बुधवार, 6 जुलाई 2011

Monsoon shattered Uttrakjhand govt's crisis management

मानसून की दस्तक से खुली आपदा प्रबंधन की पोल

एस0 राजेन टोडरिया

मानसून की पहली बौछार ने साबित कर दिया कि उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल के अनुभवों से कुछ नहीं सीखा है। केवल चार दिन की बरसात से राज्य के 80 से ज्यादा मोटर मार्ग अवरुद्ध हो गए, सभी राजमार्गों पर यातायात ठप्प हो गया। आधा दर्जन जानें चली गईं और हजारों की तादाद में यात्री विभिन्न इलाकों में फंसे रहे। कुछ पहाड़ी कस्बों में सब्जियों और रसोई गैस समेत आवयश्यक वस्तुओं की किल्लत भी पैदा होने लगी। राज्य सरकार आपदा प्रबंधन के अपने ढ़ांचे को चुस्त दुरुस्त करने के बजाय सिर्फ केंद्र सरकार से पैसा ऐंठने के जुगाड़ में ही लग गई हैं। आपदा के फर्जी आंकड़े तैयार करने के लिए उच्च स्तर से आए निर्देशों पर सरकारी फाइलों ने दौड़ लगानी शुरु कर दी है। यह चूंकि चुनावी साल भी है और आपदा राहत चुनावी मुद्दा भी बनाया जाना है इसलिए आश्चर्य न होगा यदि आपदा क्षति के नाम पर पिछले साल के 21000 करोड़ रु0 के आंकडे़ को शर्मिंदा करने वाला कोई आश्चर्यजनक आंकड़ा केंद्र के पाले में फेंक दिया जाय। उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के नाम पर कितनी भयावह लापरवाही और भ्रष्टाचार व्याप्त है यह मानसून की पहली बौछार ने साबित कर दिया है। पिछले साल आपदाओं के आगे जिस तरह से उत्तराखंड का आम आदमी असहाय छोड़ दिया गया वह इतना बताने के लिए काफी है कि इस हिमालयी राज्य के गठन के दस सालों में आपदा प्रबंधन के लिए बुनियादी काम भी नहीं किया गया। जबकि भूकंप और भूस्खलन के नजरिये से यह देश के सर्वाधिक संवेदनशील राज्यों में है और प्राकृतिक आपदाओं के कारण हर साल औसतन सौ लोग अपनी जान गंवा देते हैं। यही नहीं हर साल अरबों रु0 की सरकारी और निजी संपदा की क्षति दैवी आपदाओं से होती है।गत वर्ष भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं के आगे सरकारी तंत्र न केवल निकम्मा और नाकारा साबित हुआ बल्कि यह भी प्रमाणित हो गया कि सरकारी तंत्र की रुचि सिर्फ आपदा राहत को चट करने में है और जनता को अल्पकालिक या दीर्घकालिक राहत पहुंचाने में इस तंत्र की कोई दिलचस्पी नहीं है। 21 वीं सदी के अत्याधुनिक कालखंड में भी यह उत्तराखंड में ही संभव है कि बरसात के लगभग छह माह बाद तक भी उत्तराखंड के अधिकांश मोटर मार्ग चालू नहीं हो पाए। जो चालू हुए भी वे भी कामचलाऊ ढ़ंग से।प्राकृतिक आपदा को एक साल होने को हैं लेकिन उत्तराखंड का सड़क संचार अभी भी उस झटके से नहीं उबर पाया है। ऐसा नहीं है कि सरकार के पास पर्याप्त फंड नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा दिया गया 500 करोड़ रु0 का फंड होने के बावजूद राज्य सरकार की एजेंसियां उसे खर्च नहीं कर पाई हैं। आम आदमी के माली नुकसान के नजरिये से देखें तो सरकार पूरी तरह से लोगों को वाजिब राहत पहुंचाने में नाकाम रही है। आपदा राहत के नाम पर नाममात्र की धनराशि देकर सरकार ने लोगों का मजाक उड़ाने के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं किया जिससे यह लग सके कि इस राज्य में एक अदद लोक कल्याणकारी सरकार है।राहत से हटकर देखें तो राज्य सरकार की किसी भी एजेंसी ने पिछले साल की आपदा से कोई सबक नहीं लिया। राज्य के मुख्यमंत्री ने आपदा प्रबंधन को लेकर एक भी बैठक करने की जरुरत नहीं समझा। हैलिकॉप्टर यात्राओं के पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करने वाले मुख्यमंत्री ने विकास यात्रायें चाहे जितनी की हों पर उन्होने एक भी यात्रा आपदा प्रबंधन के इंतजामों का जायजा लेने के लिए नहीं की। हैलिकॉप्टर में हवा-हवाई मुख्यमंत्री ने संपर्क मार्गों की हालत देखना तो दूर राजमार्गों की हालत का जायजा भी नहीं लिया। यही कारण है कि गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ मार्गों पर यात्रा करना जान जोखिम में डालने वाला काम हो गया है। एक समय सुरक्षित समझे जाने वाले ऋषिकेश-देवप्रयाग मार्ग भी यात्रियों की सुरक्षा के नजरिये से खतरनाक हो चुके हैं। राज्य सरकार की लापरवाही और अरुचि के कारण सीमा सड़क संगठन बेलगाम हो चुका है जिसें चलते छह महीने का यात्रा सीजन सिमट कर एक महीने का ही रह गया है। सीमा सड़क संगठन की अक्षमता के कारण सर्वाधिक व्यस्त होने के बावजूद ये राजमार्ग दो-दो,तीन-तीन दिन तक अवरुद्ध रहते हैं। इसके कारण यात्रा रुट की पूरी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है। हालात इतने खराब हैं कि राज्य के इन राजमार्गों और अधिकांश मोटर मार्गों की स्थिति नवें दशक से भी गई गुजरी हो गई है। यदि राज्य सरकार प्रयास करती तो हिमाचल सरकार की तरह ऋषिकेश-जोशीमठ, ऋषिकेश-गंगोत्री राजमार्ग का काम लोक निर्माण विभाग को सौंपे जाने का मामला केंद्र से उठाकर इनके रखरखाव का काम अपने हाथ में ले चुकी होती। सीमा सड़क संगठन में व्याप्त भ्रष्टाचार और सुस्ती से बद्रीनाथ हाईवे के चौड़ीकरण का काम अगले दस सालों में भी पूरा होने वाला नहीं हैतो दूसयरी ओर लोक निर्माण विभाग में भ्रष्टाचार इस गति से बढ़ा है कि राज्य के मोटर मार्ग मात्र लोनिवि के अफसरों की कामधेनु बनकर रह गए हैं। सड़कों के निर्माण से लेकर मेंटेनेंस तक पार्टी नेताओं और विधायकों के कमीशन का कोटा तय कर सरकार ने लोनिवि के भ्रष्टाचार को राजकीय वैधता पदान कर दी है। यही कारण है कि मानसून की पहली बरसात में ही राज्य सरकार के सारे दावे धुल गए। आपदा प्रबंधन का पूरा झूठ नंगा हो गया। इस साल यदि पिछले साल के मुकाबले अस्सी फीसद भी वर्षा हुई तो पहाड़ के गांवों और कस्बों में हालात बेहद खराब हो जायेंगे। इसकी कल्पना इस बात से की जा सकती है कि पौड़ी समेत राज्य के कई पहाड़ी कस्बों में मानसून की पहली बौछार के बाद दो-दो दिन तक बिजली आंख मिचौनी खेलती रही। जाहिर है कि सड़क से लेकर बिजली तक सारी बुनियादी सुविधाओं की पोल थोड़ी सी बारिश में ही खुल जाती है। यहां तक कि राजधानी में भी थोड़ी सी आंधी के साथ बौछारें पड़ने से ही वीआईपी इलाकों के अलावा बाकी इलाकों की बिजली घंटों के लिए गुल हो जाती है।

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