सोमवार, 6 जून 2011

रामदेव का विलाप योग
झूठ और फरेब की राजनीति से गांधी के सत्याग्रह को बदनाम कर रहे हैं बाबा
0 राजेन टोडरिया
खबरिया चैनलों में निर्माता,निर्देशक,नायक -नायिका, बाबा रामदेव का विलाप छाया रहा। योगा टीचर के इन आंसुओं ने चैनलों का काफी फुटेज खाया । कष्ट की बात यह है कि पातंजलि पीठ के कोपभवन में बैठे में बाबा को देर से पहुंचने वाले चैनलों के संवाददाताओं के आग्रह पर यह दृश्य कई बार रिप्ले भी करना पड़ा। बाबा कई योगासनों में से यह सबसे नया आसन है। लेकिन कभी गांधी भक्त नहीं रहे बाबा रामदेव को यह याद दिलाया जाना चाहिए कि अंग्रेजों के हाथों पिटने के बावजूद आजादी के पूरे आंदोलन में किसी ने गांधी को रोते नहीं देखा। सत्याग्रह विलाप करने वाले कमजोर लोगों का हथियार नहीं है। जिन अमर शहीद भगत सिंह के भक्त बाबा खुद को बताते रहे हैं वह भी कभी रोए नहीं। तब भी नहीं फॅंासी से पहले आखिरी बार उनकी मां उनसे मिलने आई। भगत सिंह जानते थे कि जनयुद्ध में आंसुओं की कोई जगह नहीं होती। ऐसा नहीं कि रोना कोई कमजोरी की बात हो पर जब आप लड़ रहे होते हैं तो विलाप नहीं करते। आंदोलनों का दमन कोई अनोखी बात नहीं है।ठस नाटक से पर्दा उठ चुका है और बाबा रंगे हाथ राजनीति करते हुए पकड़े जा चुके हैं। साफ है कि बाबा रामदेव का वातानुकूलित सत्याग्रह सर्कस दरअसल भगवा ब्रिगेडों द्वारा नियंत्रित,निर्देशित और उत्पादित था।गोविंदाचार्य और ऋतभंरा के निर्देशन में तैयार किया गया यह हाई वोल्टेज ड्रामा कांग्रेस के सौजन्य से हालांकि वक्त से पहले खत्म हो गया लेकिन इसे ऐसे ही टकराव में खत्म होना था।क्योंकि संघ परिवार की योजना यही थी कि सरकार को बलप्रयोग के लिए मजबूर किया जाय। हिंदू आतंकवाद के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार द्वारा आरएसएस की घेराबंदी किए जाने से संघ परिवार आशंकित है। वह यूपीए सरकार से किसी भी हाल में निजात पाना चाहते हैं। आरएसएस और बीजेपी के कई बड़े नेता मानते हैं कि इस समय डीएमके और एनसीपी केंद्र सरकार से खफा हैं। यदि कांग्रेस के खिलाफ बड़ा आंदोलन होता है तो ये दोनों दल यूपीए से अलग हो सकते हैं। इससे केंद्र में यूपीए सरकार गिर जाएगी और सन् २०१४ के बजाय लोकसभा चुनाव २०११-१२ में हांे जायेंगे। लालकृष्ण आडवाणी समेत भाजपा की पूरी लीडरशिप सत्ता में आने को बेचौन हैं। मध्यावधि चुनाव होने से कांग्रेस की हार सुनिश्चित है क्योंकि डीएमके,एनसीपी के हटने और जगन रेड्डी की बगावत से यूपीए को महाराष्ट्र,आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में नुकसान होगा। जयललिता चूंकि बीजेपी के करीब है इसलिए सत्ता एनडीए के हाथ में आ जाएगी। रामदेव के पूरे सत्याग्रह के पीछे दरअसल यही खेल था।लेकिन यह नहीं भूला जाना चाहिए कि बाबा के विकास में सबसे ज्यादा योगदान कांग्रेस का रहा है। उसके मंत्रियों,मुख्यमंत्रियों ने बाबा के कार्यक्रमों में जाकर उनकी दुकान चमकायी। इस आंदोलन में भी कांग्रेस ने ही बाबा को पंचतारा सुविधायें उपलब्ध कराईं। उसके मंत्रियों ने अगवानी कर रामदेव को जितना महत्व दिया उससे भिंडरावाला प्रकरण की याद ताजा हो गईं। कांग्रेस ने भी साबित कर दिया कि वह राजनीतिक कौशल के कितने गहरे संकट से गुजर रही है।कांग्रेस बाबा के जिस नरम हिंदुत्व को भुनाने के फेर में थी उसे कट्टरपंथी हिंदुत्व की लाइन वाली आरएसएस ले उड़ी। यह पुलिस दमन भले ही अनावश्यक था पर बाबा रामदेव और भगवा मंडली इीजेपी के पक्ष में हवा बनाने के लिए ऐसा ही वातावरण चाहती थीं।बाबा रामदेव पर जो सवाल उठ रहे हैं उनमें पांतजलि पीठ की जमीन के साथ दो सौ कंपनियों के पर भी सवाल उठ रहे हैं।बताया जाता है कि इन कंपनियों के जरिये बाबा ने करोड़ों रु0 की आयकर छूट ली है। ये कंपनियां प्रवर्तन निदेशालय के रडार पर हैं।अभी यह रहस्य ही है कि बाबा को दान देने वाली कारपोरेट कंपनियां ओर धन्ना सेठ कौन हैं और उनके असली व्यवसाय क्या हैं? बाबा को देश की जनता को यह जवाब देना है कि दस के भीतर ही वह साइकिल चलाने वाले गरीब साधु से दो हवाई जहाज,एक हैलीकॉप्टर रखने की हैसियत के साथ १२०० करोड़ रु० का कारोबार चलाने वाले अमीर कैसे बन गए? क्या यह कल्पना की जा सकती है कि एक गरीब आदमी दस साल में मात्र ईमानदारी से इतनी दौलत एकत्र कर सकता है? उनके दुनिया के सबसे महंगे इलाके स्कॉटलैंड में एक द्वीप है और मारीशस में बेहिसाब जमीन वाला एक आश्रम है जिसके बारे में समूचे उत्तराखंड में चर्चा है कि इस आश्रम में उत्तराखंड के एक बड़े भाजपा नेता ने भी निवेश किया है? पूरा उत्तराखंड उस नेता के बारे में जानता है। क्या रामदेव बता सकते हैं कि वे कौन से लोग हैं जिन्होने उन्हे दान देकर कई खरबपति बना दिया । बाबा रामदेव में साहस हो तो वे उन सारे लोगों की सूमची देश की जनता के सामने रखें। क्या यह चौंकाने वाले बात नहीं है कि लाखों,करोड़ों और अरबों रु० दान देने वाले सारे महान दानदाता सिर्फ रामदेव को ही मिले? जाहिर है कि कालेधन की लड़ाई लड़ रहे बाबा की दाल में काफी कुछ काला है।यह सारा खेल क्या है? क्या इसकी उपेक्षा की जा सकती है? क्या रामदेव के मंच भ्रष्टाचार को गलियाने वाली ऋतभंरा को यूपी सरकार ने मात्र एक रुपए में सैकड़ों एकड़ जमीन नहीं दी? जिस देश में करोड़ों लोग भूमिहीन हों वहां क्या एक व्यक्ति का इस तरह से सरकारी जमीन स्वीकार करना भ्रष्टाचार नहीं है?दुर्भाग्य यह है कि सत्याग्रह के नाम पर बाबा रामदेव ने गांधी के उस पवित्र साधन का मजाक उड़ाया है जिसका मकसद ही सत्य का आग्रह है। बाबा ने पहला झूठ अपने मकसद के बारे में बोला। योग शिविर के नाम पर अनुमति ली और आंदोलन चलाया। पंचतारा सुविधायें जोड़कर गांधी के औजार का अपमान किया। सत्याग्रही झूठ नहीं बोलता और बाबा अपने ही भक्तों से झूठ बोलते रहे। बाबा ने अपने भक्तों को नहीं बताया कि वे आंदोलन के लिए तैयार होकर आयें बल्कि उन्हे योग शिविर के नाम पर जमा किया। असत्य और फरेब की राजनीति को सत्याग्रह का नाम देकर बाबा ने अपनी गरिमा के साथ सत्याग्रह की गरिमा भी कम की।गांधी के सत्याग्रह को बदनाम करने वाले बाबा जब गिरफ्तारी के नाम पर भाग खड़े हुएऔर महिलाओं के पीछे छिप गए। उनका कहना है कि जान बचाने के लिए उन्होने एक महिला की सलवार और कुर्ता पहना। यह भी झूठ है। क्योंकि जिस महिला को उन्होने इसकी गवाही के लिए पेश किया वह हाईट में बाबा से बहुत छोटी है। जो जान बचाने के लिए भाग खड़ा होता हो वह सत्याग्रही नहीं हो सकता। क्या गांधीजी कभी सत्याग्रह के मैदान से भागे?सत्याग्रह कायर का हथियार नहीं है।सत्याग्रह के लिए अंतिम पिटने का साहस और हाथ न उठाने का विवेक और संकल्प चाहिए। पुलिस अत्याचारों की शिकायत करने वाले रामदेव को मीडिया के सामने रोने के बजाय गांधी के सत्याग्रह को पढ़ना चाहिए था।क्या रामदेव बता सकते हैं कि वह खुद गिरफ्तारी देने के बजाय क्यों भाग खड़े हुए? विहिप और बजरंग दल की जो युवा ब्रिगेड मंच से पुलिस पर पत्थर फेंक रही थी उसे भी क्या सत्याग्रह माना जाय? सच तो यह है कि रामदेव और उनके समर्थक भले ही दिन में गला फाड़कर ‘‘मेरा रंग दे बसंती चोला’’ गा रहे हो परंतु जब पुलिस आई तो ये सारे भाग खड़े हुए। क्या बाबा रामदेव मात्र भगत सिंह का फोटो दिखाकर लोगों को मूर्ख बना रहे थे? भगत सिंह की परंपरा बलिदान देने वाली क्रांतिकारी परंपरा है। भगत सिंह जानते थे कि उनकी शहादत से देश में आजादी की लडज्ञई तेज होगी इसलिए उन्होने जिंदा रहने के बजाय फांसी का रास्ता चुना। उनके भकत् हरोने का ढ़ोंग कर रहे बाबा ने औरतों की सलवार कमीज पहनकर भागने का रास्ता चुना। भगत सिंह होते तो इस कायरता पर पता नहीं क्या कहते। पर इतना तय है कि यह न गांधी का रास्ता है और न भगत सिंह का,यह राजनीतिक मदारीगिरी है। रामदेव क्या बता सकते हैं कि उनके हजारों समर्थकों की भीड़ में कितने लोगों ने पुलिस दमन के खिलाफ उस समय अपनी गिरफ्तारी दी ।राजनीतिक कार्यकता्र और भक्तों की भीड़ में बुनियादी फर्क है। आंदोलन न तो वीकएंड पिकनिक स्थल होते है जहां कि लोगसपरिवार दौटे बचचों के साथ तफरीह करने के लिए जाते हैं और योगा शिविार होते हैं जहां हास्य योग के बहाने कुछ हल्का हो लिया जाय। आंदोलन गंभीर राजनीतिक कर्म है। राजनीतिक कार्यकता्र जानता है कि पुलिस उसके गले पर माला डालने या आसन सीखने के लिए आयेगी बल्कि पीटने,गोली चलाने और दमन करने ही आएगी। राजनीतिक कार्यकता्र इसके लिए तैयार होकर आता है और अपने परिवार वालों को भी मानसिक रुप से तैयार करके आता है। क्या बाबा ने यह किया? रामलीला मैदान में पुलिस कार्रवाई की तुलना जालियांवाला बाग कांड से करना सबसे बडा झूठ है। क्या वह जानते हैं कि जालियांवाला बाग में कितने लोग मारे गए।सवाल यह है कि क्या संघ परिवार और भाजपा के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाया जा सकता है? क्या खुद भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी सांप्रदायिक ताकतों के साथ भ्रष्टाचार की जंग छेड़ी जा सकती है। क्या इस लड़ाई का मकसद भगवा ब्रिगेडों के लिए रास्ता तैयार करना है। खुद प्रधानमंत्री के लिए सीधे चुनाव की मांग कर रामदेव ने स्व्ीकार कर लिया है कि वह देश में प्रधानमंत्री की तानाशाही चाहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति की तर्ज पर वह चाहते हैं कि देश में ऐसा शासक बैठे जो संसद के प्रति जवाबदेह नहीं हो। यानी पांच साल तक एक व्यक्ति को मनमानी करने की छूट हो। यहां पर आकर रामदेव भगवा ब्रिगेडों के फासीवाद वाले एजेंडे पर आ जाते हैं। क्या देश को रामदेव और आरएसएस की मांग के हिसाब से एक व्यक्ति की तानाशाही को मंजूर करने की स्थिति में है ? क्योंकि सब जानते हैं कि भाजपा शासित राज्यों में संघ और भाजपा से जुड़ी संस्थाओं और व्यक्ति किस तरह से घपलों में लिप्त हैं। दरअसज जो लोग विचारहीनता के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में सबके शामिल होने की वकालत कर रहे हैं वे बीपी सिंह की तरह एक और बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं।देश अन्ना हजारे,या कुछ गैरदलीय लोगों के एनजीओवाद से नहीं चलेगा,देश विचारधारा की राजनीति से चलेगा। गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी,आर्थिक असुरक्षा के खिलाफ लड़े बगैर भ्रष्टाचार की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। जो लोग देश ९८ प्रतिशत लोगों की समस्याओं पर बोले बगैर कारपोरेट कंपनियों के चंदे पर भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने का दावा कर रहे हैं वे दरअसल पाखंड कर रहे हैं।

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