मंगलवार, 17 जुलाई 2012

The Satanic verses of The Independent and Time : The hue and cry of Indian Media


                  Indian Media is still slaves of British Raj !
            क्या भारतीय मीडिया अभी भी पश्चिम का गुलाम है !
By Rajen Todariya


पहले टाइम मैगजीन और अब द इंडिपेंडेंट अखबार ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ कुछ टिप्पणियां की है। भारत के लोग न टाइम को जानते हैं और न इंडिपेंडेंट को लेकिन इस देश का कुलीन वर्ग के  लिए अमेरिका और इंग्लैंड आज भी मक्का हैं और विदेशी अखबार में छपी रिपोर्टें पवित्र कुरान की आयतें हैं। लेकिन मित्रों! ये टिप्पणियां ईश्वर या पैगंबर के मुंह से निकली आयतें नहीं हैं। ये शैतान की आयतें हैं जो पाश्चात्य जगत और अमेरिकी हितों के लिए वहां के अखबारों या मीडिया में बोली जाती हैं। हमें इस पर हैरानी नहीं होती कि टाईम मैगजीन और ओबामा की चिंतायें एक जैसी हैं। यह स्वाभाविक है। अमेरिका के कारपोरेट मीडिया और ओबामा एक ही एजेंडा है। मनमोहन सिंह के प्रति पश्चिम का एक खास लगाव रहा है। वह एक समय पश्चिम के ब्लू आइड ब्वाय रहे हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो उन्हे भारत में अमेिरका या पश्चिम का वाणिज्यिक राजदूत मानते हैं। अमेरिका और पश्चिम का कारपोरेट मंदी के दौर से गुजर रहा हे। बेरोजगारी बढ़ रही है। ओबामा अमेरिकी कंपनियों पर बाहरी लोगों को नौकरी देने पर उसी तरह से नाराज हैं जिस तरह से हम उत्तराखंड में बाहरी लोगों को फोर्थक्लास संविदाकर्मियों सेलेकर पीसीएस, तक बाहरी लोगों को भर्ती कराए जाने को लेकर गुस्सा हैं। ओबामा और ब्रिटेन समेत सारे यूरोप ने आब्रजन कानूनों को इतना कठोर कर दिया है कि अब वही लोग विदेश जा सकेगे जिसकी जरुरत इन देशों को होगी। ओबामा के इन कदमों को पश्चिम और अमरिका में क्रांतिकारी माना जाता है। देशहित में करार दिया जाता है और जब हम नौकरी,कारोबार में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की बात करते हैं या अपने राज्य में बाहरी लोगों की घुसपैठ को रेगुलेट करने की बात करते हम पर क्षेत्रवादी और ठाकरेवादी होने का बिल्ला चस्पां कर दिया जाता है। जबकि इन दोनों सिद्धांतों की मूल वस्तु एक ही है। यानी हर कीमत पर स्थानीय समाजों की राजनीतिक,आर्थिक संप्रभुता को बचाए रखना।
The Controversial Cover Page of Time Magzine in which it stated P.M. of India as under achiever 

भारत के लोग न टाइम को जानते है और न इंडिपेंडेंट को। लेकिन अमेरिका और यूरोप को पत्रकारिता और सभ्यता का मक्का मानने वाला भारतीय मीडिया इन खबरों को प्राइम टाइम डिबेट से लेकर ब्रेकिंग न्यूज तक इतना तूफान मचा देता है कि लगता है कि जैसे इन दोनों ने जैसे बहुत बड़ी सच्चाई उजागर कर दी हो। यह हमारे मीडिया की मानसिक गुलामी है। भारतीय मीडिया बताना चाहता है कि देखा हम जो कह रहे थे वही हमारे प्रभु अमेरिका और ब्रिटेन का मीडिया भी कह रहा हे। यानी सारा मीडिया इस पर खुश हो जाता है कि उसे ब्रिटेन और अमेरिकी अखबारों और मैगजीन से भी प्रमाणपत्र मिल गया हे। अंग्रेजों का गुलाम भारतीय मीडिया इस प्रमाणपत्र पर निहाल है। मीडिया यह नहीं कहता कि अमेरिका और ब्रिटेन के अखबार वही कह रहे हें जो उनकी कारपोरेट कंपनियों के हित में है। द इंडिपेडेंट कहता है कि भारत के प्रधानमंत्री सोनिया गांधी के पालतू हैं, उनकी कठपुतली हैं और कामकाज में फिसड्डी हैं। लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन या पश्चिम के देशों के राष्ट्रपति किसके पालतू हैं? इनके राष्ट्राध्यक्ष तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों पालतू या कठपुतली हैं। सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्षा हैं। वह उस पार्टी की प्रमुख हैं जिसने चुनाव जीता है और जिसे अगला चुनाव भी जीतना है। किसी भी पार्टी के लिए प्रधानमंत्री एक साधन मात्र है। साध्य पार्टी है और भारत की जनता है। कांग्रेस पार्टी का जन्म मनमोहन को प्रधानमंत्री बनाने के लिए नहीं हुआ। मनमोहन इसलिए प्रधानमंत्री हैं कि चुनाव कांग्रेस ने जीता है। जनता के प्रति जवाबदेही प्रधानमंत्री की नहीं है। प्रधानमंत्री संसद और कांग्रेस नेतृत्व के प्रति जवाबदेह हैं लेकिन सोनिया गांधी और उनकी कांग्रेस जनता के प्रति जवाबदेह है। सोनिया गांधी ने जनता से जिन मुद्दों पर वोट मांगे हैं उन्हे पूरा करना उनका कर्तव्य है। प्रधानमंत्री सरकार चलाते हैं और सरकार कांग्रेस के एजेंडे पर चलेगी। किसी भी दल में उसके प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री मंत्री, सांसद या विधायक पार्टी से बड़े नहीं होते। पार्टी में कार्यकर्ता सर्वोच्च होता है क्योंकि वह ऐसा सैनिक है जो युद्ध के मैदान में पार्टी के लिए लड़ता है। हर पार्टी इन्ही कार्यकर्ताओं के समर्पण और त्याग का विराट रुप है। आजकल सत्ता में बैठे लोग प्रमुख हो गए हैं इसी से कोई भी दल लगातार जीतें दर्ज नहीं कर पा रहा है या पैसों के बल पर जीतें हासिल कर रहा है। लेकिन यदि कांग्रेस में सोनिया का कहना प्रधानमंत्री मान रहे हैं तो यह गलत बात नहीं है। प्रधानमंत्री पार्टी से बड़ा नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री आयेंगे जायंगे लेकिन पार्टी एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। उसमें निरंतरता है।
 अब टाइम मैगजीन या द इंडिपेंडेंट को क्या अधिकार है कि वह भारतीय प्रधानमंत्री को मंदी से ग्रस्त यूरोप और अमेरिका के एजेंडे पर चलने के लिए बाध्य करें। भले ही मनमोहन सिंह पश्चिम की आंखों के तारे हों पर सच यह भी है कि वह भारत के प्रधानमंत्री हैं और कांग्रेस भारतीय दल है। इसलिए अमेरिकी इशारे पर नाचने की एक सीमा है। भारत जैसे बड़े देश में कोई भी प्रधानमंत्री कितना भी कमजोर क्यों न हो वह सउदी अरब के शाह की तरह अमेरिका के इशारे पर नहीं नाच सकता। इसलिए मनमोहन भरतीय बाजार को उस तरह यूरोप और अमेरिकी कंपनियों के खेल के मैदान में नहीं बदल सकते जैसा अमेरिका चाहता है। अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया चाहता है कि वह भारत नाम के चारागाह में उसकी कंपनियां मुस्टंडे सांडों की तरह जो मर्जी वो चरते रहें और उनको कोई रोके भी नहीं। यह संभव नहीं है। लेकिन जो मनमोहन चाह कर भी नहीं कर पा रहे हैं वह भारतीय मीडिया कर रहा है। वह टाइम और इंडिपेंटेंड की खबरों को उछालकर प्रधानमंत्री पर रिटेल समेत अनेक क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय सांडों के लिए दरवाजा खोलने के लिए दबाव बना रहा है। अमेरिका और यूरोप का मीडिया प्रधानमंत्री को भला बुरा कहे ये तो खप जाता है। क्योंकि वहां का मीडिया जो कह रहा है वह उसके राष्ट्रहित में है। यह टाइम और इंडिपेंडेंट की देशभक्ति है पर भारतीय मीडिया यदि अमेरिकी और यूरोपीय कारपोरेट के लिए रास्ता बनाना चाहता है तो क्या यह देशभक्ति है या देशद्रोह? फैसला हिंदुस्तान के लोगों को करना है कि भारतीय कुलीन का प्रतिनिधि माने जाने वाला देश का मीडिया किसके हित में काम कर रहा है। कौन हैं इसके स्वामी? अमेरिकन ! इतना तो तय है कि वह देशहित में काम नहीं कर रहा है। ऐसा इसलिए भी है कि भारत की मुख्यधारा का मीडिया देश के उन कारपोरेट के हाथों में है जिनका पेशा पत्रकारिता नहीं है बल्कि अपनी फैक्टरियों का उपभोक्ता सामान बेचना है। उनके लिए मीडिया इस कारोबार को ठीकठाक चलाने का माध्यम मात्र है।
यह पहली बार नहीं हुआ। उदारीकरण के दौर में भी भारत के मुख्यधारा के मीडिया ने उदारीकरण और भूमंडलीकरण के लिए ऐसी ही जबरदस्त लाबिंग की थी। भारत में यदि बिना किसी सामाजिक सुरक्षा उपायों के उदारीकरण आया तो इसमें बहुत बड़ा हाथ मीडिया का भी है।बिना सोचे समझे लाए गए उदारीकरण से भारतीय समाज में जो विकृतियां आई हैं उसके लिए मीडिया के यही चैंपियन जिम्मेदार हैं। जिस हायर एंड फायर पाॅलिसी से मध्यवर्ग के हर इंसान का ब्लड प्रेशर कुलांचे भरता रहता है उसका सबसे बड़ा वकील भी हमारा ही मीडिया था। आज हम जो आर्थिक असुरक्षा और चिकित्सा से लेकर शिक्षा तक हर क्षेत्र में निजी संस्थानों की लूट का मंजर देख रहे हैं वह भी मुख्यधारा के मीडिया द्वारा की गई लाॅबिंग का ही किया धरा है। मनमोहन काबिल प्रधानमंत्री हो जाते यदि वह रिटेल में विदेशी निवेश ला जाते, एफडीआई को खुला खेल खेलने की आजादी दे देते । लेकिन यदि ऐसा न करने पर पालतू,कठपुतली और फिसड्डी करार दिए जा चुके हैं। गढ़वाली में एक कहावत है कि या तो मेरी बीबी बन जाओ अन्यथा तुम्हारी नाक काट दूंगा। मनमोहन सिंह अमेरिकी कारपोरेट की बीबी नहीं बन पाए इसलिए उनका मीडिया भारतीय प्रधनमंत्री की नाक काटने पर आमादा है। क्योंकि अब अमेरिकी मीडिया के लिए नरेंद्र मोदी ब्लू आईड ब्वाय हो गए हैं। उसका यकीन है कि मोदी भारत की जनता, नौकरशाही और नेताओं को डंडे से हांकने की काबिलियत सिर्फ मोदी में ही है।इसलिए भारतीय मीडिया का एक हिस्सा और लगभग समूचा भारतीय करपोरेट उनका कायल है। कारपोरेट जगत को भी सीमित लोकतंत्र ही रास आता है। इसीलिए भारत के कारपोरेट को भी देश में ऐसा ही प्रधानमंत्री चाहिए जो क्षेत्रीय दलों के दवाब में आने के बजाय उन्हे डंडे से होकना जानता है। जो भले ही उन्माद फैलाये पर राज करना जाने। राज करने का अर्थ लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चलाना नहीं है बल्कि कारपोरेट के हित के लिए एक सख्त सरकार चलाना है। इसलिए नरेंद्र मोदी टाइम मैगजीन की पसंद भी हैं और टाटा, अनिल अंबानी की भी।

2 टिप्‍पणियां:

  1. इलैक्ट्रानिक मीडिया वाले भी दिग्गी,राशिद,शकील,खुर्शीद के पगलाये बयानो के पीछे ऐसे भागती है जैसे गधा लीद नहीं सोने के सिक्के निकाल रहा हो. इलेक्ट्रोनिक मीडिया का आचरण प्रिंट मीडिया से अधिक खतरनाक है क्योंकि हमारे देश की इलेक्ट्रोनिक मीडिया समाचार देने के बजाय दर्शकों पर अपने नियोजित विचार थोपने लगा है. निष्पक्ष समाचारों का प्रसारण तो अब लगभग समाप्त हो गया है. टीवी चेनलों पर चलने वाले बहस,परिचर्चाओं में कांग्रेस समर्थित प्रायोजित अवधारणा के अनुसार लोगों को बुलाकर बहस कराई जाती है. अब इसमें भी कोई शक नहीं रहा कि लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया ने अपनी स्वार्थपूर्ण,भ्रमित पक्षपातपूर्ण समाचार देने की हरकतों से जनता में अपना विश्वास लगभग समाप्त कर दिया है.

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    1. Anuragiji! baat apki sahi hai! ye congress ke nahi uske hain jiske paas paisa hai prime time khareedane ka.

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