शनिवार, 17 मार्च 2012

Harak Singh Rawat: Ready to Revolt







हाईकमान को खुली चुनौती या हरक का मास्टर स्ट्रोक
                 अब कांग्रेस से पीछा छुड़ाना चाहते हैं हरक सिंह रावत 

एस0 राजेन टोडरिया
Harak Singh Rawat: Ready to revolt
प्रतिपक्ष के नेता हरक सिंह रावत कांग्रेस आलाकमान की अथारिटी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं। ‘मैं किसी नेता का गुलाम नहीं‘ जैसा आक्रामक जुमला बोलकर उन्होने कांग्रेस आलाकमान को खुली चुनौती दे दी है। हरक यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होने यह भी कह दिया कि वह किसी नेता की कृपा से चुनाव नहीं जीते हैं बल्कि खुद अपनी बदौलत चुनाव जीते हैं। हरक सिंह की यह चुनौतीपूर्ण मुद्रा बताती है कि वह चाहते हैं कि कांग्रेस आलाकमान उनके खिलाफ कार्रवाई करे। तो क्या हरक सिंह विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा के टिकट से मुख्यमंत्री के रुप में उपचुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं? क्या हरीश रावत खेमा हरक सिंह को आगे कर कांग्रेस आलाकमान के अगले कदम का अनुमान लगाना चाहता है? हरक सिंह उत्तराखंड के घाघ नेताओं में से एक हैं इसलिए उनके बयान को गुस्से में दिया गया बयान मानना भूल होगी। वह नपेतुले तरीके से एक खास रणनीति के तहत आलाकमान को खुद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उकसा रहे हैं। कांग्रेस आलाकमान के सामने संकट यह है कि यह बयान सोनिया गांधी की अथाॅरिटी को भी चुनौती दे रहा है।
हरक सिंह रावत उत्तराखंड की राजनीति में बहुत बड़े नेता भले ही न माने गए हों पर उनकी दबंग छवि के मुरीदों की कमी नहीं रही है। भुजबल की राजनीति के वह सबसे बड़े प्रतीक हैं। सोशल इंजीनियरिंग में भी उनकी तकनीक लाजवाब रही है। भाजपा में भी उन्होने अपनी शर्तों पर राजनीति की और कभी किसी आलाकमान की परवाह नहीं की। बसपा में भी वह मायावती को अपने हिसाब से चलाते रहे। कांग्रेस में आने के शुरुआती सालों में वह थोड़े काबू में रहे पर कांग्रेस द्वारा टीपीएस रावत की कीमत पर उन्हे प्रतिपक्ष का नेता बनाए जाने के बाद उन्हे कांग्रेस कभी नियंत्रित नहीं कर पाई। कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि प्रतिपक्ष का नेता विधानसभा की दीवारों से बाहर आकर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के समांतर खड़ा हो गया। हरक सिंह रावत के वर्चस्ववादी राजनीतिक स्वभाव से कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष यशपाल आर्य दब गए और उनकी अथाॅरिटी जनता और कांग्रेस के भीतर काफी कमजोर हो गई। प्रतिपक्ष का नेता बनने के बाद हरक सिंह ने सिर्फ सतपाल महाराज,विजय बहुगुणा को ही चुनौती नहीं दी बल्कि हरीश रावत के वर्चस्व को भी चुनौती दे डाली। मुख्यमंत्री के दावेदार के रुप में उभरने के लिए उन्हे इन सबके मुकाबले में खड़े होना ही था इसलिए इन सब पर हावी होने की उनकी रणनीति कामयाब रही और वह कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री पद के लिए छठे सवार के रुप में स्थापित हो गए। हालांकि उनकी यह महत्वाकांक्षा ही चुनाव में उनके टिकट के लिए खतरनाक बन गई। उन्हे सतपाल और हरीश रावत ने रुद्रप्रयाग के लाक्षागृह में जा पटका। लेकिन एक सुनिश्चित हार को जीत में बदलकर हरक सिंह ने बताया कि चुनावी तिकड़मों में उनका कोई जवाब नहीं है।उन्होने भाजपा के अजेय नेता और दिग्गज मातबर सिंह कंडारी को उन्ही के गढ़ में रौंद डाला। वह भी तब जब वह इस सीट पर बाहरी प्रत्याशी थे और दो-दो विद्रोही कांग्रेसी उम्मीदवारों का सामना कर रहे थे। हरक सिंह ने जखोली ब्लाॅक की लस्या और बांगर पट्टियों में ही मातबर सिंह कंडारी के 23 सालों के वर्चस्व को चूर-चूर कर डाला।वयोव्द्ध अवस्था में जा पहुचे कंडारी को अपने ही घर में इतनी अपमानजनक हालत का सामना कभी नहीं करना पड़ा।
लेकिन यह पहला मौका नहीं था जब हरक सिंह ने ऐसा उलटफेर कर दिखाया हो। सन् 1996 में गढ़वाल लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी की हार के असली इंजीनियर भी वही थे। सतपाल महाराज की जीत दरअसल हरक सिंह की उसी ब्रिगेड का करिश्मा है जिसे एक जमाने में पौड़ी जिले की चुनावी राजनीति की सबसे दबंग व माहिर टीम माना जाता था।
तमाम प्रतिकूल राजनीतिक परिस्थितियों के बावजूद इस बार हुई जीत से हरक सिंह का आत्मविश्वास इस समय आसमान पर है। सतपाल महाराज और हरीश रावत के समर्थकों द्वारा चुनाव में निपटाए जाने की साजिशों से बच निकले हरक सिंह का यह आत्मविश्वास स्वाभाविक भी है। लेकिन कांग्रेस आलाकमान को चुनौती देने की उनकी राजनीति इस आत्मविश्वास से पैदा नहीं हुई है। इसका पहला राजनीतिक कारण सतपाल और विजय बहुगुणा की हालिया दोस्ती है। हरक सिेह किसी हालत में सतपाल महाराज को मजबूत होते नहीं देख सकते। विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के बाद सतपाल महाराज एकाएक किंगमेकर की भूमिका में आ गए हैं। बहुगुणा ने मंत्रियों के चयन में उन्हे ही प्रमुख भूमिका दे दी है। यह स्थिति उनके लिए असह्य है और राजनीतिक रुप से खतरनाक भी।इसीलिए हरीश रावत ने उन्हे आगे कर दिया है। हरक सिंह के जो तेवर है उससे उनका निपटना तय है। बहुगुणा विरोधी धड़े से हरीश रावत ही अकेले ठाकुर नेता बचे रहते हैं। यदि कांग्रेस आलाकमान कभी नेतृत्व परिवर्तन की सोचेगा तो हरीश उम्मीद कर सकते हैं।
 पर क्या हरक सिंह यह नहीं जान रहे हैं? ऐसा संभव नहीं है। हरक सिंह रावत और भाजपा के बीच खिचड़ी पकने की जो खबरें राष्ट्रीय मीडिया में आई हैं उससे लगता है कि भाजपा आलाकमान कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में उनको आगे कर सकता है। कांग्रेस को चूंकि एक ही सीट की बढ़त है इसलिए हरक सिंह इस्तीफा देकर उस बढ़त को एक ही झटके में खत्म कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा का आलाकमान निशंक के बजाय हरक सिंह पर दांव खेल सकता है। इसमें निशंक का भी लाभ है। वह कांग्रेस के राज आने पर जेल जाने सकी संभावना से भी बचे रहेंगे और पुराने मित्र होने के कारण उन्हे सत्ता के सारे लाभ मिलते रहेंगे। निशंक और कोश्यारी खेमे के लिए यह वरदान साबित होगा। क्योंकि वे हरक सिंह की बदौलत से ‘‘खंडूड़ी जरुरी है’’ के रुप में आई राजनीतिक आफत से बचे जायेंगे। हरक सिंह भी जान रहंे हैं कि कांग्रेस में मची सिर फुटव्वल से कांग्रेस की छवि बेहद खराब हुई है साथ ही विजय बहुगुणा और सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोलकर ठाकुरों के एक वर्ग का ध्रुवीकरण करने में कामयाब रहे हैं। इसे साथ ही उन्हे हरीश रावत धड़े का प्रछन्न मदद भी मिलेगी।जब जीत के ये सारे कारण जब मौजूद हों तो हरक सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए एक बार फिर रुद्रप्रयाग के समर में कूदने का जोखिम उठा सकते हैं। हरक सिंह के लिए भाजपा में ज्यादा अनुकूल माहौल है।वह निशंक और कोश्यारी की मदद से बीसी खंडूड़ी को निपटा सकते हैं।वह आरएसएस के पुराने कार्यकर्ता हैं और संघ व भाजपा नेताओं से उनके पुराने संबंध हं। इसलिए भाजपा और संघ के लिए वह अछूत नहीं हैं। कोश्यारी खेमे के पास ऐसा ठाकुर नेता नहीं है जो ठाकुर वोटों को पोलराइज करने की क्षमता रखता हो इसलिए वह इस खेमे की स्वाभाविक जरुरत हैं। निशंक उनके मित्र हैं और निशंक के लिए वह सबसे बढ़िया पसंद हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि जब हरक सीधे सोनिया गांधी को चुनौती गुस्से में आकर नहीं बल्कि भाजपा आलाकमान की रणनीति के तहत दे रहे हैं। उनका यह कहना कि मंत्री पद मेरी जूते की नोंक पर या इससे आगे जाकर कहना कि वह व्हिप की परवाह नहीं करते, अकारण नहीं है। बल्कि यह उस रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत कांग्रेस आलाकमान उन्हे निलंबित करना पड़े और वह विधानसभा से इस आधार पर इस्तीफा दें कि एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री का विरोध करने के कारण उनको निकाला गया। शहीद की इस छवि से वह ठाकुर वोटों को ध्रुवीकरण करने में कामयाब रहेंगे । साथ कांग्रेस की एक सीट की बढ़त खत्म होते ही भाजपा उनके नेत्त्व में सरकार बनाने के लिए दावा ठोंकेगी। मुख्यमंत्री के रुप में जब वह मैदान में उतरेंगे तो कोई भी उनको हराने की थिति में नहीं होगा।राजनीति की बिसात पर बाजी तैयार है बस शह ओर मात के खेल के शुरु होने की देर है।

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