागेश्वर तक एक ही दिन में 75 लोग भूस्खलन में दफन हो जाते हैं। इस दूसरे गोलार्द्ध में मानसून हर साल मौत का पैगाम लेकर आता हैं और सरकार का आपदा प्रबंधन का अमला लाशें बरामद कर उन्हे अपने आंकड़ों में दर्ज भर कर लेता ताकि सनद रहे कि 21 वीं सदी के भारत में आपदाओं में लोग वैसे ही मारे जा रहे थे जैसे 19 वीं सदी के भारत में। फर्क बस इतना है कि तब लाशें बरामद नहीं हो पाती थी और अब हमारे पास लाशें बरामद करने की टेक्नोलाॅजी है।
उत्तराखंड में इस साल अब तक प्राकृतिक आपदा में 120 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इनमें से अकेले ऊखीमठ के आधा दर्जन गांवों में ही 70 लोग मारे जा चुके हैं। उत्तरकाशी से लेकर ऊखीमठ और बागेश्वर तक सारी घटनायें बादल फटने के कारण भारी वर्षा से हुई हैं। उत्तरकाशी में बादल फटने से भारी वर्षा हुई जिसके कारण भगीरथी की सहायक नदियों में बाढ़ आ गई। बाढ़ में 29 लोग बह गए। यह जानकर अचरज हो सकता है कि राज्य सरकार ने गंगा और उसकी सहायक नदियों में बाढ़ पर निगरानी रखने के लिए कोई नेटवर्क ही स्थापित नहीं किया है। भगीरथी में बाढ़ आने हुई मौतों को रोका जा सकता था यदि बाढ़ निगरानी तंत्र होता। बाढ़ की पूर्व सूचना मिलने पर नदी तट खाली कराने का तंत्र होता ये मौतें नहीं होती। भगीरथी और उसकी दो सहायक नदियों में जिस मात्रा में बड़े पत्थर,पेड़ और मलबा बह रहा था उससे नदी के पानी रफ्तार काफी कम हो गई थी लेकिन पूर्व चेतावनी देने का कोई सरकारी तंत्र न होने के कारण लोग बाढ़ में बह गए। भटवारी में किसी गांव से आई पूर्व सूचना के कारण नदी तट पर बसे लोगों को भागने का समय मिल गया। असी गंगा में बाढ़ के कारण जो भयानक शोर हो रहा था उससे डर कर तटवर्ती इलाके के काफी लोग सुरक्षित स्थानों पर भाग गए थे। केवल वही लोग बहे जो खतरे का अनुमान लगाने में चूक गए या सामान ले जाने के लालच में बाढ़ में फंस गए। पूर्व चेतावनी का कोई भी इंतजाम न होने के कारण भगीरथी के बिल्कुल किनारे पर बसे जिला मुख्यालय उत्तरकाशी में प्रशासन को बाढ़ के बारे में कोई खबर ही नहीं थी। बाढ़ जब बिल्कुल सर पर आ गई तब लोग अफरातफरी में भागे। यह रात केे साढ़े दस बजे का समय था इसीलिए सैकड़ों जानें बच गईं। ऊखीमठ में 1998 में सौ ज्यादा लोग भूस्खलन में मारे गए थे तब इस इलाके में लगभग तीन दर्जन गांवों को सुरक्षित स्थानों पर बसाने की बात जोरशोर से कही गई थी। तबसे इस इलाके में बादल फटने से हुए भूस्खलन में 200 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं लेकिन खतरे की जद में बसे गांवों को बसाने की दिशा में रत्ती भर भी प्रगति नहीं हुई है।
ऐसा नहीं है कि बादल फटने की घटनाओं के इलाकों की पहचान नहीं हो सकती हो। उत्तरकाशी, टिहरी,चमोली,पिथौरागढ़ समेत अधिकांश जिलों में बादल फटने के कारण होने वाले भूस्खलनों के नजरिये से संवेदनशील इलाकों की आसानी से पहचान हो सकती है। भूविज्ञानियों की कई रिपोर्टें सरकारी विभागों में बरसों से धूल फांक रही हैं। राज्य में 233 गांवों के लगभग 58,650 लोग मौत के जबड़ों में रह रहे हैं। असुरक्षित स्कूल भवनों के कारण एक लाख बानवे हजार छात्र-छात्रायें खतरे की जद में हैं। लेकिन राज्य सरकार साधनों के अभाव का रोना रोती हे और केंद्र सरकार कोई मदद देने को तैयार नहीें हैं। 233 गांवों की इस आबादी के पुनर्वास के लिए 5825 हेक्टेयर जमीन और 3000 करोड़ रुपये चाहिए। प्राईमरी और इंटर कालेजों के असुरक्षित भवनों के पुनरोद्धार के लिए लगभग 300 करोड़ रु0 चाहिए। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें एक पैसा इस मद में खर्च करने को तैयार नहीं है। राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग का हाल यह है कि उसके पास केवल लाशें निकालने के लिए उपकरण हैं। किसी प्राकृतिक आपदा के समय केंद्रीय आपदा राहत बल दिल्ली से सड़क मार्ग के जरिये भेजे जाते हैं। आपदा प्रभावित इलाके में पहुचने में इन बलों को दो से तीन दिन का समय लग जाता है। जाहिर है कि तब तक आपदा प्रभावित लोगों के बचने की कोई आशा नहीं होती। आपदाओं में हर साल औसतन सौ ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने राज्य में केंद्रीय आपदा राहत बल का कोई केंद्र स्थापित नहीं किया।
दरअसल इस हिमालयी राज्य में आपदा प्रबंधन का कोई ढ़ांचा ही नहीं है। जिलों में आपदा प्रबंधन विभाग के इक्का दुक्का अफसर राजस्व विभाग के मातहत ही काम करते हैं। राजस्व विभाग का जो राहत तंत्र ब्रिटिश काल में आपदा प्रभावितों की मदद करता था वही ढ़ांचा अब तक बरकरार है। आपदा प्रबंधन दरअसल राहत प्रबंधन है जो भ्रष्टाचार और अक्षमता के कारण ब्रिटिश काल से भी बुरी हालत में है। जबकि टेक्नोलाजी के हिसाब से सरकार के पास मौसम के आंकड़े और पूर्वानुमान 24 या 48 घंटे पहले आ जाते हैं,बादल फटने की चेतावनी राज्य सरकार के पास काफी पहले होती है लेकिन ये जानकारियां सचिवालय के आपदा न्यूनीकरण विभाग में पड़ी रहती हैं और उन पर कोई गौर नहीं फरमाता। जबकि संचार के आधुनिक साधनों के जरिय इन पूर्व चेतावनियों को संबधित इलाकों में प्रसारित किया जा सकता है। यही नहीं पूरी सरकारी मशीनरी को अलर्ट पर रखा जा सकता है।
 आपदा प्रबंधन की हालत ये है कि उसके पास खतरे की जद में रह रही आबादी के आंकड़े तक नहीं हैं। राज्य सरकार मानसून से पहले बचाव के इंतजाम करने के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक तक करने की जहमत नहीं उठाती। जबकि मानसून के दौरान सभी विभागों को हाई अलर्ट पर रखा जाना चाहिए और उन इलाकों में ज्यादा सरकारी कर्मचारी तैनात किए जाने चाहिए। आपदा राहत का अफसोसनाक पहलू यह भी हे कि बाढ़ और भूस्खलन से उजड़े लोगों को राहत देने के लिए अभी भी ब्रिटिश काल के मानकों और पद्धतियों का सहारा लिया जा रहा है। इसी कारण निजी संपत्ति के भारी नुकसान के बावजूद कुल राहत में आम लोगों के जन धन की हानि का मुआवजा मात्र एक प्रतिशत के आसपास होता है। राहत का 99 प्रतिशत हिस्सा सरकारी विभागों के पास पहुंचता है। ऐसा इसलिए भी है कि सरकारी विभागों के लिए प्राकृतिक आपदा लाटरी खुलने जैसी घटना होती है। जितना ज्यादा नुकसान उतना ज्यादा भ्रष्टाचार! ये हालात बताते हैं कि उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा से होने वाली मौतों में ज्यादातर लोग आपदा से नहीं बल्कि सरकारी निकम्मेपन से मारे जा रहे हैं।



1 टिप्पणी:

  1. आपदा राहत में सरकार ने क्या दिया दो मोमबत्तियां औए १०० ग्राम चावल .बहुगुणा सरकार तो उत्तराखंड के लिए शनि साढ़ेसाती से कम नहीं है .

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