तो शराब के बूते चुनाव लड़ेगा उत्तराखंड रक्षा मोर्चा !
Retired Brig. Patwal in the police station Kotdwar |
Retired Brig Patwal's Car seized by police in which 50 bottles of liquor was recovered at Kotdwara.
भ्रष्टाचार के खिलाफ जंगी तेवर दिखाने वाले उत्तराखंड रक्षा मोर्चा के ले0जन0 टीपीएस रावत के खासमखास फौजी अफसर माने जाने वाले ब्रिगेडियर पटवाल कोटद्वार में पचास बोतल शराब की तस्करी करते हुए कोटद्वार में अरेस्ट कर लिए गए। उन पर आबकारी अधिनियम और चुनाव आचासर संहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज कराया गया। बाद में उन्हे थाने में जमानत पर रिहा कर दिया गया। इस खबर से रक्षा मोर्चा के नेता जन रावत, रक्षा मोर्चा के आधिकारिक गायक और प्रख्यात लोकगायक नरेंद्रसिंह नेगी, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एसएस पांगती, बीसी चंदोला, मेजर जनरल बहुगुणा समेत सभी नेताओं को सांप संूघ गया है। सबकी जुबानें बंद हैं और किसी को कुछ बोलते नहीं बन रहा है। ऐसे राज्य में जहां शराब विरोधी आंदोलनों की लंबी परंपरा रही हो और जिस प्रदेश की महिलायें शराब कीे जबरदस्त मुखालफत करती रही हों वहां खुद को क्षेत्रीय दल बताने वाली एक पार्टी चुनाव जीतने के लिए जाम छलकाने जा रही है। उत्तराखंड की राजनीति का इस बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। गजब यह है कि राज्य की एक भी पार्टी ने इस कांड की निंदा नहीं की। क्योंकि सभी दल मतदाताओं में शराब बांटने की तैयारियां कर चुके हैं। बड़े पैमाने पर अवैध शराब राजनीतिक दलों के नेताओं के स्टाॅक में पड़ी हुई है। आश्चर्य यह है कि महिला मंच जैसे संगठन भी रक्षा मोर्चे की इस हरकत पर मुंह सिलकर बैठे हैं।
अपने मंत्रित्व काल में विदेशी दौरों के लिए चर्चित रहे जनरल टीपीएस रावत ने जब राज्य में भ्रष्टाचार के फ्खिलाफ हुंकार भरी तो राज्य की जनता में बड़ी उम्मीदें जगीं। लेकिन इन उम्मीदों को पहला झटका तब लगा जब डिफेंस काॅलोनी देहरादून में हुए रक्षा मोर्चा के पहले सम्मेलन में पंजाबी महासभा के नेता और उत्तराखं डमें पंजाबी को दूसरी राजभाषा बनाने की मांग करने,पंजाबियों के लिए नौकरियों में आरक्षण करने की मांग करने वाले कुंवर जपेंद्र सिंह ने जनाब जनरल रावत को सरोपा भेंट किया। जनरल रावत पहाड़ी टोपी पहनने वाले नेता नहीं हैं। वह गोरखा टोपी पहनने वाले नेता हैं। यह और बात है कि उत्तराखंड के पहाड़ों में गोरखाओं को सन् 1791 से लेकर 1815 तक हुए अत्याचारों के लिए खलनायक की तरह याद किया जाता है। गोरखाओं का शासनकाल उत्तराखंड के इतिहास का सबसे अंधेरा दौर रहा है। 1808-11 में ब्रिटिश यात्रा वृतांत लेखक के ब्यौरे बजताते हैं कि इस दौरान गोरखा सेनापति बलभद्र थापा के नेतृत्व में हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। गर्भस्थ बच्चों को खुखरी से मां के पेट में ही कत्ल कर दिया गया। बच्चों के सीने में तलवारें उतार दी गईं। उत्तराखंड की कुल 12 लाख की आबादी में से तीन लाख लोगों को रुद्रपुर और हरिद्वार की मंडियों में लोहे की बेड़ियों में बांधकर नंगे बदन दस रु0 से लेकर बीस रु0 तक में बेच दिया गया। ये तीन लाख गरीब पहाड़ी उस अंधेरे में गायब हो गए जो गोरखा आततायियों के कारण पैदा हुआ था। इसके बावजूद उत्तराखंड को कांग्रेस और भाजपा से मुक्त कराने आए योद्धा जन0 रावत यदि गोरखा टोपी पहनने में अपनी शान और गौरव मानते हैं तो पहाड़ के लोग अपनी किस्मत को कोसने के अलावा क्या कर सकते हैं। उन्हे इन्ही नेताओं के भरोसे रहना है।
गत रविवार को रक्षा मोर्चा ने अपना एक और चेहरा जनता को दिखाया है। ले0जन0 टीपीएस रावत के लेफ्टिनेंट और खासमखास अवकाश प्राप्त ब्रिगेडियर पटवाल को पुलिस ने कोटद्वार में पचास बोतल शराब के साथ गिरफ्तार कर लिया। साथ में उनकी कार भी सीज कर दी गई। एक ब्रिगेडियर स्तर का अफसर शराब की तस्करी करते हुए पकड़ा जाय तो यह भारतीय सेना के लिए भी शर्मिंदा होने की बात है। वह भी तब जब वह यह काम भारतीय सेना में ले0जन0 रहे एक नेता के नेतृत्व में चल रहे दल के चुनाव प्रचार में लगे हों। क्या भारतीय सेना अपने नागरिकों का नेतृत्व करने के लिए क्या ऐसे ही नेताओं को प्रशिक्षित करती है? क्या सेना के अफसर के नाम पर जो लोग खुद साफ-सुथरा होने की डींगे हांकते नहीं थकते क्या वे ऐसी ही राजनीतिक संस्कृति को जनता के बीच ले जायेंगे। फौजी कैंटीन की रियायती दर पर मिलने वाली शराब का इतनी बड़ी मात्रा में दुरुपयोग करना गंभीर बात है।इस तथ्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती। क्योंकि पूर्व सैनिकों को रियायती दर पर लिने वाली शराब की कीमत इस देश के नागरिक ही चुकाते हैं। सवाल यह है जो दल शराब पिलाने जैसे भ्रष्ट तौर तरीकों के जरिये वोट हासिल करने में लगे हैं वे राज्य के लोगों को कैसी सरकार देंगे? कांग्रेस और भाजपा की इस संस्कृति को अपनाने से क्या राज्य में असली क्षेत्रीय विकल्प खड़ा किया जा सकता है? बिल्कुल नहीं। आशंका यह है कि ऐसे दल कांग्रेस और भाजपा से भी बड़ी विपदा साबित होंगे। जिस राज्य में शराब विरोधी आंदोलनों की एक लंबी परंपरा रही हो वहां इस तरह के कृत्यों से प्रदेश कलंकित होता है। इसलिए ऐसे वाकयों की कड़ी निंदा की जानी चाहिए और शराब के जरिये वोट बटोरने वाले दलों और नेताओं की भत्र्सना की जानी चाहिए।
हैरत इस बात पर है कि अपने गीतों के जरिये उत्तराखंड में नई राजनीति लाने का संदेश देने वाले लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी रक्षा मोर्चा के नेता द्वारा शराब की तस्करी पर फिलहाल चुप हैं। अवकाश प्राप्त आईएएस अफसर एसएस पांगती और बीसी चंदोला, सेवानिवृत्त मेजर जनरल शैलेंद्र राज बहुगुणा भी ने भी यह नहीं बताया कि क्या वे भी ऐसे ही भ्रष्ट साधनों के जरिये चुनाव लड़ना चाहेंगे? यदि ऐसा ही होना है तब कांग्रेस और भाजपा भी इससे बुरा विकल्प नहीं हैं।
very shameful!
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