पहाड़ की बेचैनियों के बीच पवन मंद सुगंध शीतल
पिछले दिनों मैं पीपलकोटी में था। पीपलकोटी बदरीनाथ राजमार्ग पर स्थित एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा है।यह कस्बा सन् 1880 से भी पहले से यात्रियों का पसंदीदा पड़ाव रहा है। क्योंकि यहां न तो चमोली की तरह बुरी गर्मी पड़ती है और न गर्मियों में भी ठिठुरा देने वाली ठंड । पीपलकोटी का मौसम मस्त मौसम है जिसमें दिन की गरमी भी है और शाम को सुकून देने वाली ठंडक भी। पहले यहां पीपल के ढ़ेर सारे पेड़ हुआ करते थे। इन्ही पीपल के पेड़ों के नाम पर यह पीपलकोटी हुआ। पीपलकोटी के पास ही छह किमी पहले मायापुर एक छोटा सा कस्बा है। यह गांव ही है पर यात्रा सीजन में यहां रौनक होती है। एक बढ़िया होटल भी है। नाम है, होटल हाईवे इन । यह गैरोला जी का होटल है जो हाट गांव के निवासी हैं। पूर्व सैनिक गैरोलाजी अपने गेस्टों का खास खयाल रखते हैं। यात्रा सीजन में यदि कर्णप्रयाग या चमोली में रुकने का विकल्प हो तो तब मायापुर ही रुकें। न भीड़-भाड़ और न शोर शराबा। बस एक छोटा सा शांत गांव। मायापुर में खेतों का सुंदर दृश्य भी है। सामने हाट गांव है। एक प्राचीन गांव ! जो शायद आठवीं-नवीं सदी का गांव होगा। शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में होने वाले धार्मिक कर्मकांड में इस गांव को भी जोड़ा।यहां लक्ष्मीनारायण मंदिर है। पुराना मंदिर तो 1803 के भूकंप में टूट गया। यह गांव भी उस भूकंप और गोरखा हमले के दौरान लगभग उजड़ ही गया था। लेकिन अभी भी इस गांव के कुछ मकान दो सदी पहले के होने की गवाही देते हैं। विष्णुगाड-पीपलकोटी प्रोजेक्ट कों फिर से शुरु कराने के आंदोलन में सहयोग देने और जल अधिकार अभियान को ग्रामीण इलाकों में विस्तार देने के इरादे से हम इस मायापुर में थे। सामने पहाड़ियों पर बर्फ पड़ रही थी। हम देहरादून की गर्मी के अनुभव को ढ़ोते हुए एक नए संसार में थे। हिमालय की शीतल हवायें हमें स्पर्श कर ठिठुरा रही थी। हम मौसम से निपटने के लिए स्वेटर पहनने पड़े। शांत पहाड़ी गांव में एक सन्नाटे में डूबी रात और दोस्तों का साथ! पहाड़ पर इसके अलावा चाहिए भी क्या!सुबह गुनगुनी धूप ने फिर से फरवरी की सुबह की याद दिला दी। चाय की चुस्कियों के बीच आंख मिचैनी खेलती धूप! एक बेफिक्र अलमस्त सुबह, दस बजते-बजते भूख लग जाय तो कहना ही क्या! नाश्ते में आलू के परांठे और अचार! इतने में ही तृप्ति का ऐसा अहसास जो देहरादून में खोजे नहीं मिलता बस गुलजार की गजल जैसा कुछ! ‘‘दिल ढंूढ़ता है फिर वही फुरसत के रात दिन’’। इन्ही पलों को खोजते-खोजते हम मायापुर तक आ पहुंचे।
पर हम यहां आराम करने नहीं आए थे। हम एक आंदोलन की खोज में यहां आए थे। हम यह समझना भी चाहते थे कि पहाड़ की मनोदशा क्या है? पहाड़ के लोगों के भीतर जो बेचैनी है उसका तापमान क्या है।
Rajen Todariya in Pipalkoti during a movement April 29, 2012 |
Rajen Todariya before the Beautiful Fields of Mayapur village in Chamoli, Haimalayas |
Rajen Todariya before the Beautiful Fields of Mayapur village in Chamoli, Himalayas |
Rajen Todariya addressing a gathering in Pipalkoti during " Badrinath Highway block Karo" movement |
Rajen Todariya addressing a gathering in Pipalkoti during " Badrinath Highway block Karo" movement |
Rajen Todariya addressing a gathering in Pipalkoti during " Badrinath Highway block Karo" movement |
Rajen Todariya addressing a gathering in Pipalkoti during " Badrinath Highway block Karo" movement |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें