सोमवार, 30 जुलाई 2012

Delhi in Stone Age due to power failure


                                       इस हाहाकार से कुछ तो सीखो
S.Rajen Todariya

उत्तरी ग्रिड फेल हुआ और दिल्ली से लेकर यूपी पंजाब में हाहाकार! सबकुछ थम गया। भला हो भूटान का जो वहां बिजली थी नही ंतो हालात बेकाबू हो जाते। अब सरकार कह रही है कि चीन और पाकिस्तान तक बिजली लाइन ले जायेंगे ताकि  इमरजेंसी में वहां से बिजली उधार ली जा सके। गजब का देश है। करोड़ों लोग परेशान रहे पर इनमें एक भी ऐसरा नहीं निकला जो स्वामी स्वरुपानंद की पिटाई कर पूछता कि हमें बिजली चाहिए ,हमें बिजली दो। राजेंद्र सिंह और भरत झुनझुनवाला की पिटाई होती तो उन्हे पता चलता कि अस्पताल,रेलवे,मेट्रों और सड़क यातायात में बिजली न होने क्या होता है। कार्यालयों और घरों में बिजली न हो तो मैदान के शहरों के क्या हाल होंगे। जो लोग परेशान हैं वे जरा इन जोगी जोगट्टों से क्यों नहीं पूछते कि हमें बिजली चाहिए। भूटान, पाकिस्तान और चीन से उधार बिजली ला सकते हैं पर अपने देश में नहीं बनने देंगे ताकि देश पाक,चीन और एक छोटे से देश भूटान के आगे बिजली के लिए कटोरा लेकर खड़ा रहे। मैडल में देखिये तो देश फिसड्डी, अन्न उत्पादन में देश फिसड्डी, रेल में देश फिसड्डी, नदियां हैं पर बिजली नहीं बहां भी देश फिसड्डी, औद्योगिक उत्पादन में भी देश फिसड्डी, चीन के रक्षा बजट के मुकाबले अपने देश का रक्षा बजट देखो तो लगता है कि जैसे किसी बीपीएल देश का रक्षा बजट है।




आज का बिजली संकट आने वाले सालों की छोटी तस्वीर है। इससे भी बुरा समय अभी आने वाला है। क्योंकि जिस तेजी से अर्थव्यस्था बढ़ रही है उसके लिए देश को जितनी बिजली अगले पांच साल में चाहिए उसका दस प्रतिशत भी नया जनरेशन नहीं होने वाला। नदियों का पानी बेकार बह रहा है,बाढ़ आ रही है पर इस फालतू पानी को अरब या हिंद महासागर में जाने देंगे पर बिजली और सिंचाई के लिए उपयोग नहीं करेंगे। क्यों? स्वामी स्वरुपानंद और उन जैसे कुछ मनोरोगी जोगी नहीं चाहते। देश बिजली संकट से हैरान है और देश का प्रधानमंत्री नीरो की तरह बांसुरी बजा रहा है। इस देश का कोई स्वाभिमान या विकास का कुछ एजेंडा है भी या यह सिर्फ स्वरुपानंद और राजेंद्र सिंह जैसे गैर जिम्मेदार लोगों की कठपुतली बना रहेगा। यदि ऐसे ही लोगों ने देश चलाना है तो मनमोहन गद्दी छोड़कर स्वरुपानंद को क्यों नहीं प्रधानमंत्री बना देते।
चीन ने इसी जुलाई में यांगत्जी नदी पर 22.5 गीगावाट यानी 22,500 मेगावाट की पनबिजली परियोजना पूरी की है। चीन को मालुम है कि यदि उसे दुनिया नंबर एक अर्थव्यस्था बना रहना है तो उसे हर साल कितनी नई बिजली पैदा करनी है। चीन के नेशनल विकास और सुधार आयोग का कहना है कि अकेले इसी परियोजना से हर साल 310 लाख टन कोयले की बचत हुई है। इसके कारण वातावरण में हर साल घुलने वाली 10 करोड़ ग्रीन हाउस गैस कम होगी,10 लाख टन सल्फर डाई आॅक्साइड और चार लाख टन नाइट्रिक आक्साइड,10,000 टन कार्बन मोनो आक्साइड ,करोड़ों टन गर्द और हजारों टन शीशा वातावरण में नहीं जाएगा। जो लोग पनबिजली को लेकर तमाम सवाल खड़े कर रहे है उनकी आंखें यदि अब भी नहीं खुलती तो मानना होगा कि वे अपनी मातृभूमि और उसके लोगों के साथ गद्दारी कर रहे हैं। जल विद्युत ऊर्जा के क्षेत्र में चीन की इस लंबी छलांग पर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि सन्2003 से सन्2007 के बीच चीन ने जितनी पनबिजली बनाई उससे उसने  हर साल 840 लाख टन कोयला जलने से बचाया। इससे उसके वायुमंडल में 19 करोड़ टन कार्बन डाई आॅक्साइड, तीन लाख टन सल्फर डाई आक्साइड और दस लाख टन नाइट्रिक आक्साइड की प्रति वर्ष की कमी आई। इससे चीन को हर साल 18000 करोड़ रुपये की आमदनी होगी। जरा दस साल बाद की तस्वीर देखें। एक ओर महाबली चीन होगा जो दुनिया को हजारों मेगावाट बिजली बेचेगा और दूसरी ओर भारत होगा जहां बिजली की कमी के कारण दंगे-फसाद होंगे या लोग घंटों तक रेलवे,मैट्रों और सड़कों पर जाम में फंसे हुए सरकार को गाली दे रहे होंगे। उत्तरी ग्रिड तो क्या सारे ग्रिड बिजली की पीक डिमांड का बोझ न उठाने से बैठ जायेंगे। अपन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि हम तो भईया पहाड़ में रहेंगे बिजली नहीं भी आएगी तो जिंदगी थोड़ी बहुत परेशानी के बावजूद चलती ही रहेगी। इसलिए पहाड़ के लोग तो बिना बिजली के हजारों साल से गुजर कर ही रहे हैं तो 21 वीं सदी में भी कर लेंगे। पर मैदानी भाईयों! आपका क्या होगा? राजेंद्र सिंह,भरत झुनझुनवाला या स्वरुपानंद को तब ढूंढोगे या तत्काल इन पर हाथ साफ करना पसंद करोगे। आज कुछ करोगे तो आपका कल बच जाएगा लेकिन कल जब तक हमारी बात समझ में आयेगी तो फिर हम ही प्रोजेक्ट नहीं बनने देंगे।
यदि जीडी अग्रवाल और राजेंद्र सिंह ने लोहारीनागपाला और ज्ञीनगर प्रोजेक्ट बनने दिए होते तो इस समय लगभग 1000 मेगावाट बिजली बन रही होती। इसमें दिल्ली को कम से कम 700 मेंगावाट बिजली तो मिल ही जाती।

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