बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

Chidanand Controversy: Conflict of Interests



              हिंदू धर्म पर धार्मिक माफिया की जकड़बंदी
Chidanand Sarswati: The swami of Controversies


ऋषिकेश में अस्थि विसर्जन पर हरिद्वार में मचे बबाल से जाहिर है कि हिंदू धर्म पर धार्मिक माफिया की जकड़बंदी कितनी गहरी है। पहले तो यह विवाद का विषय ही नहीं है कि कौन कहां अस्थि विसर्जन करता है। क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता और इच्छा का मामला है। हरिद्वार के पंडों और व्यापारियों को व्यक्ति की निजी इच्छाओं और आस्थाओं का सम्मान करना आना चाहिए। धार्मिक नजरिये से देखा जाय तो प्राचीन काल में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है जब कोई अपने पूर्वजों के अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार आया हो। राजा भगीरथ जो अपने पुरखों के उद्धार के लिए गंगा को धरती पर लाए थे वह भी अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार नहीं आए बल्कि जहां पर उनकी अस्थियां पड़ी थीं वहीं पर गंगा में उनको प्रवाहित कर दिया गया। ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि जिसमें कहा गया हो कि हरिद्वार के अलावा बाकी स्थानों पर जिनकी अस्थियां प्रवाहित की जायेंगी उनके स्वर्ग जाने पर पाबंदी लगी हुई है।निहित स्वार्थों ने जब हिंदू धर्म का कर्मकांडीकरण किया तब ही उस पर पंडों,पुजारियों का कब्जा हो गया। इन व्यावसायिक स्वार्थों के चलते ही कर्मकांड प्रमुख हो गया और धर्म का शास्त्रीय और आध्यात्मिक अर्थ गायब कर दिया गया। हरिद्वार में पंडों ने हिंेदू धर्म का अपहरण कर दिया है। अस्थि विसर्जन से लेकर पिंड दान तक का पूरा कर्मकांड इन धार्मिक गिरोहों के कब्जे में चला गया है। चिंदानंद धर्म के आधुनिक धंधेबाज हैं इसलिए उन्होने गंगा पर अतिक्रमण कर ऋषिकेश में नदी के मध्य में कांक्रीट का एक प्लेटफार्म खड़ा कर दिया है। अभी तक योग और गंगा आरती का धंधा कर रहे यह कलियुगी मुनि इस अवैध कब्जे से मृत लोगों को स्वर्ग पहुचाने के धंधे में भी कूद गया हैं। हरिद्वार के पंडों और व्यापारियों की सम्स्या यही है कि यदि अस्थि विसर्जन के धंधें में देवप्रयाग,ऋषिकेश,व्यासी, जैसे स्थान भी आ जायेंगे तो उनके धंधे का क्या होगा? इसलिए हरिद्वार में आजकल हिंदूधर्म संकट में पड़ा हुआ है। गजब यह है कि धर्म पर लड़ रहे ये योद्धा चिदानंद द्वारा गंगा पर कब्जा करने को लेकर कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं। जीडी अग्रवाल,गोविंदाचार्य,राजेंद्र सिंह समेत विहिप और संघ के गंगाभक्त भी गंगा का अतिक्रमण करने के चिंदानंद के कृत्य को धर्मविरोधी नहीं बता रहे हैं। क्योंकि ऋषिकेश और हरिद्वार के सारे अखाड़ेबाज और महंत अतिक्रमण के अवतार हैं। जहां तक अस्थि विसर्जन के लिए धार्मिक रुप से उपयुक्त स्थल की बात है तो वह संगम ही है। हरिद्वार और ऋषिकेश संगम नहीं हैं। पुराणों के अनुसार देवप्रयाग ऐसा स्थल है जहां अस्थि विसर्जन और पिंडदान शास्त्रसम्मत है। इसीलिए प्रयागराज इलाहबाद में अस्थिविसर्जन किया जाता है। खैर यह तो धर्म के धंधेबाजों की वह चाल है जिसके तहत गंगा जैसी नदी को को मृत्यु की नदी बनाकर उसकी हत्या कर दी। गंगा शवों को बहाने के लिए गंगा का उपयोग गंगा की पवित्रता के प्रति अक्षम्य अपराध है। पर एक भी शंकराचार्य में यह कहने की हिम्मत नहीं है कि गंगा में शवों को जलाये जाने से बड़ा अधर्म कुछ भी नहीं है। गंगा जीवन की नदी है। वह मानव के सुख और समृद्धि की देवी है इसीलिए उसे पूजनीय माना गया है। उसे मुर्दाखोर पिशाचिनी मत बनाईए। पर क्या धर्म के धंधेबाज विवेक की आवाजें सुनने को तैयार हैं? 21 वीं सदी के भारत में धर्म वैसा ही नही रह सकता जैसा वह 11 वीं सदी में था। बाबा और महंत खुद तो मोबाइल हाथ में लिए एसी कमरों में आराम फर्मा रहे हैं और धर्म और गंगा को 11 वीं सदी की सोच से हांकते रहना चाहते हैं।

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