अखबार नहीं अफीम हैं
एस0राजेन टोडरिया
Vishnugaad-Pipalkoti Hydro Project,Chamoli: Under Cloud |
अमर उजाला ने तो बाकायदा प्रथम पेज पर एक पहाड़ी जाति नाम सेे एक स्टोरी छापी है जिसमें भगीरथी और अलकनंदा पर बनने वाली परियोजनाओं से पर्यावरण को हुए नुकसान का विस्तृत ब्यौरा है। जबकि हकीकत यह है कि भगीरथी पर केवल दो ही पनबिजली परियोजनायें मनेरी भाली प्रथम और द्वितीय बनी हैं। टिहरी बांध तो यूपी का बनाया हुआ है और उसके राजस्व का 25 प्रतिशत हिस्सा भी यूपी को ही जा रहा है। उत्तराखंड के हिस्से में तो 12 प्रतिशत राॅयल्टी और एक लाख विस्थापितों और दस लाख बांध प्रभावितों की कष्ट ही आये हैं।इस बांध को तो कल तोड़ दे ंतो सबसे ज्यादा खुशी उ त्तराखंड के लोगों को ही होगी। पर अमर उजाला और हिंदुस्तान इसका जिक्र नहीं करते। इन दोनों ही अखबारों ने एक लाइन टिहरी के विस्थापितों और बांध प्रभावितों पर नहीं लिखी।सवाल उठता है कि ये अखबार किसके नौकर हैं? किसके हितों की चैकीदारी करने ये उत्तराखंड में आए हैं? यह स्पष्ट है कि ये अखबार उत्तराखंड और पहाड़ के पक्ष में तो कतई नहीं हैं। यदि होते तो ऋषिकेश और कानपुर से लिए गए गंगा के पानी के नमूनों में पाए गए प्रदूषण की रिपोर्ट छापते और बताते कि गंगा को अपवित्र करने वाले अपराधी कौन हैं? यदि इन अखबारों में पत्रकारिता की थोड़ी भी नैतिकता होती तो ये गंगोत्री,बद्रीनाथ, उत्तरकाशी, हरिद्वार और ऋषिकेश के आश्रमों से गंगा में जाने वाली गंदगी की रिपोर्ट छापते और बताते कि धर्म के धंधेबाज और उद्योगपति ही गंगा के सबसे बड़े दुश्मन हैं। लेकिन नहीं ! इनसे तो इन अखबारों का धंधा चलता है।
इसलिए गरीब की जोरू तो पहाड़ के लोग हैं जिन पर सबको हमला करना है। क्योंकि इन सबका एजेंडा एक ही है कि उत्तराखंड को उसके जल संसाधनों का उपयोग करने से रोको। जब मुख्यधारा की पत्रकारिता ने तय कर लिया है कि वह अपने पैतृक राज्यों के पक्ष में खड़ी होकर क्षेत्रवाद के आधार पर उत्तराखंड के हितों को दूरगामी और निर्णायक नुकसान पहंुचायेंगे तब क्षेत्रीय पत्रकारिता को ही नहीं बल्कि स्थानीय समाज को भी इसके खिलाफ उठ खड़ा होना होगा। अखबारों और न्यूज चैनलों को यह समझाना होगा कि स्थानीय लोगों के हितों के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान या तो बंद करना होगा या फिर आर्थिक बहिष्कार और हुक्कापानी बंद जैसे गांधीवादी कार्रवाईयां झेलनी पड़ेंगी। उत्तराखंड के लोगों को भी यह बात गांठ बांधनी होगी कि वे जिन्हे समाचार देने वाले मान रहे हैं वे दरअसल अफीम बेचने वाले सौदागर हैं। ये 19 वीं सदी में चीन को नशेड़ी बनाने वाले अफीम सौदागरों की भारतीय संतानें हैं। अफीम के इस पेड़ को जड़ से उखाड़ो! इसकी जड़ों को जला दो! तभी नशे की यह खेती नष्ट होगी।
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