गडकरी के दौरे पर लाखों रुपए स्वाह
चाटुकारिता में सन् 76 के तिवारी की याद दिला गए मुख्यमंत्री
एस0 राजेन टोडरिया
मुख्यमंत्राी रमेश पोखरियाल निशंक को इस बात का श्रेय जरुर दिया जाना चाहिए कि उन्होने आपातकाल के काले दौर के संग्रहालय में पड़ी 35 साल पुराने एनडी तिवारी की उस मुद्रा को फिर से पुनर्जीवित कर दिया है जिसमें वह कांग्रेस के तत्कालीन राजकुमार संजय गांधी के आगे उनकी चरणपादुकायें हाथ में लिए बिछे पड़े थे । इस बार पात्र और पार्टी बदल गई। लेकिन पटकथा और मुद्रा में मामूली फेरबदल कर इतिहास ने खुद को दोहरा दिया। मकसद इस बार भी मुख्यमंत्री की कुरसी को महफूज रखना ही था । भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उनके परिवार के आगे-पीछे घूमते हुए राज्य के मुख्यमंत्री को जिन्होने भी देखा है वे एनटी रामाराव को याद करते हुए दुखी हो सकते हैं कि राष्ट्रीय दलों में मुख्यमंत्रियों की हैसियत आलाकमान के चपरासियों से ज्यादा नहीं है। उत्तराखंड की जनता की गाढ़ी कमाई का लाखों रुपया फंूककर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने बता दिया कि कुरसी बचाने के खेल के वह सबसे बड़े उस्ताद हैं। उनकी कुरसी चुनाव तक बची रहेगी। अपने लखटकिया स्वागत से अभिभूत नितिन गडकरी उनके गले में अपना अभिमंत्रित ताबीज बांधकर इस बात का पक्का इंतजाम करके गए हैं कि कड़क मूंछो वाला बूढ़ा जनरल निशंक के सपनों में जाकर उसे न डराए । बताया जाता है कि उन्होने जनरल को भी सख्त ताकीद कर दी है कि एक सुकोमल,चपल, चंचल और नाबालिग राजनीतिक बच्चे के सपने में जाकर उसे डराना मर्दों का काम नहीं है।प्रजा समाजवादी पार्टी के जुझारु नेता के रुप में अपनी राजनीतिक पारी शुरु करने वाले नारायण दत्त तिवारी के राजनीतिक जीवन की चर्चा के दौरान अमौसी हवाई अड्डे पर संजय गांधी के स्वागत में बिछी हुई वह मुद्रा फ्रीज होकर अक्सर फ्लैशबैक में आती रहती है। राजनीति में दरबारी संस्कृति का जब भी जिक्र होता है तब यह मुद्रा भी अक्सर फोकस में आ जाती है। पर एनडी सिपर्फ इस मुद्रा से बने नेेता नहीं हैं। उनकी जड़ें इस मुद्रा से बाहर राजनीति की सख्त जमीन पर भी हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री उनकी इस मुद्रा पर इस कदर आशक्त हैं कि उन्होने इसे अपने राजनीतिक प्रबंधन का मुख्य अस्त्र बना दिया है। हाल ही में जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी जब उत्तराखंड आए तो मुख्यमंत्री उनके और उनके परिवार के स्वागत में ऐसे बिछे कि सन ्1976 के काल में दफन एनडी तिवारी की वह मुद्रा एक बार फिर से पुनर्जीवित हो गई । अंतर बस इतना ही था कि पात्र और पार्टी दोनों ही भाजपा के सौजन्य से परगट हुए थे। मुद्दा भी वही था। अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष सेवा में जुटे मुख्यमंत्राी ने पीडब्लूडी गेस्टहाउसों के ब्रिटिश कालीन चौकीदारों की याद भी दिलाई और 35 साल पहले संजय गांधी के आगे कोर्निश बजाते एनडी तिवारी की याद भी। यूं तो उत्तराखंड सरकार के किसी ओहदे पर गडकरी नहीं हैं पर सरकार ने तीन-चार दिन तक पूरे-पूरे पेज के लाखों रुपए के विज्ञापन देकर कुछ ऐसा माहौल बनाया जैसा कि देवभूमि में कोई देवदूत उतर आया हो। एक तस्वीर भी छपी जिसमें डंडी पर सवार होकर यमुनोत्री जाते हुए प्रसन्न वदन गडकरी हैं और उनके बोझ से हांफते कहार हैं। यह तस्वीर अनकहे ही उत्तराखंड की व्यथा कह देती है। भारी भरकम, मोटे-ताजे नेताओं के बोझ तले हांफते उत्तराखंड की त्रासदी को अभिव्यक्त करने के लिए यह तस्वीर काफी है।गडकरी और उनके परिवार की सेवा के लिए सार एवियेशन कंपनी से हैलीकॉप्टरों का एक बेड़ा किराए पर लिया गया था। गडकरी ने उत्तराखंड सरकार के खर्चे पर यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा की। इस अवैध खर्चे को सही ठहराने के लिए उत्तराखंड सरकार ने यमुनोत्री,गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ में गडकरी के सरकारी कार्यक्रम रखने का नाटक किया। भारत में केंद्र और राज्य सरकार के जितने भी कायदे कानून हैं उनके अनुसार कोई भी गैर सरकारी व्यक्ति किसी सरकारी कार्य का उद्घाटन,शिलान्यास नहीं कर सकता और उसे इस कार्य हेतु किसी भी प्रकार का खर्च देय नहीं है। जाहिर है कि उत्तराखंड सरकार ने सरकारी कायदे-कानूनों के बाहर जाकर लाखों रुपए के विज्ञापन, हैलीकॉप्टर किराया और अन्य खर्चे अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पर किए। यह पूरा खर्च अवैध व अनैतिक है और इसे भाजपा से वसूला जाना चाहिए। जब भी इस पर कोई रिट याचिका दायर होगी तब सरकार को जनता के धन के इस बेशर्मीपूर्ण दुरुपयोग पर जवाब देते हुए नहीं बनेगा।हैरानी की बात यह है कि जनता के धन का दुरुपयोग भाजपा के उस नेता पर किया गया है जो भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस को मुन्नी से ज्यादा बदनाम करार देता है। यदि कांग्रेस मुन्नी से ज्यादा बदनाम है तो फिर लाखों रुपए की सरकारी राशि खर्च करवाकर मुफ्त तीर्थयात्रा करने वाले खुद गडकरी क्या हैं? भ्रष्टाचार के खिलाफ आसमान सर पर उठाने वाली भाजपा के नेताओं को जवाब देना चाहिए कि गडकरी की यह तीर्थयात्रा क्या ‘‘भ्रष्टाचार यात्रा’’ नहीं है? इस देश का गरीब से गरीब आदमी भी तीर्थयात्रा मुफ्त में नहीं करता। वह भी अपने बूते तीर्थयात्रा करता है। लेकिन गडकरी ऐसा नहीं करते। ऐसा भी नहीं है कि गडकरी देश की राजनीति में रघुवंश प्रसाद सिंह, मोहम्मद सलीम या गोविंद प्रसाद गैरोला जैसे नेताओं की तरह कोई गरीब नेता हों जो गरीबी के रेखा के नीचे रह रहे हों या शांताकुमार की अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले देश के दरिद्रों की जमात में शामिल हों। वह तो हजार करोड़ रु0 से ज्यादा बड़ी कंपनी के मालिक हैं। हिंदुस्तान की राजनीति का चरित्र इतना गिर गया है कि अरबपति अमीर नेताओं को भी ऐश करने के लिए फोकट का सरकारी माल और साधन चाहिए । यह कैसी भारतीय संस्कृति है जो जनता के पैसों पर हैलीकाप्टर से तीर्थयात्रा करने को बाजिब मानती है। ऐसी संस्कृति में तो भाजपा के नेता ही दीक्षित हैं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत यदि पूरे देश को संस्कृति का सबक सिखाने के बजाय अपनी आंखों के इस तारे को भारतीय संस्कृति के बुनियादी सबक के तौर पर सदाचार का पाठ पढ़ा सकें तो वे देश पर काफी बड़ा एहसान कर सकते हैं । कांग्रेस सांसद सतपाल महाराज ने गडकरी पर हुए खर्च की आलोचना तो की है पर यह साफ नहीं किया है कि क्या वह सत्ता में आने पर गडकरी से इस पैसे की वसूली करेगी । कांग्रेस यदि ऐसा ऐलान नहीं करती तो साफ है कि वह सिर्फ आलोचना करना चाहती है ओर इस तरह के भ्रष्टाचार को रोकने में उसकी कोई दिलवचस्पी नहीं है।
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