भारतीय सेना की साख पर एक और चोट
एस0राजेन टोडरिया
General V.K. Singh's interview shake the Indian Army |
क्या भारतीय सेना दुनिया की भ्रष्ट सेनाओं में से एक है? क्या भारतीय सेना दुनिया की सर्वाधिक अनुशासनहीन सेना बनने की ओर अग्रसर है? पूरा देश आज सेना से यह सवाल पूछ रहा है। सेना को पवित्र गाय मानने वालों को ये सवाल बुरे लग सकते हैं लेकिन देशभक्ति के नाम पर पिछले आधी सदी से छुपाई जा रही गंदगी अब पूरी दुनिया देख रही है। पूरा देश देख रहा है कि 14 लाख सैनिकों का नेतृत्व करने वाला जनरल एक थानेदार से भी ज्यादा कमजोर और बेबस है। वह खुद को घूस देने वाले को गिरफ्तार कराने के बजाय देश के रक्षामंत्री के सामने असहाय बच्चे की तरह शिकायत करता है। भारतीय सेना इतनी बेबस और भ्रष्ट आज से पहले कभी नजर नहीं आई जितनी कि जनरल वी0के0 सिंह के कार्यकाल में नजर आ रही है। एक जनरल इतना बेचारा कभी नजर नहीं आया जितने कि जनरल वी0के0 सिंह नजर आ रहे हैं। जिस सेनाध्यक्ष के रुतबे पर दैश के लोग फख्र करते थे वह इतना दयनीय दिख सकता है,यह अकल्पनीय है। इससे भी ज्यादा शर्म की बात यह है कि देश के कई अवकाश प्राप्त सैन्य अधिकारी जनरल सिंह का बचाव मात्र इसलिए कर रहे हैं कि वह सेना के अफसर हैं।देशहित के बजाय अपनी बिरादरी के आदमी के पक्ष में खड़े होना यह रोग बता रहा है कि यह देश गंभीर रुप से बीमार है। इसके बड़े पदों पर रहे लोग देशहित के बजाय अपनी बिरादरियों के प्रति वफादार हैं। यदि मोर्चे पर सबसे आगे लड़ने वाले सैनिक के नजरिये से देखा जाय तो उसके लिए सेना के अफसरों का भ्रष्टाचार कोई खबर नहीं है बल्कि एक रवायत है जो सेना की रग-रग में में है।
भारतीय सेना को झकझोर देने वाला यह विस्फोट भी पाक या चीनी सेना की ओर से नहीं आया बल्कि सेना मुख्यालय से ही आया और वह भी उसी के जनरल के द्वारा किया गया बम विस्फोट था। जनरल वी0के0 सिंह को भारतीय सेना में इसलिए याद रखा जाएगा कि उन्होने मीडिया के जरिये भारतीय सेना की परंपराओं और अनुशासन को जितना नुकसान पहुंचाया उतना तो सन्1962 की करारी हार ने भी नहीं पहुंचाया। उम्र विवाद में यदि सुप्रीम कोर्ट नहीं होता तो जनरल सिंह ने अपनी उम्र के व्यक्तिगत मसले को सेना की प्रतिष्ठा से जोड़कर सेना में अब तक के सबसे बदतरीन हालात पैदा कर दिए थे। उनके इस विवाद से सेना में नागरिक नियंत्रण के खिलाफ जैसा वातावरण बना उससे सेना और सरकार के बीच के रिश्ते बेहद खराब हुए हैं। जनरल को शायद ही कभी मालूम हो पाए कि इतिहास उन्हे ऐसे फुटबाल खिलाड़ी के रुप में याद करेगा अपनी ही टीम पर आत्मघाती गोल कर दिया। भारतीय सेना को दुनिया की सबसे अनुशासित सेना के रुप में दुनिया भर में जाना जाता है। दुनिया की तीसरी बड़ी सेना का लोकतांत्रिक नेतृत्व के मातहत रहना दुनिया में आश्चर्य के साथ देखा जाता है। सेना पर इस कड़े नागािरक नियंत्रण के कारण ही भारत पाकिस्तान और चीन की तरह सेना के वर्चस्व वाला मुल्क नहीं है। लेकिन जनरल सिंह ने सेना के नागरिक कंट्रोल और कमांड सिस्टम को अपने निजी विवाद के कारण खतरे में डाल दिया था। मीडिया से अपने विवाद पर खुलकर बोलकर जनरल सिंह ने सेना की सेवा नियमावलि का इतनी बार उल्लंघन किया कि यदि देश में कोई मजबूत सरकार होती तो सेनाध्यक्ष को कभी का बर्खास्त कर चुकी होती।
अब जनरल सिंह ने पहले से भी बड़ा विस्फोट कर सना की बुनियादों को हिला दिया है। जनरल सिंह का कहना है कि उन्हे एक पूर्व उच्च सैन्य अधिकारी ने ट्रक खरीद के मामले में 14 करोड़ रु0 की घूस की पेशकश की।आश्चर्यजनक यह है कि सेना के जनरल को घूस देने की हिम्मत करने वाला जनरल सिंह के कमरे से शान से टहलता निकल गया और देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति असहाय होकर उसे बाहर जाता देखता रह गया। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना का जनरल इतना दयनीय हो सकता है,यह अकल्पनीय है। क्या कोर्ठ इैमानदार एसपी ऐसी कर यदि खुद को असहाय बताए तो लोग क्या उसका तर्क मानेंगे। जनरल सिंह तो देश के सबसे ताकतवर हस्ती हैं लेकिन उनकी जगह यदि एक ईमानदार थानेदार भी होता तो उसको भी कोई घूस देने की हिम्मत नहीं कर सकता था। यदि करता भी तो वह व्यक्ति कुछ ही मिनट में जेल में होता। क्या जनरल सिंह क्या यह जता रहे हैं कि वह थानेदार से भी गए गुजरे हैं। यह अजीब मजाक है। घूस देने वाले के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज न करने वाले सेनाध्यक्ष इसकी शिकायत लेकर रक्षा मंत्री के पास जाते हैं और लिखित में एक शब्द तक नहीं देते। क्या जनरल नहीं जानते कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ तक तक कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती जब तक कि कोई व्यक्ति घूस देने की औपचारिक शिकायत न करे। अचरज की बात है कि जनरल इस घूसकांड के गवाह तो बनना चाहते हैं पर शिकायत कर्ता नहीं। काफी दिन चुप रहने के बाद वह सीधे मीडिया के पास जा पहंुचते हैं। जबकि उन्हे प्रधानमंत्री से रक्षामंत्री की शिकायत करनी चाहिए थी। जबकि सेना की सेवा नियमावलि में उच्चाधिकारी की अनुमति के बिना कोई अफसर मीडिया से बातचीत नहीं कर सकता। क्या जनरल सिंह ऐसी आजादी उस सैनिक को भी देना पसंद करेंगे जिसकी शिकायत पर सेना के अफसर कार्रवाई नहीं कर रहे हों। उस सैनिक के खिलाफ सेना के अफसर किस मुंह से सेना नियमावलि के आधार पर कार्रवाई करेंगे?कानून की नजर में सेनाध्यक्ष और एक साधारण सैनिक बराबर हैं। बिना अनुमति के मीडिया में जाने पर एक सैनिक का कोर्टमार्शल हो सकता है तो सेनाध्यक्ष का क्यों नहीं? सेनाध्यक्ष सेना की शानदार परंपरायें और मूल्य तोड़ते रहे हैं। उनके आचरण से सेना के बाकी कर्मियों को भी अनुशासन तोड़ने की सीख मिलेंगी। दुनिया की सारी सेनायें अनुशासन और आज्ञापालन से चलती हैं न कि उस तरह से जिस तरह से वीके सिंह चल रहे हैं।
रही बात भ्रष्टाचार की तो जनरल वीके सिंह ने भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए ऐसा क्या किया है जो देश उन्हे याद रखे। उन्होने सेना को रसद और बाकी सप्लाई करने वाली एक भी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। जबकि सेना में सर्वाधिक भ्रष्टाचार है। 1961-62 में हुए जीप घोटाले से लेकर ताबूत घोटाले,तहलका कांड, सुखना लेक कांड और आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला कांड तक अनेक कांड सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार की कहानी बयान कर रहे हैं। ये तो वे कांड हैं जो प्रकाश में आए हैं लेकिन जो रोशनी में नहीं आते ऐसे तो हजारों घपले हैं जो सेना में रोज होते हैं। सैनिकों के खाने के लिए जो सामान खरीदा जाता है वो घटिया होता है। सैनिकों को दिए जाने वाली बकरे और मुर्गे की मीट में भी घोटाला होता है। सैनिकों को बूढ़े और मरियल बकरे व मुर्गे सप्लाई किए जाते हैं। इन मुर्गों व बकरों का वजन बढ़ाने के लिए उनमें इंजेक्शन के जरिये पानी भरा जाता है। अफसर अपने हिस्से से ज्यादा मक्खन से लेकर मीट देने का दबाव डालते हैं जिसके कारण सैनिकों को उनके हिस्से कम मक्खन या मीट मिलता है। सैनिकों और पूर्व सैनिकों कैंटीनों मे सामान की खरीद में भारी घोटाला होता है। सीमा सड़क संगठन में डीजल बेचने से लेकर सीमेंट सरिया बेचने तक सारे धंधे होते हैं। आर्मी सप्लाई कोर में सामान की खरीद की यदि जांच की जाय तो कई टूजी घोटाले सामने आयेंगे। वाहनों की खरीद से लेकर उनकी नीलामी तक सेना में घपले ही घपले हैं। सेना का शायद ही कोई ऐसा संगठन होगा जिसमें भ्रष्टाचार न हो। इस भ्रष्टाचार से सेना के अफसर तो मालामाल होते हैं पर भुगतना बेचारे सैनिकों को पड़ता है। यदि जनरल सिंह ईमानदार सेना चाहते हैं तो क्यों नहीं सैनिकों को अधिकार देते कि वे सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायत कर सकते हैं और शिकायत करने वाले सैनिकों का नाम गुप्त रखा जाएगा। सेना पर जब तक उसके अफसरों अनियंत्रित वर्चस्व रहेगा तब तक सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं हो सकता। पर समस्या यह है कि जिस दिन सैनिकों शिकायत करने का अधिकार मिलेगा उसी दिन सेना में कंट्रोल और कमांड सिस्टम खत्म हो जाएगा। जाहिर है कि सेना में भ्रष्टाचार सेना के भीतरी इंतजामों से नहीं हो सकती। इसलिए भ्रष्टाचार निरोधी तंत्र सेना के नियंत्रण से बाहर बनाया जाना चाहिए। इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से पूर्व सैन्य अधिकारियों ने जनरल सिंह का पक्ष लिया उससे जाहिर हो गया कि सेना के अफसरों की भी एक बिरादरी है और वे भी अपनी बिरादरी के गलत कार्यों की रक्षा भी उसी तरह करते हैं जिस तरह से आईएएस,आईपीएस, इंजीनियर ,डाॅक्टर या वकील करते हैं। इस देश का दुर्भाग्य यही है कि इसके ताकतवर लोगों के लिए अपने-अपने बिरादरों के हित प्रमुख हैं न कि देशहित।
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