सोमवार, 9 अप्रैल 2012

Political Ghosts make Uttrakhand Politically vulnerable


                              प्रेतबाधाओं का उत्तराखंड

राजेन टोडरिया
उत्तराखंड की मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता कोई नई बात नहीं है। अस्थिरता इस राज्य का स्थायी चरित्र बन गया है। सन् 2000 से यह राज्य प्रेतबाधा का शिकार है।राजनीति की प्रेतात्मायें इस नए नवेले राज्य को चैन से से नहीं बैठने दे रही हैं। राज्य भले ही छोटा हो पर इसमें मुख्यमंत्री बनने को आतुर इतनी अतृप्त प्रेतात्मायें हैं कि यूपी और बिहार भी शरमा जायें। यदि इन अतृप्त आत्माओं की गिनती की जाय तो आज भी प्रदेश में मुख्यमंत्री की कतार में लगी कम से कम तीस ज्ञात प्रेतात्मायें हैं जो गाहे-बगाहे अपने होने का सबूत देती रहती हैं। इन प्रेतात्मायें की शांति के बिना इस बेचारे राज्य को राजनीतिक अस्थिरता की प्रेतबाधा से मुक्ति मिलना संभव नहीं है।
आत्माओं का लोक अद्भुत है। वैसे तो हिंदू धर्म हो या ईसाई या मुस्लिम दुनिया के सारे समाजों का यकीन है कि दुनिया में अतृप्त आत्मायें भटकती रहती हैं । ये भटकती आत्मायें लोगों के लिए मुसीबत पैदा करती रहती है। हिंेदुस्तान में बरगद और पीपल के पेड़ों पर इन आत्माओं ने अपनी काॅलोनियां तक स्थापित कर दी थी। भारत में भूतों की कहानियों के अधिकांश पात्र बरगद या पीपल के पेड़ों के स्थायी निवासी ही हैं। शहरीकरण ने बरगद और पीपल के पेड़ों की बलि लेनी क्या शुरु की कि इन डेरा डालकर रह रही अतृप्त आत्मायें विस्थापित हो गईं। गाड़ियों के शोर-शराबे के चलते वैसे भी शहर प्रेतात्माओं के रहने के लिए कभी भी माकूल जगह नहीं थे। इन आत्माओं को ग्रामीण माहौल में रहने की पुरानी आदत है। हिंदुस्तान के गांव जल्द सोने वाले लोगों के लिए जाने जाते हैं। इससे प्रेतात्मायें को रात में टहलने का मौका मिलता है। रात के 12 से चार बजे तक तो वे नाईट वाॅक पर निकलती हैं। क्योंकि चार बजे सेक ब्रह्म मुहुर्त शुरु हो जाता है।यह देवताओं के स्नान करने के लिए जाने का समय होता है। स्वर्ग में शायद बाथरूम वगैरह नहीं होते होंगे या होंगे भी तो अप्सरायें ही उनका उपयोग करती होंगी। क्योंकि अभी तक मेनका या उर्वशी जैसी खूबसूरत अप्सराओं के नदी में स्नान करने के लिए आने का कोई उल्लेख नहीं मिल पाया है। यदि वे नहाने के लिए नदियों के तट पर आती तो दंगे हो गए होते। जब फिल्मों में हीरोइन के स्नान दृश्य देखने के लालायित लोग लाखों में हैं तब साक्षात अप्सराओं के स्नान का दृश्य देखने के लिए तो कुंभ लग जाएगा। वैसे ही भी फोटों में अप्सराओं के जो चित्र मिलते हैं उनसे भी यह पुष्ट होता है कि ये अतिसुंदर कन्यायें भी आइटम गर्लों की तरह कम कपड़े पहनने में ही यकीन करती हैं। यह भी हो सकता है कि ईश्वर ने देवताओं के लिए नदियों में स्नान करना जरुरी कर दिया होगा। वैसे हिंदुस्तान की नदियों की जो हालत है उसे देखते हुए देवता भी इसकी हिम्मत कर पाते होंगे,यह यकीन कर पाना मुश्किल है। देवताओं और इंसानों की जीवनचर्या के बीच सैंडविच बने प्रेतों के पास घूमने के लिए चार घंटे ही होते हैं। इनमें उन्हे घूमना भी होता है और किसी इंसान पर चिपटना भी होता है। प्रेतों को रोज रात में घूमने की सलाह शायद निजी अस्पताल के मालिक रहे किसी डाक्टर के प्रेत ने ही दी होगी ताकि प्रेतों का ब्लडप्रेशर और हार्ट वगैरह  ठीक रहे। 
इंसान सदियों से आत्माओं साथ रहता आया है । उसने इनसे निपटने के उपाय भी खोज लिए थे। लेकिन राजनीतिक प्रेतात्मा एकदम नई प्रजाति है। आप इससे ओझा या भूतप्रेत झाड़ने वाले पुराने तरीकों से नहीं निपट सकते। क्योंकि ये निराकार नहीं होती। ये सामान्य प्रेतात्माओं से ज्यादा ढ़ीट होती हैं। जांच आयोग,सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट जैसे पेशेवर और खतरनाक ओझा जब इनका इलाज नहीं खोज पाए तो सामान्य ओझा तो इन प्रेतों के लिए चूहे हैं। उत्तराखंड को भी इसी असामान्य प्रजाति के नेता प्रेतों से जूझना पड़ रहा है। राज्य में मुख्यमंत्री बनने के लिए इतनी अतृप्त आत्मायें  हैं कि आज तक कोई भी मुख्यमंत्री चैन से राज नहीं कर पाया। नित्यानंद स्वामी पहले मुख्यमंत्री के रुप में भाजपा के आलाकमान द्वारा उत्तराखंड में जिस दिन से रोपे गए उसी दिन से भाजपा में मुख्यमंत्री बनने को बेताब दो प्रेतात्माओं ने उनका पीछा करना शुरु कर दिया। इन प्रेतात्माओं ने आलाकमान की नर्सरी के इस बूढ़े फूल को ढ़ंग से खिलने नहीं दिया। वे उसकी जड़े हिलाती रहीं और एक दिन उसकी जगह आलाकमान ने आरएसएस की नर्सरी में उगाए गए पहाड़ी पौधे भगत सिंह कोश्यारी को देहरादून में रोप दिया। लेकिन संघ के इस पौधे के साथ भाजपा को भी जनता ने चुनाव में उखाड़ फेंक दिया।
राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई। लेकिन हरीश रावत को मुख्यमंत्री न बनने देने के लिए मुख्यमंत्री बनने को आतुर कांग्रेस की सारी प्रेतात्मायें एकजुट हो गईं। आखिरकार कांग्रेस आलाकमान ऐन वक्त पर तहखाने में धूल फांक रहे अपने बूढ़े गुलाब नारायण दत्त तिवारी का खयाल आया और उन्हे राजगद्दी पर बिठा दिया गया। बेचारे एनडी तिवारी, जो उत्तराखंड मेरी लाश पर बनेगा जैसा महान वाक्य बोलकर यूपी में तालियां और पहाड़ में गालियां बटोर चुके थे, को उसी उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनना पड़ा जिसे उनकी लाश पर बनना था। नारायण दत्त तिवारी को राज्य की बागडोर क्या सौंपी कि उत्तराखंड में जलजला आ गया। कांग्रेस प्रेतबाधा से ग्रस्त हो गई। हंत्या एनडी तिवारी की बलि मांगने लगा। कांग्रेस ने हंत्या का बाजा भी लगाया पर बिना बलि के प्रेतात्मा मानने को तैयार नहीं थी। आखिरकार आलाकमान बाल पकड़कर झिंझोड़ा तब जाकर कांग्रेस की प्रेत बाधा शांत हुई। लेकिन जब तक एनडी मुख्यमंत्री रहे तब तक दो चार महीने में एक बार कांग्रेस प्रेतबाधा से पीड़ित होती रही। भेंटपूजा कर कांग्रेस इस दुर्दम्य हंत्या से मोहलत मांगती रही। इस प्रेतबाधा से एनडी इतने परेशांन हुए कि उन्होने न तो चुनाव लड़ा और न कांग्रेस के प्रचार में गए। आखिरकार मुख्यमंत्री पद के लिए वह अतृप्त आत्मा और मुख्यमंत्री पर बैठकर तृप्त हुई एनडी की आत्मा दोनों के साझाा प्रयासों से कांग्रेस भूत हो गई।
बीजेपी ने जनरल बीसी खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बना दिया। बस इतना होते ही भाजपा पर भी मुख्यमंत्री बनने से रह गई प्रेतात्माओं का साया पड़ गया। भाजपा पर प्रेतबाधा ने  कुछ  ज्यादा ही असर दिखाया। पहले खंडूड़ी को बदला पर प्रेतात्माओं से तब भी छुटकारा नहीं मिला फिर निशंक को भी बदलकर भाजपा फिर से खंडूड़ी को लेकर आ गई। मुख्यमंत्री पद के लिए लालायित प्रेतों ने भाजपा को इतना रुलाया कि उसे पांच साल में दो बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। अब कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया तो कांग्रेस पर इतना जबरदस्त प्रेत लगा उससे पीछा छुड़ाने में आलाकमान को भी नानी याद आ गई। इस बार सन् 2002 के हंत्या ने विजय बहुगुणा की बलि मांगनी शुरु कर दी। अब हंत्या थोड़ा शांत हुआ। कुछ मंत्रीपद,लालबत्ती और राज्यसभा सीट की भेंट चढ़ाने के बाद हंत्या अब थोड़े दिन के लिए शांत है पर कुछ पता नहीं है कि कब प्रेतात्मा कांग्रेस पर सवार होकर फिर से बहुगुणा की बलि मांगने लगे।
दरअसल इस समय मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस नौ प्रेतात्मायें राज्य में घूम रही हैं तो भाजपा इस मामले में कांग्रेस से भी दो कदम आगे है। उसके पास ऐसी एक दर्जन प्रेतात्मायें हैं जिन्हे हर हाल में मुख्यमंत्री बनना है। कांग्रेस और भाजपा दोनों को मिलाकर मुख्यमंत्री पद के लिए इक्कीस प्रेतात्मायें हैं। दोनों यूकेडी के पास तीन ऐसी प्रेतात्मायें हैं जो एक बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने को बेताब हैं। मुख्यमंत्री बनने के लिए कुछ फुटकर प्रेतात्मायें भी हैं। ऐसी चार अतृप्त आत्मायें हैं जिन्हे लगता है कि उत्तराखंड का तब तक भला नहीं हो सकता जब तक वे साक्षात मुख्यमंत्री नहीं बन जाते। इनमें सबके सब चुनाव हार चुके हैं पर ये इतनी भीषण प्रेतात्मायें हैं कि इन्हे फिर भी मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ। जिस राज्य में तीस-तीस प्रेतात्मायें मुख्यमंत्री बनने की लालसा में छुट्टा घूम रही हों उस प्रदेश में मुख्यमंत्री कोई भी बन जाय राजनीतिक स्थिरता नहीं आएगी। इस राज्य का गठन शुभ घड़ी में नहीं हुआ, यह निशाकाल में इसका जन्म हुआ है इसलिए यह प्रेतबाधा से ग्रस्त ही रहेगा। विजय बहुगुणा चाहें तो किसी अनुभवी गारूड़ी की सेवायें हायर कर रिस्पना के तट पर रात्रिकाल में एक काले मुर्गे की बलि देकर प्रेतशांति का उपाय कर सकते हैं। हो सकता है कि यह उपाय उन्हे टेम्परेरी रिलीफ दिला दे। 



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