गुरुवार, 8 मार्च 2012

Uttrakhand Election Result: False Claim of Team Anna Hazare



                             टीम अन्ना  की घटिया राजनीति 




आमतौर पर नेताओं को झूठ बोलने में माहिर माना जाता है। पर टीम अन्ना ने झूठ बोलने में नेताओं को भी पीछे छोड़ दिया है।टीम अन्ना की एक महिला सदस्या बीते बुधवार को एनडीटीवी के अंग्रेजी चैनल पर दावा कर रही थीं कि लोकपाल आंदोलन के कारण ही उत्तराखंड के चुनाव नतीजों में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया । इतना बड़ा और सफेद झूठ बोलने में इन मेम साहिबा को तनिक भी शर्म नहीं आई। घटियापन की यह हद है।जरा उत्तराखंड के चुनाव नतीजे देखें। जिस निशंक को केजरीवाल ने भ्रष्टाचार का अवतार बताया था वह चुनाव जीत गए। जिस मदन कौशिक के घर हरिद्वार में टीम अन्ना ने कुंभ घोटाले में शामिल लोगों को हराने की अपील की थी वह भी जीत गए। यदि चुनाव में जीते भ्रष्टों की सूची गिनाई जाय तो वह काफी लंबी होगी। इसलिए उसे गिनाना बेकार है।लेकिन लोकायुक्त बिल लाने और अन्ना के प्रमाणपत्र वाले होर्डिंग लगाने के बावजूद जनरल खंडूड़ी कोटद्वार जैसी मध्यवर्ग बहुल सीट कोटद्वार में हार गए। जबकि अन्ना तो मध्यवर्ग के ही नायक हैं।रही बात बीजेपी के प्रदर्शन की उसमें टीम अन्ना का तो धेला भर का भी रोल नहीं है। वह तो जनरल खंडूड़ी की व्यक्तिगत छवि का कमाल है। यह छवि कोई जुलाई-अगस्त के अन्ना आंदोलन से तैयार नहीं हुई थी। यह छवि 1991 से सांसद रहे जनरल की बीस साल की राजनीति से बनी है। इससे अन्ना और उनके चेलों का कोई लेनादेना नहीं है। सच तो यह है कि टीम अन्ना या रामदेव आंदोलन का असर नगण्य रहा। एक भी प्रत्याशी यह दावा नहीं कर सकता कि उसे जनता ने ईमानदार होने के कारण वोट दिया। उल्टे ईमानदार होने के कारण कई उम्मीदवारों को जमानत गंवानी पड़ी। जिस चुनाव में लाखों बोतल शराब बंटी हो, जहां लगभग हर सीट पर जीतने के लिए एक से दो करोड़ रुपए खर्च किए गए हों,जहां अकेले मीडिया पर ही नेताओं और उनके दलों ने पचास करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए हों,जहां कई गांवों में थोक वोट खरीदने के लिए छह लाख से दस लाख रुपए बांटे गए हों वहां ईमानदारी की जीत का ढ़िढ़ोंरा पीटने से बड़ा झूठ और बेईमानी क्या हो सकती है? टीम अन्ना यही बेईमानी कर रही है। लोकपाल बिल पास करने या न करने का चुनाव पर रत्ती भर असर नहीं हुआ। कांग्रेस ने यदि विपक्ष का धर्म निभाया होता,सड़को लाठी खाई होती,जेल गए होते और सही प्रत्याशियों को टिकट दिए होते तो भाजपा का सफाया हो गया होता। कांग्रेस तो अपने निकम्मेपन और सुविधाभोगी राजनीति के कारण बहुमत नहीं पहंुची। उसके पास खंडूड़ी की तरह कोई ऐसा नेता नहीं था जो लोगों में उम्मीद और भरोसा जगा सकता।नाउम्मीदी के बावजूद यदि कांग्रेस को 32 सीटें मिली हैं तो यह भाजपा के खिलाफ नाराजी ही थी, और यह जनरल के करिश्मे के बावजूद हुआ। यानी भाजपा सरकार के खिलाफ नाराजी जनरल के करिश्मे से भी बड़ी थी।
टीम अन्ना यदि झूठ की घटिया राजनीति करना चाहती है तो बेशक करे पर इसे ईमानदारी का छल आवरण न पहनाये।इससे लोगों का भरोसा उन लोगों पर भी कम होगा जो न्यूज चैनलों की चमकदमक से दूर एक ईमानदार और बेहतर भारत की लड़ाई लड़ रहे हैं।

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