Sikh Terror is Knocking The Door of Punjab?
पंजाब के दरवाजे पर फिर सिख उग्रवाद की दस्तक
एस0राजेन टोडरिया
पंजाब एक बार फिर उन्माद की चपेट में है। बब्बर खालसा के आतंकी रहे बलवंत सिंह रोजवाना की फांसी को लेकर पंजाब में इस समय सिख सांप्रदायिकता एक बार फिर शांत पंजाब में जड़ें जमा रही है। यह संयोग मात्र नहीं है कि सिख सांप्रदायिकता और उग्रवाद का जन्म भी आठवें दशक के अंत और नवें दशक की शुरुआत में तब ही हुर्ठ थी जब पंजाब में अकाली राज था। एक बार फिर हालात उसी ओर हैं। रोजवाना ने बेअंत सिंह की हत्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस हत्याकांड में बेअंत सिंह समेत 17 लोग मारे गए थे। रोजवाना अपनी सजा के खिलाफ अपील किए जाने के खिलाफ हैं और वह नहीं चाहते कि उन्हे फांसी से बचाने के लिए दया याचिका दी जाय। यानी कि वह अपना अपराध स्वीकार करते हैं और उसे लेकर उन्हे कोई पछतावा नहीं है। आज पंजाब यदि शांत है और भारत का हिस्सा है तो इसमें बेअंत सिंह का भी योगदान है। लेकिन आज अकाली दल पूरी तरह से रोजवाना के साथ है और उसकी सरकार उच्च न्यायालय द्वारा दी गई फांसी की सजा को लागू करने से साफ इन्कार कर रही है। यह पहली बार है जब किसी राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को मानने से इंकार कर दिया है। पटियाला के जेल अधीक्षक स्पष्ट रुप से अदालत का अदेश मानने से इंकार कर चुके हैं। यह अभूतपूर्व संवैधानिक संकट है। इसका सीधा अर्थ है कि पंजाब में कानून का राज नहीं चलाया जा सकता। एक तरह से पंजाब में सिख सांप्रदायिक ताकतों के प्रभाव के कारण अदालत का आदेश निष्प्रभावी हो चुका है। अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार पूरी तरह से सिख उग्रवादियों के हाथों की कठपुतली बना हुआ है। कांग्रेस भी रोजवाना के साथ है। यानी वह भी अपने मुख्यमंत्री के हत्यारे के साथ खड़ी है। अफजल गुरु की फांसी को लेकर शोर मचाने वाली भाजपा भी बब्बर खालसा के इस आतंकवादी को बचाना चाहती है। पूरे पंजाब में केसरिया पगड़ी और पीले दुपट्टे के साथ सिख सांप्रदायिक शक्तियां सड़कों पर उतर चुकी हैं। भिंडरवाला के साथ रोजवाना से पंजाब पटा पड़ा है।उन्माद यह यह आलम सन्1980 के उस दौर की याद दिला रहा है जब पंजाब की धरती पर सिख आतंकवाद अपनी जड़ें फैला रहा था। क्या पंजाब एक बासर फिर चैराहे पर आ खड़ा हुआ है? क्या एक बार फिर प्रकाश सिंह बादल की सरकार उग्रवादियों के लिए रास्ता साफ करने का काम करेगी। क्या सुखबीर सिंह बादल पंजाब की जनता को 21 वीं सदी की जो सपने दिखा रहे थे क्या वह भिंडरवाला की तस्वीरों और खालिस्तानी पलटनों का पंजाब है?
Rajoana Uproar: Is Sikh Terrorism is Back Again |
यह सीधे-सीधे कानून के राज और अदालतों के फैसलों को चुनौती है। प्रकाश सिंह बादल ने एक तरह से मैदान खालिस्तानी त्तवों के हवाले कर दिया है। क्या भारत सरकार इस पर उसी तरह से चुप बैठी रहेगी जिस तरह से वह भिंडरावाला की हरकतों पर चुप रही थी? आखिर सिख नेता चाहते क्या हैं? कया वह चाहते हैं कि आतंकवादियों को माफ कर दिया जाय? क्या वह चाहते हैं कि सैकड़ों निर्दोष हिंदुओं और सिखों के हत्यारे भिंडरवाला को देवता की तरह पूजा जाय? यदि वह ऐसा ही चाहते हैं तो उन्हे साफ तौर पर यह कहना होगा कि वे भिंडरवाला के साथ हैं न कि भारतीय राष्ट्र और उसकी धर्मनिरपेक्ष परंपराओं के साथ। यदि निर्दोष हिंदुओं के हत्यारे रोजवाना और भिंडरवाला पूजनीय हैं तो फिर निर्दोष सिखों की हत्या के आरोपी बताए जा रहे जगदीश टाइटलर कैसे खलनायक हो सकते हैं? फिर गुजरात में मुस्लिमों का कत्लेआम करने वाले कट्टरपंथी हिंदू नेता कैसे अपराधी हो सकते हैं? इन सबको भी क्यों न दोषमुक्त करार दे दिया जाय। जब सब लोग अपने-अपने धर्म के उग्रवादियों और सांप्रदायिक तत्वों को हीरो बनायेंगे तब सांप्रदायिक दंगों को क्यों न राष्ट्रीय कार्यक्रम घोषित कर दिया जाय। पंजाब में जो खेल तमाम सिख बुद्धिजीवी और राजनेता और सांप्रदायिक ताकतें खेल रही हैं वे बाकी हिंदुस्तान को भी सांप्रदायिक रुप से ध्रुवीकृत करने का काम कर रही हैं। इसलिए यह मसला सिर्फ रोजवाना या पंजाब का नहीं है। यह पूरे देश से जुड़ा हुआ है। कट्टरपंथी तत्व यदि पंजाब में देश के कानून और न्याय व्यवस्था को बंधक बना देंगे तो पूरे भारत में भी यही होगा। हर जगह कट्टपंथी तत्व अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुसंख्यकों की हिंसा और आतंकवाद को शांति और कानून व्यवस्था के लिए जरुरी बतायेंगे। तब देश का क्या होगा? देश की एकता क्या होगा? धर्मनिरपेक्ष और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का क्या होगा? यह खतरनाक शुरुआत है। इस चिंगारी को यहीं बुझााना होगा। सांप्रदायिक और धर्मोन्मादी ताकतों के साथ लोहे के दस्तानों के साथ निपटना होगा। वरना पंजाब को फिर से उसी अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा। रोजवाना और उसके अकाली व खालिस्तानी समर्थक यही चाहते हैं। इस साजिश को विफल किए बगैर भारतीय राज्य का अखंड रहना मुश्किल है।
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