बुधवार, 28 मार्च 2012

Team Anna's mobocracy: Somnath Chatterji on the Supremacy of Parliament



  Sovereignty Of Parliament can't be questioned: Somnath Chatterji

By S. Rajen Todariya

An article of Somnath Chatterji , former Speaker of Loksabha, is one of the best parliamentarian of the Parliament of India, published in the Editorial page of Dainik Hindustan today. Dada has pointed out the difference between the democracy and mobocracy.  His article is eye opener for Team Anna, Anna Hazare, Arvind Kejariwal, Kiran Bedi, Manish Sisodiya and all their fellow self styled crusader against Corruption. Somnath da writes that any attempt to lower the prestige of Parliament will lead country towards anarchy or dictatorship. Here is full article (courtesy Hindustan dt 29 March 2012 )



Former Speaker of Loksabha Somnath Chatterji on the Supremacy of Parliament


1 टिप्पणी:

  1. शत्रुघ्नलाल at 08:14
    सर्वोपरि तो संसद
    को ही रहना चाहिए,
    लेकिन...... [संदर्भ: हिन्दुस्तान
    29 मार्च 2012 के पृष्ठ 12
    पर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोम
    दा का आलेख] ― शत्रुघ्नलाल
    लेकिन संसद मेँ गुण्डई, लूट, हत्या के
    आरोपी माननीयोँ का प्रवेश हर
    दशा मेँ रोका जाना चाहिए! हम,
    माननीय सोमदा के उद्गारोँ से
    पूर्णतया सहमत होते हुए उन्हेँ
    विश्वास दिलाना चाहते हैँ
    कि हमारे देश मेँ संसदीय लोकतंत्र से
    किसी का विश्वास उठ नहीँ गया है।
    विश्वास उठा है तो संसद के उस 62
    साला तंत्र से जो आजतक
    दाग़ियोँ को संसद मेँ जाने से रोक
    नहीँ पाया है।
    बल्कि उनकी संख्या निरन्तर
    बढ़ती ही गई है। दाग़ी लोग संसद मेँ
    प्रवेश कैसे पा जाते हैँ? जेल मेँ बन्द
    अभियुक्त अपने आंतक के प्रभाव से
    चुनाव जीतकर माननीय सांसद बन
    गए तो इसकी ज़िम्मेदारी किस पर
    है? माननीय सोमदा ने यह कहकर
    कि 'जब अँगुली सांसदोँ पर उठती है,
    तो साफ़ है कि उन्हेँ चुनने
    वाली जनता पर अँगुली उठाई गई है'
    सारा दोष निरीह जनता पर मढ़
    दिया। वह भूल गए दाहिने हाथ
    की उठी हुई अपनी उस
    तर्जनी का आक्रोश जब 19
    फ़रवरी 2009 को संसद मेँ
    माननीयोँ की उच्श्रृंखलता से तंग
    आकर वह तड़प उठे थे और सदन
    की कार्यवाही अनिश्चि काल के
    लिए स्थगित करते हुए सदन मे गर्जे थे
    ― "भगवान करेँ आप सब चुनाव हार
    जायेँ। आपका आचरण निन्दनीय है। आप
    लोकतंत्र का काम तमाम कर रहेँ हैँ
    और देश की जनता सबकुछ देख रही है।
    मैँ उम्मीद करता हूँ कि लोग आप
    को पहचान लेँ और सबक सिखायेँ। मेरे
    विचार से सदन
    की कार्यवाही अनिश्चित काल के
    लिए स्थगित कर दी जानी चाहिए।"
    माननीय सांसदोँ ने संसद रहने
    कहाँ दिया है, सोम दा! आज जो,
    सारा देश भ्रष्टाचार से त्रस्त है वह
    माननीय सांसदोँ की अकर्मण्यता के
    कारण ही। भष्टाचार के विरुध्द
    आवाज़ उठाने वाले हमेशा के लिए मौन
    कर दिए जाते हैँ और संसद मौन
    रहती है। शिक्षा संस्थाओँ तक मे
    भ्रष्टाचार का अज़दहा प्रवेश कर
    चुका है। संसद ने 6 से 14 वर्ष तक के
    हर बच्चे को अनिवार्य - मुफ़्त
    शिक्षा का अधिकार देकर उसे कोड़े
    मार रहेँ हैँ। सोमनाथ दा, देश
    की संसद तो क़ायम रहेगी लेकिन
    हमारे मदान्ध माननीय सांसद अपने
    गरेबान मेँ झाँककर नहीँ देखते,
    बड़ी पीड़ा के साथ कहना पड़ रहा है
    कि, शिक्षा के अधिकार की तरह
    तमाम अधिकारोँ को बाँटकर यह
    संसद जड़ की जड़
    बनी रहेगी। ..........एकदम जड़!!!!!! •
    जिस राष्ट्र के शिक्षक को इस संसद
    ने भ्रष्ट बना दिया, वह राष्ट्र कब
    तक जीवित रह सकता है सोम दा!
    आपका आलेख पढ़ते ही बड़ी पीड़ा के
    साथ हाथ मेँ क़लम उठाई है। मेरी आँखे
    भरी हैँ। रिश्वत न दे सका, जो सारे
    साथी दे रहे थे, तो समय पर न मुझे
    मेरी पेँशन मिली न मेरा बक़ाया वेतन
    जो वर्षोँ से लम्बित था। अपने
    किसी सांसद विद्यार्थी के दरबार
    मेँ गिड़गिड़ा कर अपना जायज़ हक़
    समय से पा सकता था पर शिक्षक
    होने के नाते मुझसे न हुआ। लोकायुक्त
    के दरबार से सेवानिवृत्ति के आठ साल
    बाद पेँशन तो मिल गई लेकिन भ्रष्ट
    क्लर्कोँ ने एक जाली पत्र प्रस्तुत
    करते हुए माननीय लोकायुक्त
    को भ्रमित कर दिया जिन्होँनेँ यह
    टिप्पणी करते हुए कि मैँनेँ प्रबंधक से
    साँठ-गाँठ करके ग़लत वेतन प्राप्त
    कर लिया था, मेरा वाद निस्तारित
    कर दिया। फिर उन्होँनेँ मेरे
    किसी पत्र का उत्तर तक न दिया।
    मैँने माननीय उच्च न्यायालय मेँ वाद
    दायर किया हुआ है जहाँ कोई सुनवाई
    नहीँ हो रही। यानी 77 वर्ष के उस
    वृध्द शिक्षक को संसद विवश कर
    रही है कि वह रिश्वत देकर
    अपना हक़ हासिल करे। एक शेर सुन
    लीजिए सोमदा ― "आह ऐवाने
    सियासत तुझे मालूम नहीँ, तेरे साए मेँ
    बड़ी शान के ग़मख़ाने हैँ।" न हम होँगेँ,
    न अन्ना, न सोमदा आप! विश्वास
    रखेँ, यह संसद हमेशा रहेगी!!!!!! ▓

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