मंगलवार, 13 मार्च 2012

News Channel of India: The killer of Facts




                खबरों के बाजार में न्यूज चैनलों का झूठ 
एस0राजेन टोडरिया

हरीश रावत की काॅफी के प्याले के झाग वाली बगावत को लेकर देश के न्यूज चैनलों ने झूठ की सारी हदें पार कर दीं। स्टार न्यूज समेत प्रतिष्ठित और विश्वसनीय होने का दावा करने वाले कई न्यूज चैनलों ने ब्रेकिंग न्यूज में बताया कि विजय बहुगुणा को सोनिया गांधी ने दिल्ली बुला लिया है। कहा गया कि विजय बहुगुणा के स्वागत में दो विधायक पहुंचे। जबकि टिहरी, पौड़ी,चमोली, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग,देहरादून,नैनीताल और हरिद्वार जिलों के 15 विधायक जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर मौजूद थे। इन्ही चैनलों ने फिर बताया कि बहुगुणा जौलीग्रांट से दिल्ली रवाना हो गए हैं। कुछ ने कहा कि बहुगुणा देरादून स्थित डिफेंस काॅलोनी वाले घर से वापस दिल्ली जायेंगे। न्यूज चैनलों ने फिर बे्रकिंग न्यूज फ्लैश दिया कि मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह रद्द हो गया है। अब शपथ ग्रहण समारोह सोनिया गांधी से विजय बहुगुणा और हरीश रावत की बातचीत के बाद तय होगा। इस दौरान सारे विद्वान न्यूज एंकरों ने मुख्यमंत्री बदले जाने की खबरें खूब जोरशोर से दिखाईं। इससे भी काम नहीं चला तो दोपहर बाद से कांग्रेस विधायक दल के दो फाड़ होने की खबरें चलने लगीं। दिलचस्प बात यह है कि ये सारी खबरें बिना किसी बाइट के चलाई जा रही थीं। जबकि न्यूज चैनलों का दावा है कि उनके यहां बिना बाइट के खबर बन ही नहीं सकती। ये सारी अफवाहें निकली। देश के महान न्यूज चैनल दिन भर चंडूखाने की गप्पों को खबर की तरह पेश करते रहे। उत्तराखंड में लोग असमंजस में पड़े रहे कि क्या हो रहा है। सारे राज्य से आने वाले फोनों ने जीना हराम कर दिया। ये खबरें थमी तो कहा गया विजय बहुगुणा के शपथग्रहण समारोह में मात्र आठ विधायक ही मौजूद थे। जबकि समारोह में 18 विधायकों की मौजूदगी के गवाह वहां सैकड़ों लोग थे। इनमें विजयपाल सजवाण,प्रीतम पंवार, विक्रम नेगी, दिनेश धनै, मंत्री प्रसाद नैथानी, सुबोध उनियाल, अनुसुइया प्रसाद मैखुरी, डा0जीतलाल,राजेंद्र सिंह भंडारी, अमृता रावत, शैलारानी रावत, उमेश शर्मा, राजकुमार, कुंवर प्रणव सिंह, हरीश दुर्गापाल, शैलेंद्र सिंघल,नवप्रभात,यशपाल आर्य थे। एनडीटीवी में तो कहा गया कि 24 विधायक हरीश रावत के साथ हैं। जबकि सच यह है कि हरीश रावत के साथ मुख्यमंत्री के पद पर दावा करने वाले हरक सिंह रावत, सुरेंद्रसिंह नेगी के अलावा दिनेश अग्रवाल, प्रीतम सिंह, फुरकान, प्रदीप बत्तरा,फर्सवाण, हिमेश खरक्वाल, गोविंद कुंजवाल, सरिता आर्य, मनोज तिवारी,मयूख महर, महेंद्र सिंह माहरा कुल 15 विधायक थे। यानी हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाने के समर्थक 15 विधायक ही थे। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इन 15 विधायकों में से दो ने कांग्रेस पर्यवेक्षकों के सामने विजय बहुगुणा को समर्थन दिया। कुल मिलाकर हरीश रावत के समर्थक विधायकों की संख्या 11 मार्च को 13 थी। बसपा के तीन विधायकों में से दो और तीन निर्दलीयों तथा यूकेडी का एक विधायक समेत हरीश रावत के विरोध में 39 में से 20, समर्थन में 15 तथा अन्य दावेदारों के समर्थन में 4 विधायक थे। इनमें इंदिरा हृदयेश रावत के साथ नहीं हैं। एक बसपा विधायक तटस्थ है। लेकिन न्यूज चैनलों ने इसे 24 बता दिया वह भी विधायकों के नाम का उल्लेख किए बिना ही। यह और भी रोचक है कि सुबह यह संख्या 11 बताई गई। लेकिन जब पता चला कि दल विभाजन के लिए 21 विधायक जरुरी हैं तब न्यूज चैनलों ने अचानक हरीश रावत के साथ 22 विधायकों का आंकड़ा पेश कर दिया। यानी कांग्रेस में दो फाड़ होने की अपनी थ्योरी को अमली जामा पहनाने के लिए न्यूज चैनलों ने फर्जी आंकड़े जुटा डाले। इस कहानी को रोमांचक बनाने के लिए निशंक की बाइट ले ली गई । मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद आजकल वह हर पल,हर क्षण सरकार बनाने के लिए तैयार रहते हैं। उनसे किसी भी चैनल पर एक अदद सरकार आनन-फानन में बनवाई जा सकतीे हैं। बस उन्हे इतना ही गम है कि भाजपा आलाकमान उन्हे सरकार बनाने का मौका नहीं दे रही है। गजब यह है कि भाजपा के खांटी संघी नेता भगत सिंह कोश्यारी भी धर्मनिरपेक्ष और मुस्लिम तुष्टीकरण वाले हरीश रावत की मदद करने को दौड़ पड़े।
लेकिन झूठ आखिर झूठ ही होता है। शाम आते-आते हरीश रावत की बगावत की कहानी का पूरा झााग बैठ गया। हरीश रावत को कहना पड़ा कि वह पार्टी में ही रहेंगे। बगावत की तुरही बजा कर गडकरी से मुलाकात की खबर फीड करने वाले सांसद प्रदीप टम्टा ने भी शाम तक गडकरी से मुलाकात की बात झुठला दी। सारे दिन की बगावत की कहानी तथ्य न होने के कारण दम तोड़ गई। दो फाड़ तो दूर एक भी विधायक या सांसद हरीश रावत के साथ हुए अन्याय के विरोध में पार्टी छोड़ने को तैयार नहीं हुआ।मीडिया का पूरा झूठ नंगा हो गया। यानी एक अफवाह पर पूरा मीडिया अपने दर्शकों को मूर्ख बनाता रहा। न हरीश रावत ने मंत्रीपद से इस्तीफा दिया था, न रावत के साथ 22 या 24 विधायक थे,न पार्टी दो फाड़ हुई। पर मीडिया ने पूरे दिन आसमान सर पर उठाए रखा। जबकि हरक सिंह रावत और प्रदीप टम्टा की बाइट के आधार पर खबर यह थी कि हरीश रावत के साथ अन्याय पर प्रदीप टम्टा की बगावत और कांग्रेस विधायको द्वारा शपथ ग्रहण का बहिष्कार।
यह क्या है? दरअसल यह आजकल का मीडिया मैनेजमेंट है। यदि आपके पास कुछ करोड़ रुपए हें तो आप किसी भी चैनल पर अफवाह को खबर की तरह चलवा सकते हैं। भारत के न्यूज चैनलों को लगता है कि मीडिया जिसको कहे वह मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन जाना चाहिए, वह जिसे चाहे उससे इस्तीफा ले लिया जाना चाहिए, वह जिसे कहे उसे क्रिकेट टीम में रखा जाना चाहिए और जिसे वह न चाहे उसे हटा दिया जाना चाहिए। वह यदि चीन के खिलाफ हैतो भारत को चीन से लड़ाई छेड़ देनी चाहिए या आंतकी कैंपों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तान के भीतर बमबारी कर देनी चाहिए। मीडिया का यह भ्रष्टाचार एक दिन देश को लू डूबेगा। लेकिन इसका एक और पहलू है। मीडिया उत्तराखंड के हर मुख्यमंत्री को दबाव में लेने की कोशिश करता है और उससे मंथली वसूली कर सरकार को भ्रष्टाचार की छूट दे देता है। यही कारण है कि उ त्तराखंड के एक भी घोटाले के आरोपी को मीडिया जेल में नहीं पहंुचा सका। मीडिया ने विजय बहुगुणा को फांसने के लिए खबरों का ट्रैप  बिछा दिया है। अपने खिलाफ दिखाई जा रही खबरों से वह भी उसी तरह फंस जायेंगे जिस तरह से उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री फंसते रहे हैं। दस साल में उत्तराखंड की जनता का 200 करोड़ रु0 तो मीडिया के सेठों के पेट में गया है।              

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