बुधवार, 28 मार्च 2012

America wants Indian Defence Minister's Head


                                     



                             Letter leak or American conspiracy


एस0राजेन टोडरिया
Letter leak controversy may take a new turn. Several  Political experts and defense analysts are of the view the General V.K.Singh letter leak episode is a complicated issue and may be a part of American conspiracy to rool down the head of Indian defence Minister A.K.Antony. It is evident that America is not pleased with the role of Indian defence Minister, Who earlier decided to go with the Raffle fighter plane in spite of  American pressure for F-18.

               
                  पत्र बम या अमेरिकी साजिश


America wants Antony's head
जनरल वी0के0 सिंह भारतीय सेना के लिए उतनी ही बड़ी विपदा बनकर आए हैं जितना कि 1962 का चीनी हमला। खेद की बात यह है कि सेवानिव्त सेनाधिकारी और भारतीय जनता पार्टी सेना के अनुशासन को तार-तार करने वाले इस जनरल को बर्खास्त करने की मांग करने के बजाय उन्हे समर्थन दे रहे हैं। जनरल वी0के0 सिंह योजनाबद्ध ढ़ंग से सरकार को मुश्किल में डालने वाले बयान दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनके बयान किसी बड़ी राजनीतिक साजिश का हिस्सा हैं। लेकिन ऐसा कर उन्होने भारतीय सेना और उसकी इज्जत की जो दुर्गत की है वह 1962 में चीनी सेना भी नहीं कर पाई थी। लेकिन इस पूरे विवाद को हथियार खरीद के पक्ष में मोड़ने की मीडिया की कोशिशों से लगता है कि यह एक बड़े और दीर्घकालीन अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र का हिस्सा है। हथियारों की कमी के नाम पर पाकिस्तान और चीन का डर दिखाकर मीडिया द्वारा जो जनमत तैयार किया जा रहा है वह एक ओर जहां अमेरिका और पाश्चात्य देशों के हथियार बाजार के हित में है वहीं अमेरिकी दबाव के बावजूद राफेल विमानों की खरीद के पक्ष में फैसला कर अमेरिका को नाराज करने वाले रक्षामंत्री ए0के0 एंटोनी का सर काटने की साजिश भी है। 


इस साल 28 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने जनरल सिंह की उम्र विवाद पर फैसला दिया और 12 मार्च को सेनाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री के नाम वह विवादास्पद पत्र लिखा जिसमें देश की सेनाओं की हालत बेहद खराब बताई गई है। यह पत्र तब लिखा गया जब यह तय हो गया कि जनरल वीके सिंह को अगली मई में रिटायर हो जाना है। यानी कि रिटायरमेंट की तारीख तय होने और उम्र विवाद में हारने के बाद जनरल सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। जाहिर है कि पत्र लिखना एक रोजमर्रा की कवायद या देश की सुरक्षा की चिंता से प्रेरित नहीं था । यदि जनरल ने सुरक्षा की चिंताओं से प्रेरित होकर पत्र लिखा होता तो वह जनवरी या फरवरी में इसे लिख सकते थे। लेकिन रिटायरमेंट के इतने करीब पहंुच चुका जनरल यह कार्य आने वाले जनरल पर छोड़ सकता था या व्यक्तिगत रुप से प्रधानमंत्री को अवगत करा सकता था। यह भी नहीं होता तो जनरल वी00के0 सिंह अपने उत्तराधिकारी को चार्ज देते समय यह गोपनीय पत्र उन्हे सौंप सकते थे। क्योंकि एक बार जब सेनाध्यक्ष का उत्तराधिकारी तय हो गया है तब सेनाध्यक्ष को इतनी गरिमा बरतनी चाहिए थी कि वह आने वाले जनरल के जिम्मे यह काम छोड़ देते। लेकिन उन्होने सेना की हर कमी को विस्तारपूर्वक इस तरह से लिखा कि उससे एक बड़ी खबर बन सके। जब पत्र लीक हुआ तो यही हुआ। गौरतलब तथ्य यह है कि इस पत्र का मसौदा पत्रकारिता के किसी पेशेवर खिलाड़ी द्वारा तैयार किया गया लगता है।खबरों के धंधे में रहे पत्रकार जानते हैं कि इस पत्र का ड्राफ्ट किसी अनाड़ी द्वारा नहीं तैयार किया गया है बल्कि ऐसे आदमी द्वारा तैयार किया गया है जो जानता है कि किन-किन बातों से खबरों की सुर्खियां बन सकती हैं। यह सुनियोजित खबरिया प्लान का हिस्सा इसलिए भी है कि दोनो धमाके तभी किए गए हैं जब संसद का सत्र चल रहा था। इससे अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर का हंगामा खड़ा करने के लिए ही संसद के सत्र का वक्त चुना गया। इसलिए यह कहना कि यह पत्र एक रुटीन कवायद या जनरल की ईमानदार और निर्दोष चिंता है, यह सफेद झूठ के अलावा कुछ नहीं है। यह एक शातिर राजनीतिक चाल है और इसे शतरंज की बिसात पर बेहद चालाकी से चला गया है।
जहां तक लीक का सवाल है उससे भी साफ है कि इसमें जनरल के कार्यालय का ही हाथ हो सकता है। क्योंकि संसद के सत्र के दौरान इस तरह के पत्र को लीक करने की मूर्खता कम से कम प्रधानमंत्री का कार्यालय तो नहीं कर सकता। इसका राजनीतिक लाभ भी कांग्रेस या यूपीए को नहीं हुआ है बल्कि भाजपा को ही हुआ है। ऐसे इस लीक के पीछे सरकार का हाथ होना असंभव है। जिस तरह से भाजपा जनरल की आलोचना से बची है वह भी इस बात का सबूत है कि सरकार ऐसा आत्मघाती कदम नहीं उठा सकती। क्योंकि एक ही व्यक्ति है जिसे इस विवाद का लाभ हुआ है। इस विवाद से सरकार और एके एंटोनी से जनरल का हिसाब साफ हो गया है। हालांकि रिश्वत बम के बाद पत्र बम के सीरियल ब्लास्ट का मकसद एंटोनी का इस्तीफा कराना था। यदि सरकार की गुप्तचर एजेंसियों में थोड़ा भी पेशेवर कौशल हो तो वे इस प्लान के सबूत भी जुटा सकते हैं। यदि इस विवाद में एंटोनी की बलि लेने की योजना थी तो सवाल यह भी उठता है कि कहीं इस सारे विवाद के पीछे हथियारों के सौदागर तो नहीं हैं? कहीं राफेल सौदे से नाराज अमरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां और गुप्तचर एजेंसियां तो इसके पीछे नहीं हैं? क्योंकि एंटोनी की ईमानदारी के कारण रक्षा मंत्रालय में कमीशनबाजी की घटनाओं पर प्रभावी रोक लगी है। राफेल सौदे को लेकर अमेरिका रक्षा मंत्राी ए0के0एंटोनी से खासा नाराज है। यदि टीवी न्यूज चैनलों पर इस खबर की कवरेज में बरते गए पक्षपातपूर्ण रवैये का विश्लेषण किया जाय तो इसके पीछे अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हाथ होने की थ्योरी को ही बल मिलता है। दरअसल जनरल वीके सिंह के पक्ष वाले  में पूर्व सैनिक अफसरो को स्टूडियों में बुलाकर हथियार सौदों पर पूरी डिबेट केंद्रित करने की योजना गहरी साजिश का संकेत देती है। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि यह काम वे न्यूज चैनल ही अंजाम दे रहे थे जो अक्सर चीन के हमले का हौवा खड़ा करने की अमेरिकी और सीआईए की रणनीति का अनुसरण करते रहे हैं।
इस विवाद का एक और आयाम है जिसे अभी देख नहीं जा रहा है। यदि केंद्र सरकार इसकी खुफिया जांच कराए तो हथियार बनाने वाली अंतरराष्ट्रीय चंडाल चैकड़ी के भी इस विवाद के पीछे होने के सबूत मिल सकते हंै। इस पत्र के लीक होने और इसे लेकर बनाए गए माहौल से सिर्फ दुनिया के हथियार सौदागरों को ही लाभ हो सकता है। देश की सुरक्षा के नाम पर जनता में अफरातफरी मचाने और पैनिक क्रिएट करने से केंद्र सरकार पर दबाव बनेगा कि वह जल्दबाजी में हथियारों की खरीद करे। चूंकि इस बजट में भारी भरकम राशि हथियारों के लिए रखी गई है और पिछली सालों की एक बहुत बड़ी धनराशि अभी प्रयुक्त नहीं हुई है इसलिए ये दोनो मिलकर हथियार खरीद को अतंरराष्ट्रीय दिलचस्पी का मुद्दा बनाते हैं। जाहिर है कि इस संभावना के मद्देनजर दुनिया की हथियार निर्माता कंपनियां भजन तो नहीं ही कर रही होंगी। वे ही नहीं बल्कि मंदी से प्रभावित अमेरिकी और यूरोपीय देश भी अपने देश में रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए इन सौदों की फिराक में हैं।इसलिए इस पत्र के जरिये पूरे देश में यह वातावरण बनाया जा रहा है कि यदि तत्काल हथियार नहीं खरीदे गए तो पाकिस्तान और चीन भारत को रौंद देंगे। पाकिस्तान और चीन के खिलाफ युद्धोन्माद फैलाकर पश्चिम के हथियार सौदागरों के लिए भारतीय शस्त्र बाजार के दरवाजे खोलना देश के अधिकांश न्यूज चैनलों का प्रिय शगल है। इसके जरिये वे पश्चिम और अमेरिका को अपनी वफादारी का भरोसा भी बंधाते हैं और अमेरिका और पश्चिम का बाजार बनने से उनके पेड न्यूज के धंधे के लिए नई संभावनायें भी पैदा होती हैं। इसलिए देशभक्ति और सुरक्षा की चिंता का जो कोलाहल खबरिया चैनलों की दुनिया में मच रहा है वह दरअसल अमेरिका,इजरायल और पश्चिमी देशों के हथियार माफियाओं के लिए भारत को एक नई हथियार मंडी बनाने की योजना का हिस्सा है। हो सकता है कि जनरल वीके सिंह इस खेल में एक छोटे से मोहरे ही हों।विदेशी हथियारों के लिए इस वक्त जो माहौल तैयार किया गया है यह देश की आत्मनिर्भरता के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। अंधाधंुध विदेशी हथियारों की खरीद की वकालत से स्वदेशी टेक्नोलाॅजी विकसित करने के प्रयासों को गंभीर नुकसान पहंुचने वाला है। भारत का मीडिया आज एक बार फिर उसी भूमिका में है जिसमें वह 1991 से सन् 2000 के दौर में था। फर्क बस इतना है कि त बवह उदारीकरण का मंत्र जपते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए लाल जाजम बिछा रहा था और इस बार वह विदेशी हथियार कंपनियों के लिए लाल कालीनें बिछाने का धंधा कर रहा है।
इस विवाद का एक और पक्ष है जो अमेरिकी और पाश्चात्य देशों की दीर्घकालीन साजिश का हिस्सा है। भारत को चीनी सेना का डर दिखाकर पश्चिमी देश भारत को हथियारों की होड़ में फंसाना चाहते हैं। भारतीय जनता के बीच चीन और पाकिस्तान का डर पैदा कर ये देश हथियारों की खरीद के पक्ष में जनमत तैयार कर रहे हैं। भारत यदि बड़े पैमाने पर हथियार खरीदेगा तो चीन और पाकिस्तान भी खरीदेगे। इस तरह से दक्षिण एशिया के तीन देशों में खरबों रुपए के हथियार खरीदे जायेंगे। इससे मंदी से जूझ रहे पाश्चात्य देशों के हथियार उद्योग को एक बड़ा बाजार मिलेगा लेकिन यह होड़ चीन और भारत की आर्थिक प्रगति का उसी तरह से भट्ठा बैठा देगी जिस तरह से शीत युद्ध ने सोवियत रुस का बिठाया था। इसी आर्थिक दिवालियापन ने सोवियत रुस को खंड-खंड कर दिया था। भारत और चीन यदि अपने देश की आर्थिक सच्चाईयों की अनदेखी कर हथियार खरीदने की होड़ में जुट गए तो ये दोनो भी 21 वीं सदी में टूटकर बिखर जायेंगे। गरीबी,भुखमरी और बेरोजगारी से लड़ने के बजाय ये दोनो यदि आपस में़ उलझे रहे तो इनके लिए आंतरिक असंतोष पर काबू पाना नामुमकिन होगा। 
भारतीय मीडिया इस समय भारतीय सुरक्षा का खेल नहीं खेल रहा है बल्कि वह अमेरिकी और यूरोप के बड़े खेल का एक पुर्जा मात्र है। अन्यथा सेना की जिस दुर्दशा का रोना जनरल वीके सिंह रो रहे हैं उससे भी ज्यादा बुरी हालत इस समय फ्रांस,जर्मनी और ब्रिटेन की सेनाओं की है। इन तीनों देशों को गद्दाफी ने ही पानी पिला दिया था। सेना के अनुशासन और नागरिक प्रशासन की सर्वोच्चता के लिए इस समय जनरल वी0के0 सिंह की बलि अपरिहार्य है। पत्र बम के जरिये हमला कर जिस लड़ाई में वह फंस गए हैं वह निश्चित तौर पर उनके लिए वाटरलू साबित होने वाला है।

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