गुरुवार, 5 जनवरी 2012

Is Star News playing Nishank's Game ?


                         स्टार न्यूज ने बनाया निशंक को हीरो

स्टर्डिया, कुंभ, पनबिजली समेत कई घोटालों के निर्माता-निर्दैशक,नायक,गीतकार,संगीतकार रहे रमेश पोखरियाल निशंक को राजनीति के कबाड़खाने से निकालकर ‘‘ कौन बनेगा मुख्यमंत्री’’ में भाजपा की ओर से एकमात्र प्रवक्ता बनाकर स्टार न्यूज ने प्रतिष्ठित कर दिया। अन्ना के नाम की माला जपने वाले देश के बड़े चैनल और अखबार किस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं,यह उसका एक उदाहरण है। लेकिन स्टार न्यूज को लोकलाज की परवाह क्यों करनी चाहिए? जनमत जाये भाड़ में। बस धंधा चलना चाहिए। निशंक के पास अकूत संसाधन हैं,वे धनबल के साक्षात अवतार हैं। इसलिए स्टार न्यूज को भाजपा में उनसे बेहतर कोई नेता नहीं मिला। जबकि देहरादून में भाजपा के सभी बड़े नेता मौजूद थे। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने इस कार्यक्रम में भाग लेने से इसलिए मना कर दिया था कि इस कार्यक्रम में चैनल भाजपा की ओर से निशंक को ही हरीश रावत के सामने पेश करने की जिद पर अड़ा हुआ था। यह भी कहा जा रहा है कि स्टार न्यूज आखिरी वक्त तक मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी से दिल्ली स्टूडियो में आने की गुजारिश करता रहा लेकिन निशंक को बुलाने पर आमादा चैनल के रुख के चलते जनरल ने कार्यक्रम में भाग लेने से इंकार कर दिया। मुख्यमंत्री समर्थकों का कहना है कि एक ओर निशंक देहरादून में अपने समर्थकों के जरिये पार्टी अनुशासन की धज्जियां उडा रहे हैं, पार्टी नेताओं के खिलाफ नारेबाजी करवा रहे हैं और उसी नेता को स्टार न्यूज ‘‘ कौन बनेगा मुख्यमंत्री’’ में भाजपा की वकालत के लिए चुना। दबे शब्दों में यह भी कहा जा रहा है कि स्टारन्यूज अपने इस कार्यक्रम के जरिये निशंक को भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री के रुप में प्रोजेक्ट कर रहा है। स्टार न्यूज द्वारा निशंक को डिबेट के लिए चुने जाने की घटना राज्य के राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा का विषय बनी हुई है। मीडिया विशेषज्ञ भी स्टार न्यूज के इस चयन पर हैरान हैं।उनका कहना है कि देश के एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल द्वारा लोकलाज की परवाह नहीं किए जाने की घटना से राज्य में पहले से ही खराब हो चुकी मीडिया की छवि को भारी धक्का लगा है। राजनीतिक के जानकार लोग इसे निशंक का मीडिया मैनेजमेंट का कमाल बता रहे हैं। ज्ञातव्य है कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में निशंक ने राज्य और देश के अधिकांश समाचार माध्यमों का बंध्याकरण कर दिया था। उन पर यह आरोप भी लगा था कि धनबल के बूते डनहोने मीडिया का मुंह बंद कर दिया है। यहां तक कि राज्य के छोटे अखबारों पर सेंसरशिप थोपे जाने के खिलाफ एक भी अखबार और चैनल ने मुंह नहीं खोला।
लेकिन स्टार न्यूज द्वारा की गई इस मार्केटिंग के बावजूद निशंक कुंभ घोटाले पर सवालों से बच नहीं पाए। वह बौखला गए और उन्होने उल्टे केंद्र पर ही इस घोटाले की जिम्मेदारी मढ़ दी। बेचारे हरीश रावत को पता भी नहीं कि कुंभ घोटाले का पर्दाफाश उसी कैग ने किया है जिसके कारण ए0राजा जेल चले गए। लेकिन हरीश रावत निशंक के इस आरोप का जवाब नहीं दे पाए। हालांकि हरीश रावत को निशंक के मुकाबले कम समय दिए जाने से यह भी साफ हो गया कि यह कार्यक्रम राजनीतिक बहस और जनता की नब्ज जानने के बजाय निशंक की इमेज बिल्डिंग करने की कोशिश ज्यादा था। गजब यह है कि दिल्ली में जिस कैग पर भाजपा फिदा है उत्तराखंड में उसकी रिपोर्ट पर मुंह खोलने से भाजपा की बोलती बंद हो जाती है। दरअसल उत्तराखंड में अधिकांश लोग जानते हैं कि कुंभ के कीचड़ में भाजपा के किस राष्ट्रीय नेता के करीबी की कंपनी ने मलाई खाई है। भले ही कांग्रेस इस नेता पर उंगली न उठाए पर सच तो यह है कि कुंभ के कीचड़ के छींटों से दूर दिल्ली तक कई गणमान्य भाजपा नेताओं के दामन सने हुए हैं।हरीश रावत यह भी नहीं बोल पाए कि उंत्तराखंड हाईकोर्ट ने स्टर्डिया में राज्य सरकार को दोषी पाकर अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए थे पर कार्रवाई हुईु ही नहीं। कांग्रेस नेता की तैयारी इतनी कम थी कि वह यह भी नहीं बता पाए कि हाईकोर्ट के डर से ही सरकार ने पनबिजली प्रोजेक्टों के करार रद्द कर दिए। यह इस बात का द्योतक है कि राजनेता अपने विरोधियों के बारे में पूरी तैयारी कर मैदान में नहीं उतरते। लेकिन निशंक कुंभ घोटाले से कुछ वैसे ही बिदकते हैं जैसे लाल कपड़ा दिखाने से स्पेन के सांड बौखला जाते हैं। हरीश रावत द्वारा कुंभ घोटाले का जिक्र किए जाने से बौखलाए निशंक ने सोनिया गांधी को भी इसमें लपेट लिया। इस मुद्दे पर निशंक की इस बौखलाहट भरी मुद्रा ही इस कार्यक्रम की एकमात्र उपलब्धि कही जा सकती है। हालांकि निशंक की बौखलाहट को सरेआम होने से बचाने के लिए स्टार न्यूज ने हरीश रावत के जवाब को बीच में ही काट दिया। क्या पेड न्यूज पर निगरानी रखने वाले चुनाव आयोग के दस्ते कारपोरेट मीडिया के खेल को भी देख रहे हैं या यह भी एक नाटक ही है?

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